दोस्ती हो तो ऐसी ..........| रिया और पूजा की दोस्ती को जो भी देखता अनायास उसके मुँह से यह बात निकल हीं जाती | बचपन से दोनों साथ खेली ,पढ़ी साथ में हीं बड़ी हुई | दोनों के अंकों में कुछ ज्यादा फासला भी नहीं होता था पर फिर भी आमतौर पर होने वाली प्रतिद्वंदता दोनों में नहीं थी | हर कोई दोनों की दोस्ती की मिसाल दिया करता था यँहा तक की दोनों को हंसों का जोड़ा कहा जाता था | बचपन बीतते वक़्त हीं कितना लगता है ? समय तो मानो पंख लगा कर उड़ा जा रहा था और बढ़ते समय के साथ वे भी बड़ी हो गयीं |
कॉलेज का आखिरी साल था एक तरफ तो दोनों को अच्छी नौकरी की चिंता थी और दूसरी तरफ घर पर शादी ब्याह के चर्चे गर्म थे | उनके लिए काफी जद्दोजहद की स्थिति थी उस वक़्त, पहला तो अच्छी नौकरी गर वह मिल भी गयी फिर भी शादी के बाद कहीं और जाना होगा पाती और ससुराल के मुताबिक ................. इन चिंताओं के साथ रिया को एक और परेशानी थी की क्या वो अपने माँ बाप को मना पायेगी और नहीं मना पायी तो ....................? घर वालों से, दोस्तों से तो उसे दूर होना हीं पड़ेगा पर ........................समीर से ............... कैसे रहेगी वो ?क्या होगा उसके सपनों का ............. जिसका एक अहम् हिस्सा समीर है .............क्या माँ बाप के खिलाफ , समाज के विरुद्ध जाकर उसे अपना पायेगी ? और अगर नहीं तो क्या समीर के साथ और उस आत्मिक रिश्ते के साथ बेवफाई नहीं होगी ? इन्ही उलझनों के साथ दोनों सहेलियां interview देने जा रही थी तभी रास्ते में भिखारी मिल गया | पूजा ने फट्टाक से १० रु का नोट निकाल कर उसे दे दिया, रिया ने उसे मना किया तो कहने लगी पुण्य का काम है दुआ मिलेगी | इसी बात पर दोनों में बहस छिड़ गयी, रिया का मानना था की पैसे दे कर नहीं मदद करनी चाहिए बल्की ऐसे लोगों को इस काबिल बनाना चाहिए की अपनी जरुरत भर वे खुद कमा सके | इस बहस में जाने क्या क्या कह गयी दोनों एक दुसरे को, समाज और इसकी व्यवस्था
पर जितनी खीझ थी दोनों ने एक दुसरे पर उतार दी | अबतक दोनों खिलौनों फिर किताबों कि दुनिया में जी रहीं थी, एक स्वप्निल दुनिया में | अब जिस व्यावहारिक, वास्तविक दुनिया में दोनों कदम
रख रही थी इसमें उनकी सोच बिल्कुल अलग थी एक दुसरे से | पूजा रीती रिवाजों, पौराणिक अवधारणाओं को शब्दशः मानने वाली थी और रिया खुले विचारों वाली लड़की थी | वह संस्कारों को बंधन के रूप में नहीं अपनाना चाहती थी, उसका यही मानना था कि नियम इंसानों के लिए बनाये गए हैं, इंसान नियमों के लिए नहीं |
इस घटना के बाद कुछ ऐसे हालात बनते गए कि दोनों में दुरिया बढती गयी | पूजा कि शादी हो गयी और वह एक कुशल गृहणी कि तरह अपने घर संसार में खो गयी, उसके पती किसी छोटे से जिले में अधिकारी थे | रिया समीर के साथ थी विरोध तो बहुत झेला दोनों ने समाज का पर आखिर में जीत उनकी हीं हुई | दोनों सहेलिओं में अब सिर्फ नाम मात्र का हीं संपर्क रह गया था |एक दिन सरकारी छात्रवृत्ति बांटी जा रही थी जिले में काफी बड़ा जलसा था, बहुत
बड़े बड़े लोग भी आने वाले थे | पूजा भी उस समारोह में गयी थी
अपने पती और दोनों बच्चों के साथ | जब पुरस्कार वितरण शुरू हुआ
तो जो पहला बच्चा आया इनाम लेने वह स्टेज पर जाते रोने लगा
और फिर बोला कि मैं आज इस जगह परमैं जिसकी वजह से पहुंचा
हूँ यह इनाम भी मैं उन्ही के हांथों लेना चाहूँगा | भीड़ कि काफी
पीछे से एक औरत आई सभी उसकी ओर बड़ी उत्सुकता से देखने
लगे और कोई पहचाने न पहचाने पूजा कैसे भूल सकती थी अपनी
रिया को ? उस बच्चे ने कहा कि यँहा मौजूद जितने भी लोग हैं
उनमेसे बहुत से लोगसंवेदनशील होंगे मुझे पता है पर आज मैं आप
सब से हाथ जोड़ कर एक विनती करना चाहता हूँ किअपनी
संवेदनशीलता को सही आयाम दीजिये | आज से ७ साल पहले
जब मैं भीख मांगता था मुझे यही लगता था कि यही किस्मत है
मेरी और शायद आप जैसे लोग भी यही समझते थे तभी तो मेरी
कटोरी में सिक्के डालते जाते थे पर ये ऐसा नहीं सोचती थीं और इन्ही
कि सोच ने मुझे आज यँहा पहुँचाया है | अगर हर कोई इनके जैसा
सोचने लगे तो मेरे जैसे कितने हीं बच्चों कि जिन्दगी संवर जाएगी |
पूजा आज मन हीं मन नतमस्तक हो गयी थी रिया के सामने,
उसने आज तक भिखारिओं को कितने ही रु दे दिए थे इसका कोई
हिसाब नहीं पर वो सोच रही थी कि दे कर भीक्या दिया उसने ?वह
हमेशा यही सोचती रही थी अब तक कि रिया कंजूस हो गयी है
या तो सारी संवेदनाएं मर चुकी है उसके भीतर की | उसकी उस दिन
की हर बात याद आ रही थी पूजा को जिसे वह महज भाषण बाजी
समझ रही थी | पूजा को यह लगता था की अकेले इससे क्या होगा ?
पर आजवह यह मान गयी की "अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है|
दो सहेलियों के बीच यह फासला था विचारों का जो आज मिट चुका
था जिसकी साक्षी थी पूजा के आँखों से बहते प्रेमाश्रु सिर्फ और सिर्फ
रिया के लिए लेकिन यह आँसु दोस्ती के लिए नहीं थे ये आंसूं
सम्मान के लिए थे एक सच्ची मानव सेवा के लिए | अपनी दोस्त
रिया से तो उसे अभी जमकर लड़ाई करनी थी वह तो बेवकूफ थी
पर रियातो इतनी समझदार थी उसेकिसी तरह से मानना चाहिए था
न |
अब लड़ना है तो लड़े इसमें हम आप क्या कर सकते हैं ? दो सहेलिओं
के बीच का मामला है और फिर दोस्ती में लड़ने का हक तो बनता है
यार ................