अँधेरे में पड़े रोने से अच्छा
आशा के दीप जला लो
अंधेरों में खोने से तो अच्छा
छोटी सी किरण अपना लो
पर सब रोशन कर दे
ऐसा कोई दीप तो मिले
देखो अँधेरा है यँहा
हर जलते दीप तले
छोटे से अँधेरे को छोड़ो
ऊपर देखो कितना रोशन है
मार्ग दीखाने को तुम्हे
क्या इतना उजाला कम है ?
चलते चलते आधे रास्ते में
यह दीपक बुझ जायेगा
मार्ग और भी दुर्गम होगा
और अँधेरा हो जायेगा
जितना भी हो आगे बढ़ो तो सही
मंजिल नहीं रास्ते,तय करो तो सही
सोचो यँहा गर दीपक बुझ जायेगा
यह तिमिर और गहन हो जायेगा
हाय! इतनी दूर अभी चलना है
और इतना समय गंवा दिया
रास्ता इतना तय करना है
ग़मों में यह भी भुला दिया
जो बीता अब वापस न आएगा
टुटा जो संवर नहीं जायेगा
यह पल जो खो दिया तुमने
फिर इस पर भी रोना आएगा
बहुत सुन्दर रचना है!
जवाब देंहटाएंमनोविश्लेषण अच्छा है आपका!
वाह....खो गया मैं....:)
जवाब देंहटाएंआज कल टिप्पणियों से ज्यादा ब्लॉग पढने में समय दे रहा हूँ.... लेकिन यहाँ टिपण्णी दिए बिना न रह सका....
वाह दीप जलाने के लिए एक चिंगारी काफी है आलोकिता
जवाब देंहटाएंalokitaji,
जवाब देंहटाएंbahut badiya lagi aapki rachna
बहुत सुन्दर सकारात्मक सोच लिये उमदा रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंALOKITA VERY GOOD WRITING
जवाब देंहटाएं........BAHUT KHOOB SUNDER RACHNA