सोमवार, 13 दिसंबर 2010

आँसु की कहानी

कल मैंने देखा एक सपना ,
सपने में रो रहा था कोई अपना |

वह थी हमारी धरती माता ,
हमसे है उनका गहरा नाता |

बहुत पूछने पर सुनाई आँसु की कहानी,
जिसे सुनने पर हुई मुझे हैरानी |

उन्हें नहीं था अपने बुरे हाल का  दुःख ,
नहीं चाहिए उनको हमसे कोई सुख |

उनकी गम का कारण थे हम ,
फिर भी हमारे लिए थी उनकी आँखे नम|

उन्होंने ने कहा मनुष्य बन रहे अपनी मृत्यु का कारण,
मेरे पास नहीं है इसका निवारण |

कभी मुझ पर हुआ करती थी हरियाली ,
मनुष्यों के कारण छा गयी है विपदा काली|

                                                                                अपनी सुन्दरता से मुझे क्या है करना ?
                                                             मनुष्यों के लिए हीं मैंने पहना था हरियाली का गहना |

                                  
                                   यह जानते हुए भी मनुष्य कर रहे पेड़ो की कटाई,
                                   अपनी बर्बादी को मनुष्यों ने खुद है बुलाई |

कहीं यह सपना बन ना जाए सच्चाई ,
इसीलिए प्लीज़ रोको पेड़ो की यह कटाई |

रविवार, 12 दिसंबर 2010

बीज से पेड़

मैं नन्हा सा बीज, इस स्थुल जगत से घबराया
तब धरती माँ ने अपने प्यार भरे गोद में सुलाया
एक दिन हवा के झोंके ने मुझे पुकारा
पर उस ममतामई गोद को छोड़ने में मैं हिचकिचाया
फिर बारिश की की बूंद ने छींटे मार कर मुझे जगाया
पर फिर भी मैं वहीँ पड़ा रहा अलसाया
सुरज की किरणों ने मुझे ललकारा
गुस्से से आवाज़ देकर पुकारा
धीरे धीरे तब मैं ऊपर आया
अपनी जड़ों को धरती में हीं जमाया
बीज से अब मैं पौधे के रूप में आया
अपना नवीन रूप देख कर इतराया
सुरज ने दी गर्मी बारिश ने प्यास बुझाया
चंदा ने अपनी चांदनी से मुझे नहलाया
मस्त हवा के झोंकों ने झुला झुलाया
प्रकृति ने सुन्दर फूलों से मुझे सजाया
तितलियों ने फूलों से रस चुराया
भंवरों ने अपना मधुर गुंजन सुनाया
इसी तरह फूलता फलता मैं बड़ा हुआ
बीज से पौधा, और अब पेड़ बन खड़ा हुआ 

SAY NO 2 CASTEISM

प्रणाम!!! क्या हुआ ?शीर्षक अंग्रेजी में देख कर असमंजस में पड़ गए का ?आज आलोकिता का स्टाइल इतना बदला बदला क्यूँ है ?दरअसल बात ये है न कि कल मेरे ब्लॉग का एक महीना पूरा हो गया इसीलिए आज हम सोचे कि कुछ स्पेशल लिखा जाए | कुछ रियल लाइफ का बात भी बताया जाय |अब जो बात जैसे हुआ है उसी भाषा में बताने में अच लगेगा न इसीलिए हम ग्रामर शुद्धता इ  सब छोड़ के बस जैसे बोलते हैं रियल लाइफ में वैसे हीं लिख दे रहे हैं |
हम एक ठोबात सोच रहे थे कि हम लोग के पूरा समाज का कथनी और करनी में केतना फर्क है न | किताब में हम लोग को का पढाया जाता है ?यही न कि जात-पात नहीं मानना चाहिए लेकिन जो टीचर चाहे मम्मी पापा हमलोग को no castism   वाला चैप्टर पढ़ाते हैं वही लोग न फिर castism भी सिखाते हैं | का गलत कहें ? अईसे तो कहा जाता है कि जात धरम नहीं मानना चाहिए सबको मिलजुल कर रहना चाहिए | हम इ पूछते हैं कि जब जात पात कुछ होइबे नहीं करता है सब इंसान एके है तो हम लोग को जात धरम के नाम पर बाँट काहे दिया जाता है?
कोई फॉर्म भरने चलो तो कोस्चन जरुर रहता है Candidate appearing for the exam belongs to 1.General  2.O.B.C  3.Sc/St.
बचपन से सिखाया जाता है कि जात पात मत मानो लेकिन 8th 9th तक पहुँचते पहुँचते स्कूल में cast certificate माँगा जाने लगता है | 10th के लिए 9th registration होता है न |अब शिक्षित बनना है तो बिना अपना जात जाने हुए बच्चा शिक्षित कईसे हो सकता है ?
जब हम छोटे बच्चे थे न तो इस मामले में बहुत बेवकूफ थे (इ मत समझिएगा कि अब ढेर तेज़ हो गए हैं ) इसके लिए बहुत मजाक भी उड़ा है |कभी कोई दोस्त की मम्मी पुच देती की कौन जात हो बाबु मेरा तो मुँह बन जाता था | हँस के कह देते थे पता नहीं आंटी | अईसे देखती थी लगता था सोच रही है च्च्च बेचारी जात तक नहीं पता इसको |और फिर लगाती थी अपना जासूसी दिमाग 'अच्छा पापा का पूरा नाम क्या है '? धीरे धीरे जब बड़े होने लगे तो कोई कोई दोस्त लोग भी पूछने लगी | हमको इ सब से कुछ फर्क नै पड़ता था | लेकिन फर्क पड़ा जब teacher लोग भी पूछने लगे ? एकदम G.K.कोस्चन टाइप हो गया था ' कौन जात हो'?
संस्कृत में सबसे अच नंबर आया अचानक क्लास में श्लोक बोलवाए हम सब सही सही बोल दिए तो सर बहुत खुश हुए | शाबाशी देने के लिए बुलाये और पूछते हैं की श्लोक तो बहुत शुद्धता से बोली मिश्रा जी हो की झा जी (मेरे नाम में कोई सर नेम नहीं है न )वो खुद मिश्रा जी थे |हिंदी वाले झा सर लंच में बुला कर पूछते थे 'पापा सरकारी नौकरी में हैं न रे लालाजी हो क्या ?हम पूछे लालाजी को हीं सरकारी नौकरी मिलता है क्या सर ?बोले नहीं रे एदम पागले हो इधर लालाजी लोग जादे है नौकरी में न गेस कर रहे थे | लेकिन गजब पागल हो तुम १२ साल की लड़की इतना भी नहीं पता की कौन जात के हो |बहुत बुरा लगा था सर के बोलने का तरीका हमको | घर आते आते मम्मी से पूछे थे उस दिन की क्लिअर  क्लिअर  बताइए हमलोग किस कास्ट के हैं ?कौन सा कास्ट बड़ा होता है कौन सा छोटा सब बताइए | सर के कारण पूछ रहे हैं इ बात नहीं बताये मम्मी को काहे कि सर का बुराई करना हमको अच्छा नहीं लगता था | एक बार रविदास जयंती के दिन मेरी दो दोस्त (जुडुवा थी ) नहीं आई बोल के कि
कंही जाना है | गुप्ता सर G.K. वाले पूछे ये सीता गीता का जोड़ी कँहा गायब है ? जब हमलोग बोले कि कंही घुमने गयी है तो सर बोले आज तो रविदास जयंती है| जोशी टाइटिल से से हमको पते नहीं चला इ लोग के बारे में | इंग्लिश सर किसी से पूछते नहीं थे खली अपना बताते रहते थे कि हम श्रीवास्तव जी हैं | शिवपूजन सहाय रिश्ते में मेरे दादा लगते थे (कैसे कैसे वो हमको याद नहीं है )खैर क्लास ८ में मेरा कास्ट क्या है ?जबतक नहीं पता था तब तक तो ठीक था, अब पता चल गया और कोई कास्ट पर कमेन्ट करे तो बुरा तो लगता है न |मेरी एक दोस्त फॉरवर्ड कास्ट की थी क्लास में नीचे से फर्स्ट करती थी | बेचारी को पता नहीं था कि हम O.B.C.में आते हैं बोली पता है यार हमलोग को बहुत घाटा हो जाता है सब जो इ सब छोटा जात वाला सब होता है कम नंबर लाके भी आगे हो जाता है रेजेर्वेसन के चलते | हम लोग मेहनत कर करके मर जायेंगे तो भी पीछे हीं रह जायेंगे | चूँकि मन में इ बात आ चुका था कि हम O.B.C. हैं बुरा तो लगना निश्चित था न | हम बोले हाँ यार तेरे को तो बना बनाया बहाना मिल गया, छोड़ वो तो बहुत दूर की बात है क्लास में तो reservation नहीं है मेरे नंबर के आसपास आके दिखा दे | पर ये कटाक्ष उसके दिमाग से ऊपर था समझी नहीं | लड़ने का मूड नहीं था सो हम भी बात पलट दिए |
कहने के लिए तो जाती प्रथा ख़तम हो चुका है पर सच्चे दिल से सोचिये की का सही में ख़तम हुआ है ?कोई भी गुण-अवगुण आदमी का अपना होता है जाती से नहीं मिलता |
नेट में कंही भी साईन इन करने क लिए फर्स्ट नेम लास्ट नेम लिखना पड़ता है , हम तो लास्ट नेम कुछो रखे ही नहीं खाली आलोकिता |पर अपना नाम क साथ गुप्ता बोलने में अच्छा लगा तो लिख लिए लो रे भाई फिर कास्ट में बांध दिया गया | ३-४ गो फ्रेंड रिक्वेस्ट आया Hii! Alokita ji I'm a gupta 2 so add me....| अरे भाई मेरे इ मेरा फ्रेंड लिस्ट है गुप्ता कम्युनिटी थोड़े है |
आखिर कब तक मानवता के बीच में इ जातीयता का दीवाल खड़ा रहेगा ? कब तक ? जब तक हम सही तरीका से जातीयता से ऊपर नहीं उठेंगे धरम निरपेक्ष नहीं बन सकते और मानवता हा हा हा हा सोचना भी पागलपना है | है की नहीं ? है न |

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

दीपक और बाती

















पूछा था उसने
क्या होता है प्रीत ?
कैसा होता मनमीत ?
जवाब मिला
दिए बाती सी प्रीत कँहा ?
दीपक से बढ़ मनमीत कँहा ?
दिए बिन बाती का अस्तित्व मिट जायेगा |
बाती बिन,भला दीपक कँहा जायेगा ?
उस बाती को भी मिल गया एक दीपक ,
और दीपक की हो गयी वह बाती |
प्रेमाग्नि में जलने लगी बाती |
सबने देखा जल उठा है दीपक |
खुश थी वह दीपक की आगोश में जाकर |
चमक रही थी घृत प्रेम का पाकर |
प्रेम घृत का कतरा भी जब तक मिलता रहा ,
जलने का सिलसिला तब तक चलता रहा |
जल कर राख़ हो चुकी थी बाती ,
पर दीपक अब भी तो नवेला था |
मिट चुकी थी उस पर एक बाती ,
दूसरी के लिए वह फिर से अकेला था |
नयी बाती को ह्रदय में बसाया ,
फिर से प्रेम का ज्योत जलाया |
तेज़ हवा का एक झोंका आया ,
ज्योत प्रेम का टिक न पाया |
ह्रदयवासिनी अब भी थी बाती ,
घृत प्रेम का भरा पड़ा था |
जीवन में फिर भी अँधेरा था ,
बाती थी, दीपक फिर भी अकेला था |
दिए बाती में सच्चा प्रीत कँहा ?
हाँ इनमें सच्चा मनमीत कँहा ?

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

मेरी मंजिल

मेरी मंजिल आँखों से तो नज़र आती है
जितनी आगे बढूँ वह और पीछे हो जाती है
मृग तृष्णा सी मंजिल मुझे भगाती है
थक कर जो बैठूं आँखों से ओझल हो जाती है

क्षितिज पर जा बैठी है मंजिल मेरी
बुलाती है जल्दी आ कहीं  हो जाए न देरी
कहीं कोई और न पा जाये मंजिल तेरी
कहकर डराती है मुझको मंजिल मेरी

आँखें राहों पर रखूं तो मंजिल खो जाती है
मंजिल पर आँखे रखूं तो ठोकर से गिर जाती हूँ
वँहा पहुँचने का सही तरीका समझ नहीं पाती हूँ
मेरी दशा देख मंजिल मेरी मुस्कुराती है

मंजिल कभी थोड़ी हीं दूर नज़र आती है
अँधेरे से मन में आशा की ज्योत जलाती है
अगले छण बड़ी दूर नज़र आती है
आँखों में निराशा सी छा जाती है

मंजिल कभी जड़े की धूप सी खिलखिलाती है
कभी पंख खोल स्वप्न परिंदे सी उड़ जाती है
मुस्कुराकर वह साहस मेरा बढाती है
बान्हे फैलाये मंजिल मुझे बुलाती है 

जीवन सवेरा

यह जीवन खिलखिलाता सवेरा ,
मौत है एक गहरा अँधेरा |
अभी सवेरा है कुछ काम कर लो ,
फिर अँधेरे में तो सोना हीं है |
दुनिया के नजारों से कुछ सिख लो,
अंधेरों में फिर इन्हें खोना हीं है |
यूँ मूंद कर लोचन, दिन में सो जाओ मत,
रात होने के पूर्व अँधेरा जीवन में लाओ मत|
आशा खोकर जो लोग निराशा में जीते हैं ,
अंधेरों में लिपट गम का विष वही पीते हैं|
कुछ लोग जो कड़ी धूप को सहते हैं,
शीतल वर्षा बूंदों का मज़ा वही लेते हैं|
धूप से डरकर, जो घर में सो  जाते हैं,
वर्षा बूंदों से अन्जान वही रह जाते हैं |
पहले कडवी निबोरी चख कर तो देखो,
फिर आम की मिठास और बढ़ जाती है|
मुश्किलों को गले लगा कर तो देखो ,
सफलता की खुशी दुनी हो जाती है |
तू कुछ करे, न करे, इस दिन को ढल जाना है,
चाहे तू या न चाहे, मौत के आगोश में जाना है|
मौत के भय से जीना तुम छोड़ो नहीं ,
मुश्किलों से डर साफलता से मुंह मोड़ो नहीं|
उजाला है चल निरंतर ,
तू मंजिल पा जायेगा |
जब छाएगा घोर तिमिर,
मंजिल क्या तू भी विलीन हो जायेगा|
तू खड़ा अब क्या सोच रहा ?
वह देख तिमिर छाने को है |
सदुपयोग करले जीवन का ,
यह दिवस न फिर आने को है|  

मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

कितना बदल गया है न सबकुछ अचानक | मैं जिसके लिए लिखना सबसे कठिन काम होता था, जो ९ बजते बजते सोने के लिए बेचैन हो जाता था, वही मैं आज रात के १:३० बजे बैठ कर डायेरी  लिख रहा हूँ और वो भी क्यूँ ? क्यूंकि अपने दिल की बात अपने सबसे अच्छे दोस्त अपने पापा से नहीं कह पा रहा | मैंने अपनी जिन्दगी में हमेशा आपको एक दोस्त की भूमिका में पाया है फिर अचानक आप इतने ऊँचे कैसे हो गए ? अचानक आप पिता बन गए जिसके पास सारे अधिकार है, जिसके सामने कुछ नहीं कह सकता क्यूँ पापा ? अब तक आप मेरी हर छोटी से छोटी खुशी का ख्याल रखा है पर जब मैंने अपने जीवन की सबसे बड़ी खुशी मांगी तो आप मेरी खुशियों के दुश्मन बन बैठे क्यूँ पापा ?अगर मैं किसी से प्यार करता हूँ उसे अपनाना चाहता हूँ तो बीच में आपकी इज्ज़त और ये समाज कँहा से आ जाता है पापा? जिन्दगी मुझे गुजारनी है उसके साथ समाज को नहीं | आप ने और मम्मी ने तो कह दिया इतनी हीं पसंद है तो उसी के पास चले जाओ | उसमे और हममे से किसी एक को चुन लो | पर मेरे लिए ये इतना आसान नहीं है | धड़कन और सांसो में से किसी एक को कैसे चुन लूँ ? दोनों हीं जीवन के लिए उतने हीं जरुरी हैं | आप लोगों ने जब से कहा मैंने उससे बात भी नहीं की | देखिये न पापा उसका नाम तक नहीं लिख पा रहा| जेहन में उसका नाम आते हीं हाथ कांप जा रहे हैं |लेकिन मैं खुश नहीं हूँ पापा | जिन्दा तो हूँ पर मैं जी नहीं रहा हूँ |आप लोग कहते हैं की मैं बेशर्म हो गया हूँ, मेरी आँखों का पानी मर चुका है | लेकिन ऐसा नहीं है पापा| मेरी आँखों में पानी तो है पर गलती से, हाँ गलती से हीं इन आँखों ने कुछ सपने भी देख लिए हैं |
कई दोस्तों ने सलाह दी कि कोर्ट मैरेज कर लो तुम बालिग हो | वैसे देखा जाए तो सही हीं है न पापा मैं २४ साल का हो चुका हूँ वो भी तो २१ की है पर हम ये कदम नहीं उठा सके | न मैं आपके खिलाफ जा सका न वो अपने पापा की इज्ज़त को नज़रंदाज़ कर पायी | कैसी विडंबना है न पापा जिस माँ बाप ने हमे अधिकार का मतलब समझाया,अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया वही माँ बाप हमारे सहज अधिकार को नकार रहे हैं और हम कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं क्यूंकि हम जकड़े हुए हैं उनके प्यार के मोह में, बंधे हुए हैं अपने so called संस्कारों में | खैर ये सब मैं लिख गया आवेग में आप से कह नहीं पाउँगा न हीं आप कभी ये पढ़ पाएंगे क्यूंकि अगर आप इसे पढ़ भी लें तो क्या फ़ायदा ? कुछ पल के लिए एक पिता का दिल पिघल भी जाय तो क्या आपने अपने चारों ओर जो इज्ज़त और प्रतिष्ठा के ऊँचे ऊँचे दिवार खड़े कर रखे हैं उनको मैं नहीं हिला सकता | मैंने जो भी लिखा बस अपने मन की शांति के लिए लिखा है | उम्मीद तो नहीं पर शायद मन शांत हो जाए |मेरे अरमानो की तरह मेरी डायेरी का यह पन्ना भी राख हो जायेगा | फर्क सिर्फ इतना है की अरमानो को आपने जलाया इस पन्ने को मैं जलाऊंगा |यह तो जलकर राख हो जायेगा पर मेरे अरमान जलकर भी तड़प रहे हैं |   

अल्पा या कमला ...................

शर्माजी बड़े हीं उत्साहित नज़र आ रहे थे और जब वे उत्साहित हों तो घर शांत कैसे हो सकता था | श्रीमती जी चिल्ला रहीं थी अरी कमला जल्दी कर नाश्ता ला बाबूजी को जरुरी काम से जाना है न |कुछ समझती नहीं कामचोर कहीं की, किसी काम का ढंग नहीं | पता नहीं माँ ने क्या सिखाया है | सोचा होगा सीखा के क्या फ़ायदा अपने साथ थोड़े रहने वाली है पड़ेगी जिसके पल्ले वह समझे | अरे भोगना तो हमे पड़ रहा है न | बाप ने समझा होगा १५ लाख दे दिया बेटी महारानी बनकर रहेगी | किचन से कमला चिल्लाई माँ जी मेरे मम्मी पापा पर मत जाइये समझीं आप | सुबह ४ बजे से उठ कर लगातार काम हीं तो कर रही हूँ | छोटी जी थीं तो मैंने भी देखा है आपने कितना काम सीखा कर भेजा है ससुराल | बहु न हो गयी गुलाम हो गयी | मैं भी इंसान हीं हूँ रोबोट नहीं जो आपके इशारों पर नाचती रहूँ | और नास्ता लाकर शर्मा जी को दे दिया ' बाबूजी नाश्ता' | छोटे शर्मा जी आँखे दिखाकर बोले तुम्हे नहीं लगता कमला तुम कुछ ज्यादा बोलती हो ? माँ बड़ी हैं तुमसे, तुम चुप भी रह सकती थी| कमला ने कहा आपका मतलब ...... बीच में हीं बात काटते हुए छोटे शर्मा जी बोले फिर से महाभारत मत शुरू करो | मुझे भी नाश्ता दो जल्दी से | सासु माँ का रेडियो तो अभी तक ऑन था | जाने कितनी हीं बार कमला के किन किन रिश्तेदारों को क्या क्या गालियाँ दे चुकी थीं फिर भी उनका स्टॉक ख़त्म नहीं हुआ था | शर्मा जी जो अब तक बाहर जाने के लिए उत्साहित थे बेटे की थाली देख कर उबल पड़े | वाह बहू क्या न्याय है तेरा | रिटायर्ड हूँ इसका मतलब ये नहीं तेरे पति की कमाई खता हूँ | पेंसन देती है सरकार मुझे और अगर अपने बेटे की कमाई खता भी हूँ तो तुझे क्यूँ बुरा लगता है, उसे इस लायक बनाया भी तो है मैंने | तेरे बाप से तो इतना तक न हो सका की लड़के को बिजनेस बढ़ाने के लिए १० - २० लाख दे दें |साफ़ मुकर गए की अभी तो शादी वाला हीं क़र्ज़ नहीं उतरा | श्रीमती जी को एक नया जोश मिला फिर फुल वोल्यूम पर रेडियो स्टार्ट | कमला:-  पर बाबूजी मैंने ...........| शर्मा जी:- अरे चुप रहो हमे रुखी रोटी और साहबजादे को आलू के पराठे | कमला;- आपको सुगर है न | छोटे शर्मा जी ने भी हामी भरी | शर्मा जी बोले तुम्ही लोग तो डॉक्टर हो न, बीमारी न मारे उससे  पहले तुम्ही लोग मार डालोगे और थाली पटक कर बाहर चले गए | छोटे शर्मा जी खाना तो चाह रहे थे (उन्होंने स्पेसिली बोल कर बनवाया जो था ) पर यह नहीं चाहते थे कि  माँ का तीर कमान उनकी तरफ घुमे और उन्हें कुपुत्र या बीवी का गुलाम जैसी उपाधियों से नवाजा जाय, उठकर दुकान चले गए | कमला खड़ी रो रही थी | सासु माँ चिल्लाईं मगरमच्छ के आँसु मत बहओ, मिल गयी शांति मर्दों को भूखा भेज कर | कमला पलटकर जाने लगी तो फिर उन्होंने कहा चली महारानी कोप भवन में | कमला ने जाते जाते कहा मैं चली गयी कोप भवन में तो उसके बाद तो भगवान हीं मालिक है इस घर का, आपका हीं नाश्ता लेने जा रही हूँ | अभी कपडे धोने भी बाकी हैं | उधर शर्मा जी गिल साहब के दफ्तर पहुँच गए | यँहा बहू के मायके से पैसे ऐंठने न, मिलने पर बहू को रश्ते से हटाने के सारे गुर बताये जाते थे | हत्या को आत्महत्या सिद्ध करने के लिए सुसाइड नोट के सैम्पल  भी मिलते थे और सबसे बड़ी बात प्राइवेसी  मेन्टेन  किया जाता था | आज तो यँहा आकर सोचा बहुत अच्चा  दिन है लकी ड्रा निकाला जा रहा था | जितने वाले को ५० % डिस्काउंट मिलने वाला था ऊपर से गिल साहब से मुलाकात, जो सारा रिस्क लेने को तैयार थे | ४० साल का अनुभव था भाई | इन ४० सालों के अपने वकालती करियर में कितनो को हीं दोष मुक्त कराया है उन्होंने | कानून का तोड़ मरोड़ सब जानते हैं वे | लकी ड्रा के लिए शर्मा जी ने अपना नाम भी दिया |रिजल्ट आया तो उनका दिल टूट गया | गिल साहब आज सिर्फ प्रथम स्थान वाले से मिलेंगे बाकी लोगों से कल सुनकर शर्मा जी झुंझला गए | इधर उधर से पता चला किसी कृष्णकांत को प्रथम स्थान मिला है पर शायद यह काल्पनिक नाम है | घर जाकर बहू से बोले कल सवेरे ७ बजे तक मुझे निकल जाना है जरुरी काम है | अगले दिन सुबह ६:५५ पर उनके मोबाइल पर फोन आया उनका दामाद रो रहा था, बाबूजी अल्पा छत से गिर गयी लाख कोशिशों के बाद भी हम उसे बचा न सके | शर्मा जी सन्न थे | कृष्णकांत ................. प्रथम स्थान ................ कृष्ण कान्त शर्मा ................. अल्पा के ससुर | अभी उन्होंने किसी से कुछ कहा नहीं था बस स्तब्ध थे | तभी मुस्कुराती हुई कमला बोली बाबूजी ७ बज गए आपको कहीं जाना था न और ये लीजिये लंच कल तो शाम में आये थे दोपहर में कुछ खाया नहीं होगा आज जब मौका मिले खा लीजियेगा | बाबूजी लीजिये न और जाइये बहुत जरुरी काम था न |शर्मा जी कुछ सुन नहीं रहे थे बस देख रहे थे मुस्कुराती कमला में खिलखिलाती हुई अपनी नन्ही अल्पा को और फिर अचानक खून में लथपथ एक लाश ..............जिसे पहचानना नामुमकिन था अल्पा है या कमला .........      

रविवार, 5 दिसंबर 2010

नयन






नयनों की वाक पटुता पर |
मुग्ध हूँ मुकवाचालता पर |
न कुछ कहकर भी सबकुछ कह जाते हैं|
दिल की बातों से हमे अवगत कराते हैं |
बेजुबां जानवर क्यूँ इतने स्नेहमयी होते हैं?
क्यूंकि जुबां से नहीं नयनों से बात करते हैं |
जुबां तलवार की तेज़ धार है |
करती ह्रदय को जार-जार है |
आँखों में गहराई है इतनी ,
आसमां में ऊंचाई है जितनी |
ये नाराजगी भी कितने प्यार से जताते हैं |
बिन कहे हमारी गलती का एहसास कराते हैं |
नयन परायों को अपना बना लेते हैं |
अपनों से अपनत्व भी बढ़ाते हैं |
आँसु छलका कर पश्चाताप दर्शाते हैं |
दिल के दर्द, विवशता का एहसास भी कराते हैं |
नयनों की वाक पटुता पर |
मुग्ध हूँ मुक वाचालता पर |

शनिवार, 4 दिसंबर 2010

एक दास्ताँ


 उन भुली बिसरी बातों में
खोई हूँ तुम्हारी यादों में
बीते थे वो सावन मेरे
बैठ के डाली पर तेरे
तुम्ही पर तो था प्यारा घोंसला मेरा
तुम्हारे हीं दम से था बुलंद हौंसला मेरा
तुम्ही पर रह मैंने चींचीं  कर उड़ना सीखा
जीवन की हर मुश्किल से लड़ना सीखा
काट कर कँहा ले गए तुम्हे इंसान ?
बन गए हैं ये क्यूँ हैवान ?
मुझे रहना पड़ता है इनके छज्जों पर
जीना पड़ता है हर पल डर डर कर 
मैंने तो खैर तुम पर कुछ साल हैं गुजारे
पर कैसे अभागे हैं मेरे बच्चे बेचारे
कुछ दिन भी वृक्ष पर रहना उन्हें नसीब न हुआ
कुदरती जीवन शैली कभी उनके करीब न हुआ
काश! वो दिन फिर लौट आये
हरे पेड़ पौधे हर जगह लहराए

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

नज़रिये

हर सिक्के के दो पहलू , तुम्हे कौन सा भाता है ?
सब अच्छा या बुरा तुम्हे सोच किधर ले जाता है ?
रात है एक गहरा अँधेरा या रात क बाद नया सवेरा ?
सूर्य गर्मी से तड़पाता  या हमे ऊर्जा पहुँचाता है ?
मेघ बरस कर स्वत्व मिटाते या नया जीवन पाते हैं?
सागर का पानी खारा है या वह सबको शरण देने वाला है ?
तरबूज बीजों से भरा या कि बड़ा हीं रसीला है?
पादप न चल सकते  या जीवन भर बढते रहते हैं ?
सूरज से रौशनी लेता चाँद या तुम्हे चांदनी देता है ?
चाँद में है दाग या सुन्दरता का प्रतीक वह होता है ?
फूल खिलते हैं मुरझाने को या मधुर सुगंध फ़ैलाने को ?
चिराग तले अँधेरा है या वह रौशनी फैलाता है ?
सुई वस्त्र में छेद करता या धागे के लिए राह बानाता है ?
अग्नि सबको जलाती  या भोजन वही पकाती है ?
पर्वत राहों को रोका करते या ऊपर चढ़ने का मौका देते हैं ?
मोती बेचारा कैद रहता या सीप उसकी रक्षा करता है ?
कुत्ते लालची होते या वे वफादारी निभाते हैं?  
मधुरता से पक्षी चहचहाते या व्यर्थ शोर मचाते हैं ?
शिक्षक ने तुम्हे मारा या गलतियों को सुधारा है ?
मुश्किल राहें डराती या साहस तुम्हारा बढ़ातीं हैं ?
सबसे कुछ सीखा करते हो या कमियाँ ढूंढा करते हो ?
जन्में तुम मरने के लिए या सुकर्म निरंतर करने के लिए ?
सोच कर देखो तुम्हे सोच किधर ले जाते हैं ?
नज़रिये के बदलने से नज़ारे भी बदल जाते हैं |
गलत सोच सदा परिणाम गलत हीं लाते हैं |
सही सोच मंजिल का पता हमे दे जाते हैं |

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

श्रेष्ठ किसे कहें ?

हे मनुष्य ! तुम धरती के श्रेष्ठ जीव क्यूँ कहलाते हो ?
क्या तुम किसी को खुशी दे पाते हो ? 
जीवों की हत्या और साथ में पेड़ भी कटवाते हो !
औरों को छोड़ो अपनी माता धरती को भी बदहाल बनाते हो |
किस हक से तुम श्रेष्ठ जीव कहलाते हो ?
यूँ तो तुम संवेदनशील , चिंतनशील 
और न जाने कौन कौन शील प्राणी कहलाते हो |
प्रियजनों की मृत्यु को तुम अप्रिय बताते हो |
फिर क्यूँ औरों को मृत्यु बांटते जाते हो ?
तुम धरती के श्रेष्ठ जीव क्यूँ कहलाते हो ? 

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

माँ और पिता

आज 2 दिसम्बर, मेरा जन्मदिन है | मुझे जन्म मेरे मम्मी पापा ने दिया है, आज उन्ही की वजह से मैं इस दूनिया में हूँ अतः उन दोनों को ही अपनी रचना समर्पित करती हूँ |
                   माँ
माँ  तो एक पहेली है |
      कभी ममतामई |
तो कभी गुस्से वाली है |
सख्त होती कभी इतनी,
कि चट्टान भी धरासाई हो जाए |
नर्म हो जाती कभी इतनी ,
गुलाब की पंखुड़ी भी सख्त पड़ जाए |
घर की आधारशीला हैं वो ,
बच्चों की भाग्य विधाता भी |
गंगा की निर्मल धारा है ,
कभी उसका रूप ज्वाला है |
इस अंधियारे जग में वही तो एक उजाला है |
माँ तो एक पहेली है |
     कभी ममतामई |
तो कभी गुस्सेवाली है |


               पिता 
माँ की सहृदयता को सबने जाना 
पिता को किसी ने नहीं पहचाना 
माँ अगर है जन्मदाता 
तो पिता भी हैं पालनकर्ता 
पिता की कठोरता में हीं तो है कोमलता 
गुलाब की रक्षा काटा  हीं तो है करता
यह कठोर दाँत न हो अगर भोजन कौन चबायेगा ?
काम करने क लिए उर्जा शरीर कँहा से पायेगा ?
होते हैं नारियल जैसे पिता 
अन्दर से कोमल ऊपर झलकती कठोरता 
पिता तो एक छाते से होते हैं 
इस  दूनिया की धूप पानी से हमे बचाते हैं
पिता के प्यार कुर्बानी आदि को हम झुठला नहीं सकते 
जिन्दगी में उनकी अहमियत को भुला नहीं सकते