३१ जुलाई १८८० में पैदा हुए व्यक्ति वे महान ,
जिनका आजतक होता है गुणगान |
लमही था जिनका जन्मस्थान
अजयाब्लाल औ आनंदी के थे संतान
बचपन में धनपतराय नाम से थी उनकी पहचान
७ वर्ष की उम्र में माँ से बिछड़ गयी वह नन्ही जान
कटु विमाता के आने से हो गए वे परेशान
पर पढने पर दिया इन्होने खूब ध्यान
१४ वर्ष की ही आयु में शादी कर आ गयी इनकी दुल्हन
पिता की मृत्यु के कारण, परिवार का करना पड़ा पालन
जीवनयापन का इनके पास नहीं था कोई साधन
५ मील पैदल चलकर ५ रूपए महीने पर पढ़ाने लगे टिउसन
विषय गणित का नहीं था इनके लिए आसान
कई नौकरियों से करना पड़ा इन्हें प्रस्थान
क्यूंकि पेचिश के रोग ने बनाया हर जगह थोड़े दिनों का मेहमान
उस समय भारत में था अंग्रेजों का शासन
जब जब्त हुआ सोजे वतन
नवाबराय बने मुंशी प्रेमचंद
स्वरचित १५ उपन्यास,३०० कहानियों का किया संकलन
सामजिक रूढीवादिताओं पर होता था उनका लेखन
कलम का सिपाही किया उन्होंने अपना नामकरण
८ अक्टूबर १९३६ को समाप्त हो गया उनका जीवन
मरते दम तक साहित्य के प्रति काम न हुई उनकी लगन
बहुत ही दिलचस्प अन्दाज़ में कलम के सिपाही का पूरा जीवन… वाह ! :)
जवाब देंहटाएंkalam ke sipahi ka naam hi kafi hai.........mera salaam pren chand ji ko
जवाब देंहटाएंआलोकिता जी
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
आपके ब्लॉग पर आकार एक पपीहे की प्यास बुझ गयी ...हिंदी में आपकी रूचि का परिणाम है यह ....कलम के सिपाही प्रेमचंद की रचनाओं को आम पाठकों तक पहुँचाने के लिए आपको साधुवाद ....अब निरंतर आपके ब्लॉग पर आने को दिल करेगा ....अपना प्रयास जारी रखियेगा .....शुक्रिया
आलोकिता जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ुशी हुई आपके ब्लॉग पर आकर...!
आप अपनी तरह से एक अनूठे अंदाज़ में हिन्दी-सेवा कर रही हैं।
काव्य-रूप में विषय-प्रस्तुति बच्चों के लिए बहुत उपयोगी होती है...सहज स्मरणीयता होती है काव्य में!
Thanks Rashmi
जवाब देंहटाएंsahi kaha Sanjay bhaiya Kalam ke sipahi ka to naam hi kafi hai.
pranam kewal ram ji. Acha laga aapki tippani padh kar. aapka nirantar blog par aana hame bhi acha lagega
जवाब देंहटाएंJitendra ji mujhe bhi acha laga aapka aana. acha laga ki meri koshisen pasand aayi . Dhanyawaad
जवाब देंहटाएंकलम में सिपाही पर क्या खूब कलम चलायी है आपने!!!
जवाब देंहटाएंप्रेमचंद साहब को अच्छे संक्षिप्त अंदाज़ में सँजोया है, जारी रखिये ...
जवाब देंहटाएंAnupma ji, Majaal sir Thanks
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंThanks sir
जवाब देंहटाएंआलोकित जी बुरा नहीं मानियेगा ...... क्या ये आप की ही लिखी हुई कविता है...? शायद ऐसी मैंने कहीं और पढ़ी है.
जवाब देंहटाएंji haan ye meri khud ki rachna hai. meri kul 7 kavitayen maine kisi kisi ko di thi chapne k liye jinme se ek yah bhi hai. lekin uske baad mujhe aajtak info nahi mila ki un kavitaon ka kya hua? aap jo bhi hain aapko apni kuch to pahchan deni chahiye thi. mujhe janna hai ki yah kavita kahan aur kiske naam par cgapi hai. iski original copy mere pass hi hai maine photocopy di thi chapne k liye. umeed hai aap wapas mere blog par aayenge aur mere sawalon ka jawab denge.
जवाब देंहटाएंmai abhishek kumar singh , ek frelance journalist hoo. ab sahi dhyan to nahin aa raha mager itna to tai hai ki maine aaise hi kavita kahin padhi hai....agr dhyan aaya to aapko jaroor batooga....( maf kariyega mai anonymous isliye likh raha hoo ki mera koi blog nahin hai, mai bas freelancing work karta hoo. )
जवाब देंहटाएंokay Abhishek ji but aapne mujhe ek tension bhi de diya ki meri kavita bagair mere knowledge k kahan chapi hai? but anyways thanks 4 telling agar detail bata pate to acha rahta. waise purani rachna mein maa ka naam jan ka diwas nahi hoga aur 14 ki jagah 15 hoga kyunki ye teeno changes maine post likhte waqt hi ki hai
जवाब देंहटाएंshandar
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