कलियों के चटखने से
बगिया आज महक उठी
फूलों के मुस्कुराने से
प्रकृति भी खिलखिला उठी
और भी रंगीन होती जा रहीं
तितलियाँ रस पीकर
दीवाने होकर देखो गा रहे
सांवले सलोने भ्रमर
गुजरा पवन इन्हें छूकर
उसका रोम रोम महक उठा
सहलाया बादलों को जाकर
तो वह भी आज बहक उठा
सारा स्नेह एकत्रित कर
सर्वस्व अपना बरसा दिया
कली को बूंदों से स्पर्श कर
खुश हुआ औरों को हरसा दिया
भीगी भीगी सी कलियाँ भी
शर्मा कर झुक गईं
जा रही थी जो हवा वह
मंत्रमुग्ध होकर रुक गई
मंद पवन का झोंका आया
मुझको सारा हाल बताया
शीतल सुवासित सुन्दरता से
मेरा परिचय करवाया
आलोकिता जी, बहुत प्यारी है ये बगिया। आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
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मिल गया खुशियों का ठिकाना।
वैज्ञानिक पद्धति किसे कहते हैं?
प्यारी बगिया।
जवाब देंहटाएं..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
जवाब देंहटाएंबहुत ही मनभावन कविता
जवाब देंहटाएंप्यार का पहला एहसास.......(तुम्हारे जाने के बाद)
आपके जीवन की बगिया हमेशा महकती रहे!
जवाब देंहटाएंआलोकिता जी सुन्दर है कविता ..
जवाब देंहटाएंये परिवर्तन सुखद हैं आलोकित जी
जवाब देंहटाएंरंगों और रंगीन परिकल्पनाओं को पहचानने का हुनर सीख रही हैं आप
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर
बधाई