जब सूरज उगने लगता है
और पंछी गाने लगते हैं
तब भोर किरण आशा बनके
इस दिल को जगाने लगती है
फिर सूरज चढ़ने लगता है
कोलाहल बढ़ने लगता है
तब आशा ही कोयल बनके
एक मीठा गीत सुनाती है
जब सूरज सर पे होता है
गर्मी से सबकुछ जलता है
आशा की ठण्डी छावं तले
एक प्यारा सपना पलता है
फिर सूरज ढलने लगता है
सब अन्जाना सा लगता है
आशा हीं तब साथी बनके
आगे का राह बताती है
अँधियारा छाने लगता है
और दिल घबराने लगता है
आशा हीं तब संबल बनके
साहस मेरा बढाती है
जब निंदिया रानी आती है
सारी दुनिया सो जाती है
आशा हीं दीपक बन के
स्वप्न सलोने जगाती है
जब तम गहन हो जाता है
साया भी छोड़ के जाता है
आशा आगे आ करके
एक रौशनी दे के जाती है
जब सबकुछ खोने लगते हैं
और टूट के रोने लगते हैं
आशा तब मुस्का करके
सारे आंसूं ले के जाती है
पूछ ही दिया मैंने एक दिन
ऐ आशा तू कँहा रहती है ?
तेरे हीं मन में रहती हूँ
सांसों में तेरे बसती हूँ
तू क्यूँ घबरा जाती है
खुद पर कर विश्वास सखी
ये दुनिया रोक न पायेगी
मंजिल अपनी तू पायेगी