गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

बधाई हो घर में लक्ष्मी आई है

उन्हें कभी एकमत
होते नहीं देखा था 
उस दिन जब वह 
जन्मी थी 
कुछ जोड़े नयन 
सजल थे 
कुछ की आँखें 
चमक रही थी 
कोई आश्चर्य नहीं था 
क्यूंकि 
उन्हें कभी एकमत 
होते नहीं देखा था 
पर एक आश्चर्य 
उस दिन सबने 
सुर मिलाया 
शुभचिंतकों ने ढाँढस
दुश्चिन्तकों ने व्यंग्य कसा 
बधाई हो 
घर में लक्ष्मी आई है 

28 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत-बहुत बधाई हो!

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  2. एक बेटी के पैदा होने का वर्णन किया है आपने यूँ तो उसे लक्ष्मी कहा जाता है ..लेकिन वास्तविकता इसके उल्ट नजर आती है ....आपकी कविता के दोनों पक्ष बहुत सशक्त हैं ....बहुत संवेदनात्मक अभिव्यक्ति ....आपका आभार आलोकिता जी

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  3. कथनी और करनी यानि की विचारों का फर्क तो आज भी है ही.... सधी हुई रचना

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  4. अच्‍छी रचना। जहां तक मेरा व्‍यक्तिगत विचार है, बेटी हर मायने में श्रेष्‍ठ है। बेटा भले ही मां बाप को बिसरा दे, बेटी पराए घर जाने के बाद भी मां बाप को लेकर मन में प्रेम रखे रहती है। यही सोचकर मैंने कल्‍पना की थी कि मुझे बेटी ही देना। ऊपर वाले ने मेरी सुनी और मुझे एक प्‍यारी सी बेटी दी। अब बच्‍चों की लालसा खत्‍म हो गई और बेटी के आने के बाद फुल स्‍टाप लगा दिया। मेरी प्‍यारी बिटिया का नाम है 'देवी' और वह है भी देवी ही।
    बहरहाल, अच्‍छे भाव।

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  5. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार ०५.०२.२०११ को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  6. बेटी का आना वास्तव में लक्ष्मी का आना ही होता है. मैंने अपनी बेटी होने के समय ऐसे ही सोचा था और आज भी मुझे उसपर गर्व है. पता नहीं लोग बेटी का प्यार कैसे अनदेखा कर सकते हैं. बहुत संवेदनशील प्रस्तुति..

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  7. सुंदर,सशक्त विषय चुनाव -
    सटीक बात -
    बहुत सही लिका है -
    बधाई एवं शुभकामनाएं .

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  8. बेटियों के बिना तो संसार भी सुना - सुना हो जाये ये जानते हुए भी पता नहीं कुछ लोग समझना क्यु नहीं चाहते बेटियां सच मै घर की लक्ष्मी ही है दोस्त !

    बहुत सुन्दर !

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  9. हाँ एक बात और कहूँगी आपका ब्लॉग आपकी ही तरह खुबसूरत है हँसता हुआ !

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  10. yah na to dhadas hai na hi vyang hai balki dil se kahti hoon badhayee ho lakshmi aayee hai.

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  11. सामाजिक विचारों के दोहरेपन को बड़ी खूबसूरती से अपनी कविता के माध्यम से उजागर किया है आपने। बधाई स्वीकारें !

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  12. समाजिक दोहरेपन को खूबसूरती से कविता के माध्यम से उभारा है…………बहुत सुन्दर प्रस्तुति…………बधाई।

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  13. सोचने को मजबूर करती है आपकी कविता.
    बिटिया होने की मिठाई नहीं देने पर मेरी एक दोस्त से बातचीत भी बंद हो चुकी है.

    शुभ कामनाएं!

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  14. बहुत खूबसूरती से समाज को आईना दिखाया है

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  15. अच्छी व्यंगात्मक रचना है ... पर अब ज़माना बदलने लगा है ...

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  16. .


    सच में बेटी लक्ष्मी ही है.
    पैदा होते ही माता-पिता की कुछ अतिरिक्त जिम्मेदारियाँ बढ़ जाती हैं.
    'निरंतर निगरानी'
    मतलब
    'उल्लू की तरह जागना'
    सारी-सारी रात
    बचपन से लेकर उसकी ससुराल-विदाई तक की दीर्घकालिक चिंता
    — उसकी जरूरतें पूरी करने में ऑफिस में ओवरटाइम
    — उसपर कुदृष्टि तो नहीं किसी की,
    — उसकी भावुकता का कोई ग़लत इस्तेमाल तो नहीं कर रहा.
    — उसके अपने ही तो उसके साथ छल तो नहीं कर रहे.
    हाँ ये चिंतायें ही तो बेटी पैदा होते ही साथ ले आती है, तभी तो पहले लक्ष्मी और फिर विवाह पर गृहलक्ष्मी कहलाती है.


    .

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  17. .

    लक्ष्मी क्यों कहते हैं? इस विषय पर मेरी पत्नी से बहस हो गयी.
    क्या इसलिये कि उसके आते ही जिम्मेदार लोग धन जोड़ने की सोचने लग जाते हैं.
    क्या इसलियें कि वह धन खर्च करवाने की 'लक्ष्मी नामक' विपरीत लक्षणा बनकर अवतरित हुई है.
    क्या इसलिये कि वह उलूकवाहिनी बनकर माता-पिता को भ्रष्ट आचरण [corruption] को प्रेरित करती है.
    .......... मुझे सही उत्तर नहीं मिला, मुझे उपयुक्त तार्किक उत्तर चाहिए. कृपया मेरा मार्गदर्शन करें.

    .

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  18. सच्चाई को वयां करती हुई अत्यंत मार्मिक रचना ,....बधाई।

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  19. बहुत गेहरी और चिंतनीय समश्या लिखी है अपने गहरे लेख में..

    पर अब समय बदल रहा है.. धीरे धीरे अपनी गति से..

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  20. वसिष्ठ जी नमस्कार आपका प्रश्न यह है की बेटी को लक्ष्मी क्यूँ कहते हैं ? मार्गदर्शन की बात तो रहने दीजिये क्यूंकि बड़े मार्गदर्शन करते हैं और मैं उम्र ज्ञान तजुर्बा सब में आपसे छोटी हूँ और जँहा तक उत्तर की बात है तो यह कोई वैज्ञानिक तथ्य तो है नहीं जो इसका प्रूफ दिया जा सके पर मैं अपनी बुद्धि के हिसाब से कहती हूँ
    धार्मिक दृष्टिकोण से देखे तो हमारे धर्म में लक्ष्मी सिर्फ धन को नहीं अपितु अन्न को भी कहते हैं पुरानी मान्यताओं के अनुसार लड़कियां घर के कामों के लिए बनी है मतलब घर में लक्ष्मी का वास लड़कियां हिन् कराती हैं सिर्फ पैसे कमा लेने भर से घर में लक्ष्मी और खुशहाली का वास नहीं होता मेरी नानी कहती हैं रसोई राम की होती है मतलब जितनी श्रधा से पूजा की जाती है वैसे ही खाना भी बनाना चाहिए अन्यथा घर में रोगों का वास होता है, रोगों का वास अर्थात लक्ष्मी का नाश कुल मिलाकर लक्ष्मी घर में वास करे या न करे यह लड़कियों या औरतों पर निर्भर करता है | बेटियां पराया धन मणि जाती है इसलिए जन्म के वक़्त सिर्फ लक्ष्मी होती है और जब उसे उसका गृह (ससुराल ) मिल जाता है तब वह गृह लक्ष्मी बन जाती है हहाहहाहा
    खैर ये तो हुई पुरानी अवधारणा इस नए ज़माने की बात करें तो मुझे लगता है की जो लोग बेटी को बोझ मानते हैं वही लोग खुद को और दूसरों को सांत्वना देने के लिए इस शब्द का प्रयोग करते हैं क्यूंकि जो नेक दिल इंसान होते हैं वे बेतिओं को बेटी मान कर हीं खुश रहते है उन्हें दिल बहलाने के लिए किसी बहाने की जरुरत नहीं पड़ती |
    अगर ऐसा नहीं है तो हर जगह बेटों को ज्यादा इज्जत मिलती है फिर जन्म के वक़्त बेचारों के साथ नैन्सफी क्यूँ ? उन्हें भी कहो भाई बधाई हो गणेश आया है या विष्णु आये हैं |

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  21. चलिए अंकल जी आपका उत्तर तो मैंने दे दिया अब आपकी बातों की कुछ समीक्षा हो जाये मेरे मन में भी कुछ सवाल हैं उन्हें भी सुलझा लिया जाये
    आपके अनुसार बेटी के आते कुछ अतिरिक्त जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं और बेटे तो आते हीं जिम्मेदारियां संभल लेते हैं सायद
    उल्लू की तरह जागना सारी सारी रात जागना पड़ता है लड़कियों के लिए और लड़कों के लिए नहीं? क्या वही माँ बाप को लोरियां सुना कर सुला देते हैं ?
    बचपन से लेकर विदाई तक दीर्घकालिक चिंता और लड़कों की तो उम्र भर चिंता करनी पड़ती है
    कमाई कम है तो बेटा हो या बेटी ओवर टाइम करना ही पड़ेगा नहीं तो कम में ही खर्चा चलाओ इसमें बेटी कहा से
    दोषी हो गयी ?
    कुदृष्टि क्या लड़कों पर नहीं पड़ती किसीकी ? भावुकता का गलत इस्तेमाल तो लड़कों के साथ भी हो सकता है और होता है

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  22. .

    आलोकिता जी, नमस्ते. मैंने केवल आपका लेख पढ़ा था. न ही आपका प्रोफाइल तब देखा था और न ही अब देखा है. आपने एक अच्छे विषय पर कविता लिखी. और मेरा स्वभाव प्रशंसा की बजाय कथ्य में शामिल होने का अधिक रहता है. आयु नहीं जानता था. आपकी लेखन परिपक्वता के दर्शन ही किये थे. 'प्रश्न' आपके बहाने आने वाले पाठकों से था न कि केवल आपसे. मुझे मालुम है कि कवि-कवयित्री बेहद संवेदनशील होते हैं इसलिये उन्हें सोचने को बाध्य करता रहता हूँ.
    यदि केवल प्रशंसा पसंद है तो वही सही. आइन्दा कथ्य से आंदोलित होना छोड़ दूँगा.
    फिर भी 'लक्ष्मी' से कई अन्य अर्थ भी ग्रहण किये जा सकते हैं. यथा :
    १] लक्ष्मी अर्थात चिह्न दर्शाने वाली. इसी तरह लक्ष्मण का अर्थ भी चिह्न दर्शाने वाला. जिनमें माता-पिता के लक्षण (चिहन) दिखायी दें.
    २] लक्ष्मी अर्थात 'लक्ष' स्वभावी. 'लक्ष' का हिन्दी में 'लाख' रूप प्रचलित है जो कि संख्यावाची है. 'लक्ष' एक ज्वलनशील पदार्थ भी है. आपने पांडवों के प्रसंग में 'लाक्षागृह' सुना होगा. 'लक्ष' को जतुका भी कहते हैं. न्यायशास्त्र में 'जतुकाकाष्ठ न्याय' आता है. जिसका अर्थ होता है लकड़ी के साथ जिस प्रकार जतुका चिपकी रहती है, उसी प्रकार शब्द के साथ उसका अर्थ भी चिपका रहता है. इसका विस्तृत उपयोग साहित्य में मिलता है. लेकिन अब हम इसका यहाँ 'लक्ष्मी' के सन्दर्भ में अर्थ ग्रहण करते हैं. बेटी का स्वभाव परिवार से लाख की भाँति चिपके रहने [लगाव] का होता है. वह 'परिवार' नामक संस्थान को पारिवारिक भावना से भरती है. उससे ही हम सीखते हैं कि परिवार के प्रति समर्पण क्या होता है. वह जिस परिवार में जन्म लेती है उसकी स्मृति पूरी उम्र नहीं भुला पाती.

    ..... हमेशा रूढ़ शब्दों के पहले शाब्दिक अर्थ फिर ध्वनिपरक अर्थों को प्राथमिकता देता हूँ. लेकिन फिर भी भाषा-वैज्ञानिक और वैयाकरण की तलाश रहती है कि वे सही अर्थों तक ले चलें. गणेश और विष्णु के अर्थ भी इसी तरह समझे जा सकते हैं.
    ...... आपने अपेक्षित प्रतिउत्तर से, अपनी अभिव्यक्ति शैली से मुझे परिवार में बेटी के होने का बोध कराया. बहुत सुन्दर. आपकी नानी सही कहती हैं.

    .

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  23. .

    त्रुटि-सुधार :
    'जतुकाष्ठ न्याय' पढ़ें
    'जतुक' लक्ष का पर्याय है न कि 'जतुका'

    .

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  24. बहुत सशक्त बहुत संवेदनात्मक भिव्यक्ति ....

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  25. वसिष्ठ जी मेरी बातें बुरी लगी हों तो माफ़ी चाहूंगी और तारीफ मिले इस मकसद से नहीं लिखती मैं और सभी वरिस्थ जानो से हमेसा यही कहती हूँ की मेरी गलतियों से अवगत कराएँ मुझे क्यूंकि बहुत कुछ सीखना है अभी मुझे ऑरकुट की communities में भी आप देखेंगे तो मेरी रचनाओं पर बेबाक टिपण्णी की जाती है क्यूंकि मैं हर बार उस गलती को सुधारने की कोशिश हीं करती हूँ |
    हाँ मेरा जवाब हो सके बुरा लगा हो पर यह सवाल आपने हर लड़की के वजूद पर उठाया था न की मेरी रचना पर |
    प्रत्युतर हालाँकि मैंने बहुत सोच समझ कर दिया था हाँ और आपके उत्तर से भी काफी जानकारी मिली धन्यवाद

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  26. .

    बहुत पसंद आया आपका उत्तर. अब आपका प्रोफाइल देखने की इच्छा हुई है. मुझे संबंधों का बोध धीरे-धीरे हो रहा है. आपका प्रतिउत्तर-आक्रोश अनुचित नहीं लगा था. वह स्वभाविक था.
    आप लेखन-पथ पर अविचलित भाव से बढ़ें इसकी शुभकामना करता हूँ.

    .

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  27. Hahahahaha vasisth sir meri profile mein maine kuch likha hi nahi dekhne ka koi fayeda nahi

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  28. बेटी की सशक्‍तता इसी में है कि‍ वो तन, मन, धन से समर्थ सबल हो

    और ये दृष्‍टि‍ रखे
    http://rajey.blogspot.com/

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