गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

मेरी मंजिल

मेरी मंजिल आँखों से तो नज़र आती है
जितनी आगे बढूँ वह और पीछे हो जाती है
मृग तृष्णा सी मंजिल मुझे भगाती है
थक कर जो बैठूं आँखों से ओझल हो जाती है

क्षितिज पर जा बैठी है मंजिल मेरी
बुलाती है जल्दी आ कहीं  हो जाए न देरी
कहीं कोई और न पा जाये मंजिल तेरी
कहकर डराती है मुझको मंजिल मेरी

आँखें राहों पर रखूं तो मंजिल खो जाती है
मंजिल पर आँखे रखूं तो ठोकर से गिर जाती हूँ
वँहा पहुँचने का सही तरीका समझ नहीं पाती हूँ
मेरी दशा देख मंजिल मेरी मुस्कुराती है

मंजिल कभी थोड़ी हीं दूर नज़र आती है
अँधेरे से मन में आशा की ज्योत जलाती है
अगले छण बड़ी दूर नज़र आती है
आँखों में निराशा सी छा जाती है

मंजिल कभी जड़े की धूप सी खिलखिलाती है
कभी पंख खोल स्वप्न परिंदे सी उड़ जाती है
मुस्कुराकर वह साहस मेरा बढाती है
बान्हे फैलाये मंजिल मुझे बुलाती है 

13 टिप्‍पणियां:

  1. ये लुका छुपी का खेल हमें हमेशा गतिशील रखता है ! बेहतरीन !

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  2. अच्छी भावात्मक अभिव्यक्ति.
    जैसे कविता में बीच बीच में जगह छोड़ते है, कहानी में भी लगभग वैसे ही पेराग्राफ बदलते है.
    लिखते रहिये ....

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  3. madushala ki wo lines...yaad aa gayi..
    मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,
    'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
    अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
    'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'........

    hame bas raah ka pata lagana hai....aur baki to apni mehnat aur sahas..

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  4. Thanks abhishek bhaiya
    usi chapter mein 2 line aur hai
    Rahe na hala,pyala saki,
    tujhe milegi madhusala
    shayad

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  5. बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

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  6. मंजिल मुस्‍करा रही है
    फिर या तो पास आ रही है
    या आपको अपने पास बुला रही है
    सफलता अवश्‍यंभावी है
    हिन्दी टूल किट : आई एम ई को इंस्टाल करें एवं अपने कम्प्यूटर को हिन्दी सक्षम बनायें

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  7. haan sahi boli
    puri lines ye hai....
    मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
    अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
    बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
    रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला

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  8. :)

    क्षितिज़ पर जा बैठी है मन्ज़िल मेरी…
    cool !

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