मैं नन्हा सा बीज, इस स्थुल जगत से घबराया
तब धरती माँ ने अपने प्यार भरे गोद में सुलाया
एक दिन हवा के झोंके ने मुझे पुकारा
पर उस ममतामई गोद को छोड़ने में मैं हिचकिचाया
फिर बारिश की की बूंद ने छींटे मार कर मुझे जगाया
पर फिर भी मैं वहीँ पड़ा रहा अलसाया
सुरज की किरणों ने मुझे ललकारा
गुस्से से आवाज़ देकर पुकारा
धीरे धीरे तब मैं ऊपर आया
अपनी जड़ों को धरती में हीं जमाया
बीज से अब मैं पौधे के रूप में आया
अपना नवीन रूप देख कर इतराया
सुरज ने दी गर्मी बारिश ने प्यास बुझाया
चंदा ने अपनी चांदनी से मुझे नहलाया
मस्त हवा के झोंकों ने झुला झुलाया
प्रकृति ने सुन्दर फूलों से मुझे सजाया
तितलियों ने फूलों से रस चुराया
भंवरों ने अपना मधुर गुंजन सुनाया
इसी तरह फूलता फलता मैं बड़ा हुआ
बीज से पौधा, और अब पेड़ बन खड़ा हुआ
बीज से बृक्ष की यात्रा का सुंदर वर्णन, अच्छी सोच, शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna--prastuti...ek beej se per banne kee kahaanee.
जवाब देंहटाएंSunil sir,Arvind sir Dhanyawaad
जवाब देंहटाएंशब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।
जवाब देंहटाएंThanks Sanjay Bhaiya
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