शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

दीपक और बाती

















पूछा था उसने
क्या होता है प्रीत ?
कैसा होता मनमीत ?
जवाब मिला
दिए बाती सी प्रीत कँहा ?
दीपक से बढ़ मनमीत कँहा ?
दिए बिन बाती का अस्तित्व मिट जायेगा |
बाती बिन,भला दीपक कँहा जायेगा ?
उस बाती को भी मिल गया एक दीपक ,
और दीपक की हो गयी वह बाती |
प्रेमाग्नि में जलने लगी बाती |
सबने देखा जल उठा है दीपक |
खुश थी वह दीपक की आगोश में जाकर |
चमक रही थी घृत प्रेम का पाकर |
प्रेम घृत का कतरा भी जब तक मिलता रहा ,
जलने का सिलसिला तब तक चलता रहा |
जल कर राख़ हो चुकी थी बाती ,
पर दीपक अब भी तो नवेला था |
मिट चुकी थी उस पर एक बाती ,
दूसरी के लिए वह फिर से अकेला था |
नयी बाती को ह्रदय में बसाया ,
फिर से प्रेम का ज्योत जलाया |
तेज़ हवा का एक झोंका आया ,
ज्योत प्रेम का टिक न पाया |
ह्रदयवासिनी अब भी थी बाती ,
घृत प्रेम का भरा पड़ा था |
जीवन में फिर भी अँधेरा था ,
बाती थी, दीपक फिर भी अकेला था |
दिए बाती में सच्चा प्रीत कँहा ?
हाँ इनमें सच्चा मनमीत कँहा ?

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

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  2. very well written Alokita..wish to c more such beautifully crafted lines in near future too..

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  3. Ujjwal Sir Dhanyawaad Achi se achi rachna prastut kar sakun iski koshish sada jaari rahegi

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