मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

काँच के रिश्ते



रिश्ते काँच से ,

नाजुक होते हैं |
धूप कि गर्माहट मिले ,
हीरों से चमक जाते हैं |
रंगीन चूड़ियाँ बनकर ,
जीवन को सजाते हैं |
इनके गोल दायरों में 

हम बंध  कर रह जाते हैं |
हाथ से जो छूटे ,
चकनाचूर हो जाते हैं |
बटोरना चाहो तो ,
कुछ जख्म दे जाते हैं |
आगे बढ़ना चाहो तो ,
पाँव को छल्ली कर जाते हैं |
रिश्ते बड़े जतन से ,
संभाले जाते हैं |

16 टिप्‍पणियां:

  1. रिश्तो की प्यारी परिभाषा....अच्छी लगी...दिल को कहीं छू गयी.............:)

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  2. आलोकित जी
    रिश्तों का संसार ऐसा ही हैं
    'रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय"
    इनके टूटने की टीस बयां न हो तो ही अच्छा हैं
    पर इससे बेहतर कुछ नहीं संजोने के लिए ह्रदय मैं
    बधाई अप्रितम रचना के लिए

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  3. कांच के रिश्ते... बिखरे तो फिर कहाँ जुड़ते है .....
    ..बेहद मर्मस्पर्शी रचना

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  4. सुंदर बिंबों से सजी दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  5. रिश्तों का बहुत भावपूर्ण चित्रण..बहुत सुन्दर प्रस्तुति .नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  6. रिश्तों की अहमियत को बेबाकी से दर्शाया है..बहुत खूब..

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