सूर्य सम है इसमें तेज़ प्रबल
तू इसको निस्तेज न कर
कलम रही सदा निश्छल
तू इससे छल छद्म न कर
कलम से निकली जो शब्द सरिता
वही काव्य का रूप हुई
उद्वेलित, स्वच्छ सी यह सरिता
तू इसकी स्वच्छता न हर
प्रकृति सम साहित्य के रूप अनेक
हर रूप की सुन्दरता विशेष
भावनाओं में सागर सी गहराइयाँ
आशाओं में गगन सी उचाइयां
निबंध कहीं समतल सुघड़ है
गद्य कहीं पर्वत सा अटल है
प्रेम में अरण्य सी सघनता
विरह में सूने मैदान सी वीरानी
द्वेष व्यंग के कंक्रीटों से
अनुपम छटा बर्बाद न कर
कलम को कलम रहने दे
तू इसको कृपाण न कर
कलम चला है जब भी तो
देश के सम्मान हेतु
मानवता उत्थान हेतु
निर्बलों के त्राण हेतु
इसका गलत उपयोग न कर
अपने स्वार्थ हेतु
इसकी तू महानता न हर
सूर्य सम है इसमें तेज़ प्रबल
तू इसको निस्तेज न कर