तू कर्म कर,करती हीं जा |
रुक नहीं, आगे बढती हीं जा |
आशाएं है कई तेरे भीतर |
क्षमताएं भी अगणीत तेरे अन्दर |
राह लम्बी हुई तो क्या ,
थक कर तुझे रुकना नहीं |
बाधाएँ बड़ी हुई तो क्या ,
डर कर तुझे झुकना नहीं |
भाग्य के आँचल में लिपट मत |
थाम ले तू कर्म का दामन |
मुश्किल बाधाओं से तुझे डरना नहीं |
बुझदिली का काम तुझे करना नहीं |
मुश्किलें जब जब आतीं हैं ,
पत्थर को हीरा कर जातीं हैं |
आग में तपे बिना, सोने को चमक मिलती नहीं |
पत्थर पर पिसे बिना, मेहंदी की लाली खिलती नहीं |
मेहनत हीं है सच्चा श्रींगार तेरा |
कर्म से हीं होगा उद्धार तेरा |
सौभग्य पर इठला नहीं |
दुर्भाग्य से झल्ला नहीं |
जिन्दगी की आसमां के ये टिमटिमाते तारे |
कर्म सूर्य के उदित होते छिप जाते सारे |
जब सूरज तेरे हाथ में तो
तारों की क्यूँ फिकर तुझे ?
जब कर्म तेरे साथ में तो
भाग्य से क्यूँ डर तुझे ?
जुड़ी तुझसे है आशाएं अपार |
खोल न तू निराशाओं के द्वार |
कर्म से जीत सके नियति में इतना दम कँहा ?
तुझे पराजित करे उसे इतनी हिम्मत कँहा ?
बस तू कर्म कर करती हीं जा |
भाग्य को छोड़ आगे बढती हीं जा |
गीता का सार भी तो यही है //
जवाब देंहटाएंआलोकित //
कभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारे
ye bahut badi baat kah di aapne mere blog tak aane key liye dhanyawaad
जवाब देंहटाएंBhaw achha hai Alokita ji....
जवाब देंहटाएंdhanyawaad
जवाब देंहटाएंवही तो...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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