रविवार, 12 दिसंबर 2010

SAY NO 2 CASTEISM

प्रणाम!!! क्या हुआ ?शीर्षक अंग्रेजी में देख कर असमंजस में पड़ गए का ?आज आलोकिता का स्टाइल इतना बदला बदला क्यूँ है ?दरअसल बात ये है न कि कल मेरे ब्लॉग का एक महीना पूरा हो गया इसीलिए आज हम सोचे कि कुछ स्पेशल लिखा जाए | कुछ रियल लाइफ का बात भी बताया जाय |अब जो बात जैसे हुआ है उसी भाषा में बताने में अच लगेगा न इसीलिए हम ग्रामर शुद्धता इ  सब छोड़ के बस जैसे बोलते हैं रियल लाइफ में वैसे हीं लिख दे रहे हैं |
हम एक ठोबात सोच रहे थे कि हम लोग के पूरा समाज का कथनी और करनी में केतना फर्क है न | किताब में हम लोग को का पढाया जाता है ?यही न कि जात-पात नहीं मानना चाहिए लेकिन जो टीचर चाहे मम्मी पापा हमलोग को no castism   वाला चैप्टर पढ़ाते हैं वही लोग न फिर castism भी सिखाते हैं | का गलत कहें ? अईसे तो कहा जाता है कि जात धरम नहीं मानना चाहिए सबको मिलजुल कर रहना चाहिए | हम इ पूछते हैं कि जब जात पात कुछ होइबे नहीं करता है सब इंसान एके है तो हम लोग को जात धरम के नाम पर बाँट काहे दिया जाता है?
कोई फॉर्म भरने चलो तो कोस्चन जरुर रहता है Candidate appearing for the exam belongs to 1.General  2.O.B.C  3.Sc/St.
बचपन से सिखाया जाता है कि जात पात मत मानो लेकिन 8th 9th तक पहुँचते पहुँचते स्कूल में cast certificate माँगा जाने लगता है | 10th के लिए 9th registration होता है न |अब शिक्षित बनना है तो बिना अपना जात जाने हुए बच्चा शिक्षित कईसे हो सकता है ?
जब हम छोटे बच्चे थे न तो इस मामले में बहुत बेवकूफ थे (इ मत समझिएगा कि अब ढेर तेज़ हो गए हैं ) इसके लिए बहुत मजाक भी उड़ा है |कभी कोई दोस्त की मम्मी पुच देती की कौन जात हो बाबु मेरा तो मुँह बन जाता था | हँस के कह देते थे पता नहीं आंटी | अईसे देखती थी लगता था सोच रही है च्च्च बेचारी जात तक नहीं पता इसको |और फिर लगाती थी अपना जासूसी दिमाग 'अच्छा पापा का पूरा नाम क्या है '? धीरे धीरे जब बड़े होने लगे तो कोई कोई दोस्त लोग भी पूछने लगी | हमको इ सब से कुछ फर्क नै पड़ता था | लेकिन फर्क पड़ा जब teacher लोग भी पूछने लगे ? एकदम G.K.कोस्चन टाइप हो गया था ' कौन जात हो'?
संस्कृत में सबसे अच नंबर आया अचानक क्लास में श्लोक बोलवाए हम सब सही सही बोल दिए तो सर बहुत खुश हुए | शाबाशी देने के लिए बुलाये और पूछते हैं की श्लोक तो बहुत शुद्धता से बोली मिश्रा जी हो की झा जी (मेरे नाम में कोई सर नेम नहीं है न )वो खुद मिश्रा जी थे |हिंदी वाले झा सर लंच में बुला कर पूछते थे 'पापा सरकारी नौकरी में हैं न रे लालाजी हो क्या ?हम पूछे लालाजी को हीं सरकारी नौकरी मिलता है क्या सर ?बोले नहीं रे एदम पागले हो इधर लालाजी लोग जादे है नौकरी में न गेस कर रहे थे | लेकिन गजब पागल हो तुम १२ साल की लड़की इतना भी नहीं पता की कौन जात के हो |बहुत बुरा लगा था सर के बोलने का तरीका हमको | घर आते आते मम्मी से पूछे थे उस दिन की क्लिअर  क्लिअर  बताइए हमलोग किस कास्ट के हैं ?कौन सा कास्ट बड़ा होता है कौन सा छोटा सब बताइए | सर के कारण पूछ रहे हैं इ बात नहीं बताये मम्मी को काहे कि सर का बुराई करना हमको अच्छा नहीं लगता था | एक बार रविदास जयंती के दिन मेरी दो दोस्त (जुडुवा थी ) नहीं आई बोल के कि
कंही जाना है | गुप्ता सर G.K. वाले पूछे ये सीता गीता का जोड़ी कँहा गायब है ? जब हमलोग बोले कि कंही घुमने गयी है तो सर बोले आज तो रविदास जयंती है| जोशी टाइटिल से से हमको पते नहीं चला इ लोग के बारे में | इंग्लिश सर किसी से पूछते नहीं थे खली अपना बताते रहते थे कि हम श्रीवास्तव जी हैं | शिवपूजन सहाय रिश्ते में मेरे दादा लगते थे (कैसे कैसे वो हमको याद नहीं है )खैर क्लास ८ में मेरा कास्ट क्या है ?जबतक नहीं पता था तब तक तो ठीक था, अब पता चल गया और कोई कास्ट पर कमेन्ट करे तो बुरा तो लगता है न |मेरी एक दोस्त फॉरवर्ड कास्ट की थी क्लास में नीचे से फर्स्ट करती थी | बेचारी को पता नहीं था कि हम O.B.C.में आते हैं बोली पता है यार हमलोग को बहुत घाटा हो जाता है सब जो इ सब छोटा जात वाला सब होता है कम नंबर लाके भी आगे हो जाता है रेजेर्वेसन के चलते | हम लोग मेहनत कर करके मर जायेंगे तो भी पीछे हीं रह जायेंगे | चूँकि मन में इ बात आ चुका था कि हम O.B.C. हैं बुरा तो लगना निश्चित था न | हम बोले हाँ यार तेरे को तो बना बनाया बहाना मिल गया, छोड़ वो तो बहुत दूर की बात है क्लास में तो reservation नहीं है मेरे नंबर के आसपास आके दिखा दे | पर ये कटाक्ष उसके दिमाग से ऊपर था समझी नहीं | लड़ने का मूड नहीं था सो हम भी बात पलट दिए |
कहने के लिए तो जाती प्रथा ख़तम हो चुका है पर सच्चे दिल से सोचिये की का सही में ख़तम हुआ है ?कोई भी गुण-अवगुण आदमी का अपना होता है जाती से नहीं मिलता |
नेट में कंही भी साईन इन करने क लिए फर्स्ट नेम लास्ट नेम लिखना पड़ता है , हम तो लास्ट नेम कुछो रखे ही नहीं खाली आलोकिता |पर अपना नाम क साथ गुप्ता बोलने में अच्छा लगा तो लिख लिए लो रे भाई फिर कास्ट में बांध दिया गया | ३-४ गो फ्रेंड रिक्वेस्ट आया Hii! Alokita ji I'm a gupta 2 so add me....| अरे भाई मेरे इ मेरा फ्रेंड लिस्ट है गुप्ता कम्युनिटी थोड़े है |
आखिर कब तक मानवता के बीच में इ जातीयता का दीवाल खड़ा रहेगा ? कब तक ? जब तक हम सही तरीका से जातीयता से ऊपर नहीं उठेंगे धरम निरपेक्ष नहीं बन सकते और मानवता हा हा हा हा सोचना भी पागलपना है | है की नहीं ? है न |

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

दीपक और बाती

















पूछा था उसने
क्या होता है प्रीत ?
कैसा होता मनमीत ?
जवाब मिला
दिए बाती सी प्रीत कँहा ?
दीपक से बढ़ मनमीत कँहा ?
दिए बिन बाती का अस्तित्व मिट जायेगा |
बाती बिन,भला दीपक कँहा जायेगा ?
उस बाती को भी मिल गया एक दीपक ,
और दीपक की हो गयी वह बाती |
प्रेमाग्नि में जलने लगी बाती |
सबने देखा जल उठा है दीपक |
खुश थी वह दीपक की आगोश में जाकर |
चमक रही थी घृत प्रेम का पाकर |
प्रेम घृत का कतरा भी जब तक मिलता रहा ,
जलने का सिलसिला तब तक चलता रहा |
जल कर राख़ हो चुकी थी बाती ,
पर दीपक अब भी तो नवेला था |
मिट चुकी थी उस पर एक बाती ,
दूसरी के लिए वह फिर से अकेला था |
नयी बाती को ह्रदय में बसाया ,
फिर से प्रेम का ज्योत जलाया |
तेज़ हवा का एक झोंका आया ,
ज्योत प्रेम का टिक न पाया |
ह्रदयवासिनी अब भी थी बाती ,
घृत प्रेम का भरा पड़ा था |
जीवन में फिर भी अँधेरा था ,
बाती थी, दीपक फिर भी अकेला था |
दिए बाती में सच्चा प्रीत कँहा ?
हाँ इनमें सच्चा मनमीत कँहा ?

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

मेरी मंजिल

मेरी मंजिल आँखों से तो नज़र आती है
जितनी आगे बढूँ वह और पीछे हो जाती है
मृग तृष्णा सी मंजिल मुझे भगाती है
थक कर जो बैठूं आँखों से ओझल हो जाती है

क्षितिज पर जा बैठी है मंजिल मेरी
बुलाती है जल्दी आ कहीं  हो जाए न देरी
कहीं कोई और न पा जाये मंजिल तेरी
कहकर डराती है मुझको मंजिल मेरी

आँखें राहों पर रखूं तो मंजिल खो जाती है
मंजिल पर आँखे रखूं तो ठोकर से गिर जाती हूँ
वँहा पहुँचने का सही तरीका समझ नहीं पाती हूँ
मेरी दशा देख मंजिल मेरी मुस्कुराती है

मंजिल कभी थोड़ी हीं दूर नज़र आती है
अँधेरे से मन में आशा की ज्योत जलाती है
अगले छण बड़ी दूर नज़र आती है
आँखों में निराशा सी छा जाती है

मंजिल कभी जड़े की धूप सी खिलखिलाती है
कभी पंख खोल स्वप्न परिंदे सी उड़ जाती है
मुस्कुराकर वह साहस मेरा बढाती है
बान्हे फैलाये मंजिल मुझे बुलाती है 

जीवन सवेरा

यह जीवन खिलखिलाता सवेरा ,
मौत है एक गहरा अँधेरा |
अभी सवेरा है कुछ काम कर लो ,
फिर अँधेरे में तो सोना हीं है |
दुनिया के नजारों से कुछ सिख लो,
अंधेरों में फिर इन्हें खोना हीं है |
यूँ मूंद कर लोचन, दिन में सो जाओ मत,
रात होने के पूर्व अँधेरा जीवन में लाओ मत|
आशा खोकर जो लोग निराशा में जीते हैं ,
अंधेरों में लिपट गम का विष वही पीते हैं|
कुछ लोग जो कड़ी धूप को सहते हैं,
शीतल वर्षा बूंदों का मज़ा वही लेते हैं|
धूप से डरकर, जो घर में सो  जाते हैं,
वर्षा बूंदों से अन्जान वही रह जाते हैं |
पहले कडवी निबोरी चख कर तो देखो,
फिर आम की मिठास और बढ़ जाती है|
मुश्किलों को गले लगा कर तो देखो ,
सफलता की खुशी दुनी हो जाती है |
तू कुछ करे, न करे, इस दिन को ढल जाना है,
चाहे तू या न चाहे, मौत के आगोश में जाना है|
मौत के भय से जीना तुम छोड़ो नहीं ,
मुश्किलों से डर साफलता से मुंह मोड़ो नहीं|
उजाला है चल निरंतर ,
तू मंजिल पा जायेगा |
जब छाएगा घोर तिमिर,
मंजिल क्या तू भी विलीन हो जायेगा|
तू खड़ा अब क्या सोच रहा ?
वह देख तिमिर छाने को है |
सदुपयोग करले जीवन का ,
यह दिवस न फिर आने को है|  

मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

कितना बदल गया है न सबकुछ अचानक | मैं जिसके लिए लिखना सबसे कठिन काम होता था, जो ९ बजते बजते सोने के लिए बेचैन हो जाता था, वही मैं आज रात के १:३० बजे बैठ कर डायेरी  लिख रहा हूँ और वो भी क्यूँ ? क्यूंकि अपने दिल की बात अपने सबसे अच्छे दोस्त अपने पापा से नहीं कह पा रहा | मैंने अपनी जिन्दगी में हमेशा आपको एक दोस्त की भूमिका में पाया है फिर अचानक आप इतने ऊँचे कैसे हो गए ? अचानक आप पिता बन गए जिसके पास सारे अधिकार है, जिसके सामने कुछ नहीं कह सकता क्यूँ पापा ? अब तक आप मेरी हर छोटी से छोटी खुशी का ख्याल रखा है पर जब मैंने अपने जीवन की सबसे बड़ी खुशी मांगी तो आप मेरी खुशियों के दुश्मन बन बैठे क्यूँ पापा ?अगर मैं किसी से प्यार करता हूँ उसे अपनाना चाहता हूँ तो बीच में आपकी इज्ज़त और ये समाज कँहा से आ जाता है पापा? जिन्दगी मुझे गुजारनी है उसके साथ समाज को नहीं | आप ने और मम्मी ने तो कह दिया इतनी हीं पसंद है तो उसी के पास चले जाओ | उसमे और हममे से किसी एक को चुन लो | पर मेरे लिए ये इतना आसान नहीं है | धड़कन और सांसो में से किसी एक को कैसे चुन लूँ ? दोनों हीं जीवन के लिए उतने हीं जरुरी हैं | आप लोगों ने जब से कहा मैंने उससे बात भी नहीं की | देखिये न पापा उसका नाम तक नहीं लिख पा रहा| जेहन में उसका नाम आते हीं हाथ कांप जा रहे हैं |लेकिन मैं खुश नहीं हूँ पापा | जिन्दा तो हूँ पर मैं जी नहीं रहा हूँ |आप लोग कहते हैं की मैं बेशर्म हो गया हूँ, मेरी आँखों का पानी मर चुका है | लेकिन ऐसा नहीं है पापा| मेरी आँखों में पानी तो है पर गलती से, हाँ गलती से हीं इन आँखों ने कुछ सपने भी देख लिए हैं |
कई दोस्तों ने सलाह दी कि कोर्ट मैरेज कर लो तुम बालिग हो | वैसे देखा जाए तो सही हीं है न पापा मैं २४ साल का हो चुका हूँ वो भी तो २१ की है पर हम ये कदम नहीं उठा सके | न मैं आपके खिलाफ जा सका न वो अपने पापा की इज्ज़त को नज़रंदाज़ कर पायी | कैसी विडंबना है न पापा जिस माँ बाप ने हमे अधिकार का मतलब समझाया,अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया वही माँ बाप हमारे सहज अधिकार को नकार रहे हैं और हम कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं क्यूंकि हम जकड़े हुए हैं उनके प्यार के मोह में, बंधे हुए हैं अपने so called संस्कारों में | खैर ये सब मैं लिख गया आवेग में आप से कह नहीं पाउँगा न हीं आप कभी ये पढ़ पाएंगे क्यूंकि अगर आप इसे पढ़ भी लें तो क्या फ़ायदा ? कुछ पल के लिए एक पिता का दिल पिघल भी जाय तो क्या आपने अपने चारों ओर जो इज्ज़त और प्रतिष्ठा के ऊँचे ऊँचे दिवार खड़े कर रखे हैं उनको मैं नहीं हिला सकता | मैंने जो भी लिखा बस अपने मन की शांति के लिए लिखा है | उम्मीद तो नहीं पर शायद मन शांत हो जाए |मेरे अरमानो की तरह मेरी डायेरी का यह पन्ना भी राख हो जायेगा | फर्क सिर्फ इतना है की अरमानो को आपने जलाया इस पन्ने को मैं जलाऊंगा |यह तो जलकर राख हो जायेगा पर मेरे अरमान जलकर भी तड़प रहे हैं |   

अल्पा या कमला ...................

शर्माजी बड़े हीं उत्साहित नज़र आ रहे थे और जब वे उत्साहित हों तो घर शांत कैसे हो सकता था | श्रीमती जी चिल्ला रहीं थी अरी कमला जल्दी कर नाश्ता ला बाबूजी को जरुरी काम से जाना है न |कुछ समझती नहीं कामचोर कहीं की, किसी काम का ढंग नहीं | पता नहीं माँ ने क्या सिखाया है | सोचा होगा सीखा के क्या फ़ायदा अपने साथ थोड़े रहने वाली है पड़ेगी जिसके पल्ले वह समझे | अरे भोगना तो हमे पड़ रहा है न | बाप ने समझा होगा १५ लाख दे दिया बेटी महारानी बनकर रहेगी | किचन से कमला चिल्लाई माँ जी मेरे मम्मी पापा पर मत जाइये समझीं आप | सुबह ४ बजे से उठ कर लगातार काम हीं तो कर रही हूँ | छोटी जी थीं तो मैंने भी देखा है आपने कितना काम सीखा कर भेजा है ससुराल | बहु न हो गयी गुलाम हो गयी | मैं भी इंसान हीं हूँ रोबोट नहीं जो आपके इशारों पर नाचती रहूँ | और नास्ता लाकर शर्मा जी को दे दिया ' बाबूजी नाश्ता' | छोटे शर्मा जी आँखे दिखाकर बोले तुम्हे नहीं लगता कमला तुम कुछ ज्यादा बोलती हो ? माँ बड़ी हैं तुमसे, तुम चुप भी रह सकती थी| कमला ने कहा आपका मतलब ...... बीच में हीं बात काटते हुए छोटे शर्मा जी बोले फिर से महाभारत मत शुरू करो | मुझे भी नाश्ता दो जल्दी से | सासु माँ का रेडियो तो अभी तक ऑन था | जाने कितनी हीं बार कमला के किन किन रिश्तेदारों को क्या क्या गालियाँ दे चुकी थीं फिर भी उनका स्टॉक ख़त्म नहीं हुआ था | शर्मा जी जो अब तक बाहर जाने के लिए उत्साहित थे बेटे की थाली देख कर उबल पड़े | वाह बहू क्या न्याय है तेरा | रिटायर्ड हूँ इसका मतलब ये नहीं तेरे पति की कमाई खता हूँ | पेंसन देती है सरकार मुझे और अगर अपने बेटे की कमाई खता भी हूँ तो तुझे क्यूँ बुरा लगता है, उसे इस लायक बनाया भी तो है मैंने | तेरे बाप से तो इतना तक न हो सका की लड़के को बिजनेस बढ़ाने के लिए १० - २० लाख दे दें |साफ़ मुकर गए की अभी तो शादी वाला हीं क़र्ज़ नहीं उतरा | श्रीमती जी को एक नया जोश मिला फिर फुल वोल्यूम पर रेडियो स्टार्ट | कमला:-  पर बाबूजी मैंने ...........| शर्मा जी:- अरे चुप रहो हमे रुखी रोटी और साहबजादे को आलू के पराठे | कमला;- आपको सुगर है न | छोटे शर्मा जी ने भी हामी भरी | शर्मा जी बोले तुम्ही लोग तो डॉक्टर हो न, बीमारी न मारे उससे  पहले तुम्ही लोग मार डालोगे और थाली पटक कर बाहर चले गए | छोटे शर्मा जी खाना तो चाह रहे थे (उन्होंने स्पेसिली बोल कर बनवाया जो था ) पर यह नहीं चाहते थे कि  माँ का तीर कमान उनकी तरफ घुमे और उन्हें कुपुत्र या बीवी का गुलाम जैसी उपाधियों से नवाजा जाय, उठकर दुकान चले गए | कमला खड़ी रो रही थी | सासु माँ चिल्लाईं मगरमच्छ के आँसु मत बहओ, मिल गयी शांति मर्दों को भूखा भेज कर | कमला पलटकर जाने लगी तो फिर उन्होंने कहा चली महारानी कोप भवन में | कमला ने जाते जाते कहा मैं चली गयी कोप भवन में तो उसके बाद तो भगवान हीं मालिक है इस घर का, आपका हीं नाश्ता लेने जा रही हूँ | अभी कपडे धोने भी बाकी हैं | उधर शर्मा जी गिल साहब के दफ्तर पहुँच गए | यँहा बहू के मायके से पैसे ऐंठने न, मिलने पर बहू को रश्ते से हटाने के सारे गुर बताये जाते थे | हत्या को आत्महत्या सिद्ध करने के लिए सुसाइड नोट के सैम्पल  भी मिलते थे और सबसे बड़ी बात प्राइवेसी  मेन्टेन  किया जाता था | आज तो यँहा आकर सोचा बहुत अच्चा  दिन है लकी ड्रा निकाला जा रहा था | जितने वाले को ५० % डिस्काउंट मिलने वाला था ऊपर से गिल साहब से मुलाकात, जो सारा रिस्क लेने को तैयार थे | ४० साल का अनुभव था भाई | इन ४० सालों के अपने वकालती करियर में कितनो को हीं दोष मुक्त कराया है उन्होंने | कानून का तोड़ मरोड़ सब जानते हैं वे | लकी ड्रा के लिए शर्मा जी ने अपना नाम भी दिया |रिजल्ट आया तो उनका दिल टूट गया | गिल साहब आज सिर्फ प्रथम स्थान वाले से मिलेंगे बाकी लोगों से कल सुनकर शर्मा जी झुंझला गए | इधर उधर से पता चला किसी कृष्णकांत को प्रथम स्थान मिला है पर शायद यह काल्पनिक नाम है | घर जाकर बहू से बोले कल सवेरे ७ बजे तक मुझे निकल जाना है जरुरी काम है | अगले दिन सुबह ६:५५ पर उनके मोबाइल पर फोन आया उनका दामाद रो रहा था, बाबूजी अल्पा छत से गिर गयी लाख कोशिशों के बाद भी हम उसे बचा न सके | शर्मा जी सन्न थे | कृष्णकांत ................. प्रथम स्थान ................ कृष्ण कान्त शर्मा ................. अल्पा के ससुर | अभी उन्होंने किसी से कुछ कहा नहीं था बस स्तब्ध थे | तभी मुस्कुराती हुई कमला बोली बाबूजी ७ बज गए आपको कहीं जाना था न और ये लीजिये लंच कल तो शाम में आये थे दोपहर में कुछ खाया नहीं होगा आज जब मौका मिले खा लीजियेगा | बाबूजी लीजिये न और जाइये बहुत जरुरी काम था न |शर्मा जी कुछ सुन नहीं रहे थे बस देख रहे थे मुस्कुराती कमला में खिलखिलाती हुई अपनी नन्ही अल्पा को और फिर अचानक खून में लथपथ एक लाश ..............जिसे पहचानना नामुमकिन था अल्पा है या कमला .........      

रविवार, 5 दिसंबर 2010

नयन






नयनों की वाक पटुता पर |
मुग्ध हूँ मुकवाचालता पर |
न कुछ कहकर भी सबकुछ कह जाते हैं|
दिल की बातों से हमे अवगत कराते हैं |
बेजुबां जानवर क्यूँ इतने स्नेहमयी होते हैं?
क्यूंकि जुबां से नहीं नयनों से बात करते हैं |
जुबां तलवार की तेज़ धार है |
करती ह्रदय को जार-जार है |
आँखों में गहराई है इतनी ,
आसमां में ऊंचाई है जितनी |
ये नाराजगी भी कितने प्यार से जताते हैं |
बिन कहे हमारी गलती का एहसास कराते हैं |
नयन परायों को अपना बना लेते हैं |
अपनों से अपनत्व भी बढ़ाते हैं |
आँसु छलका कर पश्चाताप दर्शाते हैं |
दिल के दर्द, विवशता का एहसास भी कराते हैं |
नयनों की वाक पटुता पर |
मुग्ध हूँ मुक वाचालता पर |

शनिवार, 4 दिसंबर 2010

एक दास्ताँ


 उन भुली बिसरी बातों में
खोई हूँ तुम्हारी यादों में
बीते थे वो सावन मेरे
बैठ के डाली पर तेरे
तुम्ही पर तो था प्यारा घोंसला मेरा
तुम्हारे हीं दम से था बुलंद हौंसला मेरा
तुम्ही पर रह मैंने चींचीं  कर उड़ना सीखा
जीवन की हर मुश्किल से लड़ना सीखा
काट कर कँहा ले गए तुम्हे इंसान ?
बन गए हैं ये क्यूँ हैवान ?
मुझे रहना पड़ता है इनके छज्जों पर
जीना पड़ता है हर पल डर डर कर 
मैंने तो खैर तुम पर कुछ साल हैं गुजारे
पर कैसे अभागे हैं मेरे बच्चे बेचारे
कुछ दिन भी वृक्ष पर रहना उन्हें नसीब न हुआ
कुदरती जीवन शैली कभी उनके करीब न हुआ
काश! वो दिन फिर लौट आये
हरे पेड़ पौधे हर जगह लहराए

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

नज़रिये

हर सिक्के के दो पहलू , तुम्हे कौन सा भाता है ?
सब अच्छा या बुरा तुम्हे सोच किधर ले जाता है ?
रात है एक गहरा अँधेरा या रात क बाद नया सवेरा ?
सूर्य गर्मी से तड़पाता  या हमे ऊर्जा पहुँचाता है ?
मेघ बरस कर स्वत्व मिटाते या नया जीवन पाते हैं?
सागर का पानी खारा है या वह सबको शरण देने वाला है ?
तरबूज बीजों से भरा या कि बड़ा हीं रसीला है?
पादप न चल सकते  या जीवन भर बढते रहते हैं ?
सूरज से रौशनी लेता चाँद या तुम्हे चांदनी देता है ?
चाँद में है दाग या सुन्दरता का प्रतीक वह होता है ?
फूल खिलते हैं मुरझाने को या मधुर सुगंध फ़ैलाने को ?
चिराग तले अँधेरा है या वह रौशनी फैलाता है ?
सुई वस्त्र में छेद करता या धागे के लिए राह बानाता है ?
अग्नि सबको जलाती  या भोजन वही पकाती है ?
पर्वत राहों को रोका करते या ऊपर चढ़ने का मौका देते हैं ?
मोती बेचारा कैद रहता या सीप उसकी रक्षा करता है ?
कुत्ते लालची होते या वे वफादारी निभाते हैं?  
मधुरता से पक्षी चहचहाते या व्यर्थ शोर मचाते हैं ?
शिक्षक ने तुम्हे मारा या गलतियों को सुधारा है ?
मुश्किल राहें डराती या साहस तुम्हारा बढ़ातीं हैं ?
सबसे कुछ सीखा करते हो या कमियाँ ढूंढा करते हो ?
जन्में तुम मरने के लिए या सुकर्म निरंतर करने के लिए ?
सोच कर देखो तुम्हे सोच किधर ले जाते हैं ?
नज़रिये के बदलने से नज़ारे भी बदल जाते हैं |
गलत सोच सदा परिणाम गलत हीं लाते हैं |
सही सोच मंजिल का पता हमे दे जाते हैं |

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

श्रेष्ठ किसे कहें ?

हे मनुष्य ! तुम धरती के श्रेष्ठ जीव क्यूँ कहलाते हो ?
क्या तुम किसी को खुशी दे पाते हो ? 
जीवों की हत्या और साथ में पेड़ भी कटवाते हो !
औरों को छोड़ो अपनी माता धरती को भी बदहाल बनाते हो |
किस हक से तुम श्रेष्ठ जीव कहलाते हो ?
यूँ तो तुम संवेदनशील , चिंतनशील 
और न जाने कौन कौन शील प्राणी कहलाते हो |
प्रियजनों की मृत्यु को तुम अप्रिय बताते हो |
फिर क्यूँ औरों को मृत्यु बांटते जाते हो ?
तुम धरती के श्रेष्ठ जीव क्यूँ कहलाते हो ? 

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

माँ और पिता

आज 2 दिसम्बर, मेरा जन्मदिन है | मुझे जन्म मेरे मम्मी पापा ने दिया है, आज उन्ही की वजह से मैं इस दूनिया में हूँ अतः उन दोनों को ही अपनी रचना समर्पित करती हूँ |
                   माँ
माँ  तो एक पहेली है |
      कभी ममतामई |
तो कभी गुस्से वाली है |
सख्त होती कभी इतनी,
कि चट्टान भी धरासाई हो जाए |
नर्म हो जाती कभी इतनी ,
गुलाब की पंखुड़ी भी सख्त पड़ जाए |
घर की आधारशीला हैं वो ,
बच्चों की भाग्य विधाता भी |
गंगा की निर्मल धारा है ,
कभी उसका रूप ज्वाला है |
इस अंधियारे जग में वही तो एक उजाला है |
माँ तो एक पहेली है |
     कभी ममतामई |
तो कभी गुस्सेवाली है |


               पिता 
माँ की सहृदयता को सबने जाना 
पिता को किसी ने नहीं पहचाना 
माँ अगर है जन्मदाता 
तो पिता भी हैं पालनकर्ता 
पिता की कठोरता में हीं तो है कोमलता 
गुलाब की रक्षा काटा  हीं तो है करता
यह कठोर दाँत न हो अगर भोजन कौन चबायेगा ?
काम करने क लिए उर्जा शरीर कँहा से पायेगा ?
होते हैं नारियल जैसे पिता 
अन्दर से कोमल ऊपर झलकती कठोरता 
पिता तो एक छाते से होते हैं 
इस  दूनिया की धूप पानी से हमे बचाते हैं
पिता के प्यार कुर्बानी आदि को हम झुठला नहीं सकते 
जिन्दगी में उनकी अहमियत को भुला नहीं सकते 

मंगलवार, 30 नवंबर 2010

कर्म और भाग्य

तू कर्म कर,करती हीं जा |
रुक नहीं, आगे बढती हीं जा |
आशाएं है कई तेरे भीतर |
क्षमताएं भी अगणीत  तेरे अन्दर |
राह लम्बी हुई तो क्या ,
थक कर तुझे रुकना नहीं |
बाधाएँ बड़ी हुई तो क्या ,
डर कर तुझे झुकना नहीं |
भाग्य के आँचल में लिपट मत |
थाम ले तू कर्म का दामन |
मुश्किल बाधाओं से तुझे डरना नहीं |
बुझदिली का काम तुझे करना नहीं |
मुश्किलें जब जब आतीं हैं ,
पत्थर को हीरा कर जातीं हैं | 
आग में तपे बिना, सोने को चमक मिलती नहीं |
पत्थर पर पिसे बिना, मेहंदी की लाली खिलती नहीं |
मेहनत हीं है सच्चा श्रींगार तेरा |
कर्म से हीं होगा उद्धार  तेरा  |
सौभग्य पर इठला नहीं |
दुर्भाग्य से झल्ला नहीं |
जिन्दगी की आसमां के ये टिमटिमाते तारे |
कर्म सूर्य  के उदित होते छिप जाते सारे |
जब सूरज तेरे हाथ में तो 
तारों की क्यूँ फिकर तुझे ?
जब कर्म तेरे साथ में तो 
भाग्य से क्यूँ डर तुझे ?
जुड़ी तुझसे है आशाएं अपार | 
खोल न तू निराशाओं  के द्वार |
कर्म से जीत सके नियति में इतना दम कँहा ?
तुझे पराजित करे उसे इतनी हिम्मत कँहा ?
बस तू कर्म कर करती हीं जा |
भाग्य को छोड़ आगे बढती हीं जा | 


सोमवार, 29 नवंबर 2010

वह नारी

देखा था मैंने 'उस' नारी को,
फूलों सी कोमल सुकुमारी को |
जन्म लेते होठों पर उसकी एक हँसी खिली थी,
परियों सी प्यारी वह एक नन्ही कली थी|
उन आँखों में कुछ आशा थी,
पर चारों ओर निराशा थी|
निराशा थी कुछ गरीबी की,
कुछ थी 'उसके' जन्म की |
डर था कुछ चिंताएं थीं ,
भय और कुछ शंकाएँ भी |
क्या यह नन्ही कली खिल पायेगी ?
या गरीबी के धुल में मिल जाएगी ?
क्या यौवन का फूल हँस पायेगा ?
या किसी के हाथों मसला  जायेगा ?
सीता के लिए था एक रावण,
जो अब कदम कदम पर बसता है |
महाभारत में था था एक दुर्योधन,
पग पग पर जो अब हँसता है |
सीता को तो राम मिले थे,
द्रौपदी को कृष्ण सहाय हुए थे |
इसे भी कोई राम मिलेगा क्या ?
इसके लिए कोई कृष्ण बनेगा क्या ?
नियति उसके साथ में नहीं था,
मौत भी उसके हाथ में नहीं था |
जन्म लिया तो उसे जीना ही था,
गम को खाके आंसुओं को पीना हीं था|
अध् खिली थी यौवन  की कली अभी ,
पर संकटें आ चुकी थी सभी |
हर एक कदम पे रावण, तो दुसरे पर दुर्योधन खड़ा था |
न राम ना हीं रक्षा में उसके कोई कृष्ण खड़ा था |
मौके पर सबने उसे अंगूठा हीं दिखलाया |
काम आया तो बस आत्मबल हीं काम आया |
नहीं थी वह निर्बल, शक्तिहीन, अबला |
थी वह तो सबल, सशक्त, सबला |
देखा है आज भी मैंने उस नारी को ,
कष्टों में घिरी देखा उस  बेचारी को |
होठों पर उसके अब हँसी नहीं है ,
आँखों में अब आशाएं नहीं है |
गरीबी की भट्टी और भाग्य के आंच में खूब तपी है ,
पर चमकता सोना नहीं वह तो पत्थर बन चुकी है |
पत्थर क्यूँ? क्यूंकि वह रोती  नहीं है ?
री अभागिनी तू क्यूँ रोती नहीं है ?
हाँ वह क्यूँ रोएगी ? रोकर वह क्या पायेगी ?
रोने से क्या नियति बदल जाएगी?
विधि को उसपे तरस  आएगी ?
नहीं वह नहीं रोएगी कभी नहीं रोएगी |
भाग्य नहीं कर्म हीं की होकर रहेगी |
कर्म हीं से से तो वह रोटी पायेगी |
भाग्य भरोसे बस आँसु पायेगी |
रोकर वह क्या क्या कर पायेगी ?
क्या भाग्य को बदल पायेगी ?
नहीं वह दरिद्र है, दरिद्र हीं रह जाएगी |
नारी है बस नारी हीं रह जाएगी |
पत्थर है सोना नहीं बन पायेगी |
हाँ मजदूरनी है बस वही बनी रह जाएगी |


रविवार, 28 नवंबर 2010

मेरी प्यारी सपना
हो सके तो मुझे माफ़ कर देना |वैसे मैंने अपनी इस छोटी जिंदगी में जितनी गलतियां , नहीं गलती कहना एक और गलती होगी मैंने जितने पाप किये हैं उसके लिए तो शायद भगवन भी माफ़ न कर सके | सच कहूँ तो मैं दौलत की लालच में अँधा हो गया था बिल्कुल अँधा |जानता हूँ आत्महत्या कायर लोग करते हैं पर मैं जीकर भी तो हरपाल मरता हीं रहूँगा, दिल पर इतना बोझ लेकर, इतनी आंहे लेकर मैं नहीं जी सकता | आत्महत्या कानून की नजर में अपराध है, तो मैं कानून पर चला हीं कितना हूँ ? मैं भी तो एक अपराधी हीं हूँ | इस दूनिया से जाने से पहले मैं अपने दिल की बात तुम्हे बताना चाहता था पर मैं कह नहीं सकता इसलिए
ये पत्र लिख रहा हूँ | इस इन्टरनेट के ज़माने में पत्र अजीब लगता है न पर सपना यह पत्र नहीं मेरे जीवन का सारांश है | बचपन से मुझे अच्छे स्कूल में पढाया गया वँहा बहुत से आमिर बच्चे भी थे जिनकी रईसी देख मैं ललच जाता था | बिल्कुल तुम्हारी तरह माँ भी समझाती रहती थी | मैं काफी तेज़ स्टुडेंट भी था ये तो तुम जानती हीं हो | मेरी महत्वाकांक्षाएं भी काफी बड़ी थीं | जिस दिन I.I.T के लिए मेरा सेलेक्सन हुआ था माँ इतनी खुश थीं मनो मैं विश्व विजय करके लौटा हूँ | आज जब अतीत के पन्नों पर झांकता हूँ तो लगता है जैसे मेरे जीवन का सबसे काला दिन वही था |कितने कोचिंग वालों ने contact किया था मुझसे| कोई ५० हज़ार तो कोई ७५ हज़ार देने को तैयार थे सिर्फ अपना फोटो और लिखित प्रमाण देने के लिए की मैंने उनकी कोचिंग से पढाई की है | पापा ने माना किया पर मैंने अपनी कसम देकर उन्हें मना लिया| उस दिन एक दिन में मैंने डेढ़ लाख कमाए थे | उसी दिन से मेरे सर पर दौलत का भुत स्वर हो गया | पहला सेमेस्टर ख़त्म हीं हुआ था की एक कोचिंग वाले सर ने फिर मुझसे कांटेक्टकिया और कहा आने वाले एंट्रेंस एक्साम में एक लडके की जगह तुम्हे परीक्षा देनी है ३ लाख मिलेंगे | एक परीक्षा और ३ लाख मैं बहुत खुश हुआ पर पापा मम्मी  की ईमानदारी का
सबक याद आ गया | मैंने अनमने ढंग से कहा सेटिंग  नहीं सर ये गलत है |शायद उन्होंने ३ लाख के नाम पर मेरी आँखों में आये चमक को भांप लिया था |मुझे समझाने लगे की ये तो समाज सेवा है बेचारे जो बच्चे खुद से पास नहीं कर पते उन्हें पास करना है और ऊपर से पैसे भी तो मिल रहे हैं |मुझे पुलिस के डंडे से भी बहुत डर लगता था | उन्होंने मेरे सिनिअर से मिलाया जो  पहले से इस काम में था, उसे ५ लाख मिल रहे थे | वह बड़े स्तर की परीक्षा  देने वाला था मुझे तो स्टेट लेवल देना था अनुभवी नहीं था न |उसके बाद मैं आगे बढ़ता गया या कह लो जुर्म की दलदल में धंसता गया | बहुत बड़ा दल था, मेडिकल, इंजीनियरिंग, रेलवे सबका सेटिंग कराया जाता था और सेटिंग भी तरह तरह के |पता है मैं पहले सोचता था कि लडकियां रिस्क नहीं लेतीं पर उस दल में शामिल होने पर पता चला कि लडकियां यंहा भी पीछे नहीं है |हमारी शादी के बाद जब तुमने समझाया मैंने कोशिश की पर छोड़ नहीं पाया |तुमसे झूठ कह दिया कि मैंने गलत काम छोड़ दिया | अब मैं परीक्षा देता नहीं बस बच्चों को तैयार करता हूँ उस कोचिंग वाले सर कि तरह | तुमसे ज्यादा वफादारी मैंने उन लोगों के साथ निभाई है | सबसे हेड कौन है
ये तो मैं आज भी नहीं जानता पर कैसे कैसे सेटिंग होता है मैं सब जानता हूँ | जब हमे ज्यादा स्टुडेंट्स मिल जाते हैं उस बार पूरे सेंटरको हीं खरीद लिया जाता है| स्टुडेंट्स भी अपने, इन्विस्लेटर भी अपने और गार्ड्स भी अपने | जँहा एक दो स्टुडेंट्स होते हैं उनके लिए मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है | उनके जैसे मिलते जुलते चेहरे वाले बच्चे को ढूंढा जाता है फिर हमारे फोटोग्राफर दोनों बच्चों के चेहरे को मिलाकर फोटो बनाते हैं |खैर मैं तुम्हे डिटेल में क्यूँ बताऊँ ? कंही तुम भी सेटिंग करने लगी तो ........हाहा हा हा just kidding yaar .जीवन में मेरी यह आखिरी हँसी है (हँसने का मुझे हक है भी नहीं ) कितने बच्चों का कैरिअर बर्बाद किया है | कितने हीं बच्चों ने आत्महत्या तक कर ली | सोचकर बुरा लगता था पर पैसे देख सब भूल जाता था मैं | जिन बच्चों को मैंने पास कराया उनके लिए भी तो गलत हीं किया | मैं सब भूल सकता हूँ पर रवि कि मौत नहीं | उसे इस दलदल में लेन वाला तो मैं हीं था | हम दोनों ने साथ में इन सब कामों को छोड़ना चाहते थे | हमारे खिलाफ बहुत सबूत थे उन लोगों के पास, मैं डर गया उन लोगों की धमकी से पर रवि नहीं डरा | उसने  आत्मसमर्पण कर दिया संयोग से ईमानदार इंस्पेक्टर भी मिल गया पर नतीजा क्या हुआ ?रवि को मार डाला गया और क़त्ल के इल्जाम में वह इंस्पेक्टर जेल गया | रवि इस दूनिया में नहीं रहा उसके गम में चाची मर गयी चाचा पागल हो गए सब की वजह मैं हूँ |उस इंस्पेक्टर के २ बच्चे अनाथों की जिन्दगी जी रहे हैं मेरी हीं वजह से | कहते हैं जब जागो तभी सवेरा पर हमारे जुर्म की दुनिया में जिसका जमीर जग जाता है उसके जीवन में अँधेरा छा जाता है | इतने सारे पापों का बोझ लेकर मैं नहीं जी सकता सपना नहीं जी सकता मैं | मेरे सारे गुनाहों की तो माफ़ी मिल नहीं सकती |तुम्हारे साथ तो मैं सात वचन तक निभा नहीं सका | हो सके तो मुझे माफ़ कर देना सपना |
तुम्हारा (कभी बन नहीं सका )
अविरल

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

क्या मैंने गलत किया ?

मैं दुर्गा कई दिनों से एक कशमकश से जूझ रही हूँ | एक अंतर्द्वंद में पीसी जा रही हूँ |किस से कहूँ अपने दिल की हालत पर आज अगर खुद को व्यक्त न करूँ तो शायद यह अंतर्द्वंद मुझे मर हीं डाले | मैं सिर्फ यही सोच रही हूँ कि क्या मैंने गलत किया ? आज भी याद है मुझे अपना बचपन जब मैं कुछ भी कहती पापा मुझे वह खरीद कर देते थे और मैं पगली डरती थी कि कहीं दुकानदार अपनी चीज़ वापस न ले ले तब एक दिन पापा ने समझाया था कि मैंने जो चीज़ पैसे देकर खरीद दी  वह तुम्हारा हो गयी  | अब दुकानदार का उसपर कोई हक नहीं | पापा ने मेरी हर मांग पूरी की है मैंने भी उनका हर कहना माना है | मैं पापा की एकलौती संतान हूँ  इसलिए उनकी सारी आशाएं भी मुझसे हीं जुडी थी | उनका सबसे बड़ा ख्वाब  था मेरा I.A.S बनना ताकि जिन लोगों ने उन्हें बेटी का बाप होने पर ताने मारे थे और बेटों का घमंड दिखाया था उन लोगों का मुंह बंद हो सके | मैंने भी जी जान लगा दी और मेरे I.A.S बनते हीं लोगों के मुंह पर ताला भी पड़ गया | पापा फुले न समाते थे तब माँ ने याद दिलाया की मैं एक बेटी हूँ, पराया धन | पापा को भी एहसास होने लगा की जवान बेटी बाप के कंधे पर बोझ होती है और मुझ बोझ को उतारने का वक्त आ गया है | आत्मनिर्भर हो कर भी मैं एक बोझ थी | खैर मेरे लिए उपयुक वर की तलाश होने लगी | जल्द हीं यह तलाश ख़त्म हो गयी | मुझ से ३ बैच सीनियर एक I.A.S ढूंढा था मेरे पापा ने अपनी लाडो के लिए | सभी कह रहे थे लड़का हीरा है हीरा और उस हीरे की कीमत  उसके जौहरी माँ बाप ने  तय किया था २५ लाख | मैंने पापा से कहा दहेज़ .......ये गलत है पापा | उन्होंने कहा यही रीत है बेटी और फिर मेरी सारी कमाई तेरे लिए हीं तो है, तू ज्यादा सोच मत कुछ भी गलत नहीं है | माँ ने इज्जत, मान-मर्यादा बहुत कुछ समझाया जिसका सारांश था कि अपने पापा की परेशानी में परेशां होने का अब कोई हक नहीं था मुझे | पापा परेशान हो तो हो आँख बंद करके मुझे विवाह वेदी पर चढ़ जाना है  और किसी और के घर की खुशी बन कर अपने माँ बाप को भूल जाना है | इसी में मेरी भलाई और पापा की इज्जत है | अपनी भलाई का तो नहीं पता पर पापा की इज्जत के लिए मैं चुप रही |जिन्दगी भर स्वाभिमान से जीने वाले मेरे पापा को अपने भाई और न जाने किसके किसके
सामने हाथ फैलाना पड़ा | सबके मुंह पर मैंने जो ताले डाले थे वो खुल गए | तानों की झड़ी लग गयीमैं चुप रही |क्या मैंने गलत किया ?माँ को को रोता देख मैंने ठान लिया कि माँ के आँसु और पापा के अपमान सबका बदला लूँगी| उन दहेज़ लोभिओं के घर बहु नहीं काल बनकर जाऊँगी| क्या मैंने गलत किया ? आदरणीय ससुर जी को मैंने आदर नहीं दिया | पूज्य सासू माँ की मैंने पूजा नहीं की, उनकी हर ईंट का जवाब मैंने पत्थर से दिया | क्या मैंने गलत किया ? पैसे ले लेने के बाद जब २५ रु. की गुडिया पर दुकानदार का कोई हक नहीं रहता तो इस सजीव गुड्डे(मेरे पति) पर मैं उसके माँ बाप का हक कैसे रहने देती ? इसके लिए तो पापा ने २५ लाख दिए थे |ज्यादा परेशानी भी नहीं हुई क्यूंकि वो अब बच्चे नहीं थे जो उन्हें माँ की जरुरत होती, उनकी जवानी को बीवी की जरुरत थी, मेरी जरुरत थी | स्वार्थी मानव |एक माँ बाप से मैंने इकलौता बेटा छीन लिया | क्या मैंने गलत 
किया ? मैं उनसे (पति ) न डरती हूँ न दबती हूँ |पैसे का रौब वो नहीं झाड़ सकते मुझ पर क्यूंकि मैं आत्मनिर्भर हूँ |मैंने उनकी गुलामी कभी नहीं की, क्या मैंने गलत किया ?एक दिन मेरी सास ने कहा था "पराये घर की बेटी है, जाने क्या संस्कार ले कर आई है |" बहुत चुभी थी मुझे यह बात | मायेके के लिए मैं पराया धन थी और ससुराल के लिए पराये घर की बेटी | मैंने अपने सास ससुर को वृधाश्रम भेज दिया है | मैंने अपना घर पा लिया है |ये घर मेरा अपना है और मैं इस घर की अपनी | क्या मैंने गलत किया ? पापा ने जो भी कर्ज लिया था मैंने चुका दिया है | क्या मैंने गलत किया ? सब कहते हैं मैंने घर तोड़ दिया |हाँ सच है मैं अच्छी, आदर्श बहु नहीं बन पायी |माँ पापा को रुलाने वालों को अपना कर उनकी सेवा मैं नहीं कर पायी | पर क्या मैंने गलत किया ? यही सोच कर घुट रही हूँ की क्या मैंने गलत किया ?

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

शायरियाँ

सब कहते हैं, तू उसे याद न कर
पाने को उसे रब से फ़रियाद न कर 
तू हीं बता धड़कन में बसी यादों को मिटायें तो कैसे ?
जिन्दगी को अपनी हम भुलाएँ तो भुलाएँ कैसे ?
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आप मेरे लिए कोई फ़रिश्ता तो नहीं 
आप से हमारा कोई रिश्ता तो नहीं 
फिर भी पता नहीं क्या अपनापन झलकता है 
आपके सामने तो हमे सारा जग बेगाना लगता है 
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हम रो न सके तो ये न समझना, जुदाई का हमे गम नहीं 
रो कर प्रियतम की यादों को बहा देने वालों में से हम नहीं 
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आपकी बाँहों में मर जाना चाहते थे हम 
दो पल में पूरी जिन्दगी जी जाना चाहते थे हम 
शायद खुदा को वो भी गँवारा न हुआ 
क्योंकि वो दो पल भी हमारा न हुआ 
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इस दुनिया के लिए तो बस एक इंसान हो तुम 
मेरे लिए तो मेरा पूरा जहाँ हो तुम 
करोडो में एक तारा टूट गया तो क्या 
इस दूनिया से एक इंसान रूठ गया तो क्या 
कर सको तो इतना एहसान करो तुम 
रूठ कर यूँ न हमारी दूनिया वीरान करो तुम 
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हमने सोचा न था कभी किश्मत ऐसा रंग लायेगा/ लाएगी 
हमे मझधार में छोड़ तू परायों का हो जायेगा/ जाएगी 
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अजीब किस्मत है हमारी 
अजीब फितरत है हमारी 
जिसने दिल को तोड़ा 
दिल में उसे बसाये रहते हैं 
ख्वाबों को जिसने तोड़ा 
सपनों में उसे सजाये रहते हैं 
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सागर पर चलना चाहा 
हमसे किनारे भी छुट गए 
परायों को अपनाना चाहा 
वो न मिले कुछ अपने भी रूठ गए 
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तुझे याद हम करते नहीं 
तेरी याद हमे आ जाती हैं 
आती भी है तो कुछ ऐसे 
की भीड़ में हमे तन्हा कर जाती है 
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सोचा था तुझपे प्यार लुटाकर 
तेरे दिल में घर बनायेंगे 
हमे क्या पता था दिल देकर 
भी हम बेघर रह जायेंगे 
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वफ़ा कर के भी हम उन्हे पा न सके 
बेवफा हो कर भी हमारे दिल से वो जा न सके 
रातों को उनकी अपनी ख्वाबों से हम सजा न सके 
नींदे उड़ा कर भी हमारे खवाबों से वो जा न सके 
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मंगलवार, 23 नवंबर 2010

पन्ने जीवन के

जीवन के बीते पन्नों को पलटो मत
उन बीते लम्हों में  उलझो मत 
उन लम्हों में है वही जो पूर्व घटित है 
उन पन्नों पर लिखी कहानी अमिट है 
नहीं जिन पन्नों पर तुम्हारा अधिकार 
उसकी चिंता करना है बेकार 
जो कुछ करना है वह आज करो 
वर्तमान जीवन में नए रंग भरो 
वर्तमान में लिखावट सुन्दर हो 
इन पन्नों की सजावट सुन्दर हो 
भविष्य सुनहरा हो जायेगा 
यह आज भी बीता कल हो जायेगा 
इस आज को जो गँवा दिया तुमने 
सपने बस रह जायेंगे सपने 
जीवन की किताब जो बंद हो जाएगी 
कौड़ी के भाव रद्दी में बिक जाएगी 
जीवन की ऐसी कहानी लिखो, की सुनहरा इतिहास बन जाए 
सब पढे उस कहानी को, और तू उनका नायक बन जाए 
                                             आलोकिता 

रविवार, 21 नवंबर 2010

जल एक -- रूप अनेक

जल है एक, इसके रूप अनेक 
जब है प्यास हमे सताता 
जल अमृत तुल्य हो जाता 
आँसू बन जब नयनों से बहता 
तो दर्शाता है यह विवशता 
पश्चाताप के आँसू बन 
मन के सारे मेल धो देता 
कभी ये आँसू तेजाब बन 
पत्थर दिल को भी पिघला देता 
जब गोताखोर जल में डुबकी लगाता
तब जल उसके लिए कर्मभूमि बन जाता 
यही जल बारिश कि बुंद बन जब बरसता 
प्यासी धरती की तब प्यास बुझाता 
गर्मी के बाद यह वातावरण में ठण्ड लाता
बेचैन लोगो को चैन दिलाता 
फिर खेतों में हरे हरे फसल लहराता 
जलचरों का ये घर भी तो है होता 
मेहनती लोगों से पसीना बन टपकता 
उनके माथे पर मोती सा चमकता 
यही जल जब बाढ़ बन कर आता 
लाखों जीवन को तबाह कर देता 
इंसानों जानवरों सब के लिए काल होता 
खेतों को भी बर्बाद कर देता 
जल तो हर जगह है होता 
धरती पे अम्बर में जल 
जीव में जंतु में इंसानों में जल 
विष्णु के नख शिव के शिख 
ब्रम्हा के कमण्डल में जल 
जल तो सर्वव्यापी है 
कभी पुण्यात्मा तो कभी पापी है 

शनिवार, 20 नवंबर 2010

गंगा की धारा

मैं हूँ बहती निर्मल धारा गंगा की 
 यात्रा करती हिमालय से बंगाल कि खाड़ी तक कि
                    हुआ था हिमालय के गोमुख में 
                     पावन निर्मल जन्म मेरा 
                     बीता था हरिद्वार तक में 
                     चंचल विह्वल बचपन मेरा
फिर मैं आगे बढती हीं गयी 
कठिनाई बाधाओं को तोड़ती गयी  
                      पथरीले इलाके को छोड़कर 
                      आई मैं समतल जमीन पर 
                      फिर क्या था बरस पड़ा मुझपर 
                      मनुष्यों का भारी कहर 
उद्योगों के कचडे, मल, मूत्र इन सभी को 
मुझमे समाहित कर डाला 
मुझको तथा मेरी जवानी को 
इन्होने मलिन कर डाला 
                      मैं सहनशीलता की मूरत बन 
                      बस आगे बढती हीं गयी 
                      फिर दया की पात्र बन 
                      बंगाल कि खाड़ी में शरण ली 
मैं बन गयी बेबश मलीन धारा गंगा की
यात्रा पूरी हुई हिमालय से बंगाल कि खाड़ी तक कि 

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

अजन्मी बेटी

19 नवम्बर यानि आज का दिन हमारे देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन है | आज के दिन हमारे देश में एक बेटी ने जन्म लिया था एक ऐसी बेटी ने जिसने सिर्फ अपने माँ बाप का हीं नहीं बल्कि पूरे देश का नाम रौशन किया | जी हाँ आज चाचा नेहरु की प्यारी इंदु और हमारे देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की जयंती है | बहुत बुरा लगता है कि जिस देश में इतनी महान बेटी  ने जन्म लिया हो उस देश में आज भी कन्या भ्रूण हत्या जैसे घृणित पाप को अंजाम दिया जाता है |गर्भपात के दौरान मारी जाने वाली बच्चियों कि जगह खुद को रखकर कल्पना कीजिये तो रूह तक कांप उठेगी | कैसा लगता होगा उन्हें ? क्या सोचती होंगी वे ?शायद वे भी कुछकहना चाहती होंगी अपनी माँ से ,अपने परिवार वालों से .......................................

अजन्मी बेटी  
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सुनो मुझे कुछ कहना है 
हाँ तुमसे हीं तो कहना है 
क्या कहकर तुम्हे संबोधित करूँ मैं ?
मैं कौन हूँ कैसे कहूँ मैं ?
एक अनसुनी आवाज़ हूँ मैं 
एक अन्जाना एहसास हूँ मैं 
एक अनकही व्यथा हूँ मैं 
हृदय विदारक कथा हूँ मैं 
एक अजन्मी लड़की हूँ मैं 
मैं हूँ एक अजन्मी लड़की 
हाँ वही लड़की जिसे तुम जीवन दे न सकी 
हाँ वही मलिन बोझ जिसे तुम ढो न सकी 
अगर इस दुनिया में मैं आती, तुम्हारी बेटी कहलाती 
कहकर प्यार से माँ तुम्हे गले लगाती 
माँ तुम्हे कंहूँ तो कैसे ? जन्म तुमने दिया ही नहीं 
बेटी खुद को कहूँ तो कैसे ?जन्म तुमने दिया ही नहीं 
तुम सब ने मिलकर निर्दयता से मुझे मार डाला 
मेरे नन्हे जिस्म को चिथड़े चिथड़े, बोटी बोटी कर डाला 
सिर्फ लड़की होने की सजा मिली मुझको 
फाँसी से भी दर्दनाक मौत मिली मुझको 
सोचो क्या इस सजा की हकदार थी मैं ?
 कहो तो क्या इतनी बड़ी गुनाहगार थी मैं ?
इंदिरा गाँधी, किरण बेदी मैं भी तो बन सकती थी 
नाम तुम्हारा जग में रौशन मैं भी कर सकती थी 
दलित, प्रताड़ित अबला नहीं सबला का रूप धर सकती थी 
तुम्हारे सारे दुःख संताप मैं भी तो हर सकती थी 
तुम्हारी तमनाएँ आशाएं सब को पूरा कर सकती थी 
न कर सकती तो बस इतना बेटा नहीं बन सकती थी 
बेटे से इतना प्यार तो बेटी से इतनी घृणा क्यूँ ?
दोनों तुम्हारे हीं अंश फिर फर्क उनमे इतना क्यूँ ?
काश ! तुम मुझे समझ पाती 
प्यार से बेटी कह पाती 
काश ! मैं जन्म ले पाती 
जीवन का बोझ नहीं प्यारी बेटी बन पाती