रविवार, 26 दिसंबर 2010

विद्यालय

गुरुकुल से बना विद्यालय ,
विद्यालय अब हुआ वाणिज्यालय|
विद्या भी अब बिकती है संसार में ,
स्कूल और कोचिंग के बाज़ार में |
नैतिकता हुई बात पुरानी,
अनुशासन है एक कहानी |
गुरुजन अब हुए सौदागर ,
सौदा करते विद्या का जमकर |
बच्चों को अब अच्छाई सिखाये कौन ?
भटके हुओं को सत्मार्ग पर लाये कौन ?
विद्यालयों का हमे करना है जीर्णोधार ,
और है करना उच्च विचारों का संचार |
बढ़ानी है विद्यालयों की महिमा ,
हमे लौटानी है उनकी गरिमा |
तभी बनेगा हमारा देश महान ,
चहु दिशा में होगा गुणगान |

10 टिप्‍पणियां:

  1. ज्ञान का प्रकाश हमें फैलाना होगा,
    अब घर में ही विद्यालय बनाना होगा...:)

    मेरी तो यही सोच है...अगर परिवार में अच्छे संस्कार हैं तो विद्यालय उतना मायने नहीं रखता..

    आपकी कविता बहुत अच्छी है, उम्मीद है शिक्षा का ये बाजारीकरण जल्दी बंद होगा....

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  2. आलोकिता जी
    वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आपकी कविता की हर एक पंक्ति सटीक बैठती है ...आज के हालतों को उजागर करती हुई यह कविता निश्चित तो पर सोचने पर मजबूर करती है ...शुक्रिया

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  3. बिलकुल सटीक बात की है..आज विद्यालय चलाना जब एक व्यापार हो गया है तो सही ज्ञान के प्रसार की उम्मीद कैसे की जा सकती है.इसके लिए तो हमें ही कुछ सोचना और करना होगा..सुन्दर प्रस्तुति

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  4. सिक्षा के औदोगिकीकरण पर अच्छी चोट

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  5. शिक्षा के प्रति लेखिका की संवेदनशीलता को दर्शाती रचना

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  6. यह कविता तो बहुत प्यारी है दी ..बधाई.

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  7. its a very nice and thougtful composition which describes our present eduction system...
    वस्तुत: आज द्रश्य यह है कि ज्ञान का स्थान विज्ञानं ने ले लिया है ज्ञान के लिए कोई जगह ही नहीं बची समाज में | आज़ाद भारत में ये कसम ली गई थी की सभी व्वास्थाये स्वदेशी तरीको से चलायी जाएगी लेकिन आजकल हम हर क्षेत्र में विदेशी तरीको का ही अनुसरण कर रहे है

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