माता ऐसा वर दे मुझको, सारे सदगुण मैं पा जाऊं
छोड़ सकूँ दुर्गुणों को सारे, दुर्बलता को भी तज़ पाऊं
अडिग रहूँ कर्तव्यपथ पर, लाख डिगाय न डिग पाऊं
अचल-अटल हो सकूँ शैल सी, हे शैलपुत्री ऐसा वर दो
रह सकूँ संयमित सदैव, संकल्प की दृढ़ता मैं पाऊं
उत्कृष्ट हो हर आचरण, हे ब्रह्मचारिणी ऐसा वर दो
स्वीकृत न हो अन्याय, न्याय की पक्षधर बन पाऊं
जगत कल्याणमयी हर सोच हो, चंद्रघंटा ऐसा वर दो
सूर्य किरणों सा तेज़ दो माता, अंधकारों से लड़ पाऊं
त्याग-प्रेम की ऊष्मा हो मुझमें, कुष्मांडा ऐसा वर दो
ममत्व नारी का सहज गुण, पराकाष्ठा उसकी बन पाऊं
अपने-पराये का भेद न हो, हे स्कंदमाता ऐसा वर दो
भटक जाऊं न राह कभी, गुरुर मातपिता का बन पाऊं
दिल से निभा सकूँ हर रिश्ता, कात्यायनी ऐसा वर दो
मानवता कल्याण कर सकूँ,पापियों का काल बन पाऊं
हो शक्ति पाप के नाश की मुझमें, कालरात्रि ऐसा वर दो
कर्तव्यविमुढ़ता ना आये कभी, परिस्थिनुरूप ढल पाऊं
कर्तव्यपरायणता सदा हो मुझमें, महागौरी ऐसा वर दो
छूटे न अधुरा संकल्प कोई, पूर्णता हर कार्य को दे पाऊं
खरी उतरूँ आशाओं की कसौटी पे, सिधिदात्री ऐसा वर दो
सार्थकता दे सकूँ नाम को अपने, आलोकिता मैं बन पाऊं
आलोकित करूँ अँधेरी राहों को, हे माता वो तेज़ प्रबल दे दो