अभी पिछले हीं दिन अखबार में छपी एक खबर में पढ़ा था बारहवीं की एक छात्रा के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के मुख्य नामजद अपराधी प्रशांत कुमार झा तीन बहनों का भाई है, उसकी बहन के बयान से शर्मिंदगी साफ़ झलक रही थी और छोटी बहन तो समझ भी नहीं पा रही उसके भाई ने किया क्या है | बस यही सोच रही थी की आज राखी के दिन क्या मनः स्थिति होगी ऐसी बहन की जिसका भाई बलात्कार के जुर्म में जेल गया हो ...............
तेरे हिस्से की राखी आज जला दी मैंने इस बंधन से तुझको मुक्ति दिला दी मैंने
अफ़सोस तेरी बहन होने के अभिशाप से छुट ना पाउंगी अपनी राखी की दुर्बलता पर जीवन भर पछ्ताउंगी
मुझ पर उठी एक ऊँगली, एक फब्ती भी बर्दास्त ना थी
सोचती हूँ कैसे उस लड़की का शील तुमने हरा होगा ?
वर्षों का मेरा स्नेह क्यूँ उस वक़्त तुम्हे रोक सका नहीं?
क्यूँ एक बार भी उसकी तड़प में तुम्हे मेरा चेहरा दिखा नहीं?
इतनी दुर्बल थी मेरी राखी तुझको मर्यादा में बाँध ना सकी
शर्मशार हूँ भाई, कभी तेरा असली चेहरा पहचान ना सकी
उधर घर पर माँ अपनी कोख को कोस कोस कर हारी है
तेरे कारण हँसना भूल पिता हुए मौन व्रत धारी हैं
सुन ! तेरी छुटकी का हुआ सबसे बुरा हाल है
अनायास क्यूँ बदला सब, ये सोच सोच बेहाल है
छोटी है अभी 'बलात्कार' का अर्थ भी समझती नहीं
हिम्मत नहीं मुझमे, उसे कुछ भी समझा सकती नहीं
पर भाई मेरे, तु तो बड़ा बहादुर है, मर्द है तु
उसको यहीं बुलवाती हूँ , तु खुद हीं उसको समझा दे
बता दे उसे कैसे तुने अपनी मर्दानगी को प्रमाणित किया है
और हाँ ये भी समझा देना प्यारी बहना को, वो भी एक लड़की है
किसी की मर्दानगी साबित करने का वो भी जरिया बन सकती है
अरे ये क्या, क्यूँ लज्जा से सर झुक गया, नसें क्यूँ फड़कने लगीं ?
यूँ दाँत पिसने , मुठ्ठियाँ भींचने से क्या होगा ?
कब-कब, कहाँ-कहाँ, किस-किस से रक्षा कर पाओगे?
किसी भाई को बहन-रक्षा का प्रण लेने की जरुरत नहीं
खुद की कुपथ से रक्षा कर ले बस इतना हीं काफी है
जो मर्यादित होने का प्रण ले ले हर भाई खुद हीं
किसी बहन को तब किसी रक्षक की जरुरत हीं क्या है?