झूठी हो हाथों की हर लकीर तो क्या करें
बेवफ़ा हो अपनी हीं तकदीर तो क्या करें
मंजिलें भले मालुम हों रास्ते भी हों खुले
अपने हीं पैरो में हो ज़ंजीर तो क्या करें
ज़ख्म की गहराई हमने दिखा तो दी
उन्हें मालूम नहीं दर्द की तासीर तो क्या करें
हँसते रहने की आदत यूँ तो बना ली है
कलम से उतर हीं आये दिल का पीर तो क्या करें
...................................................................आलोकिता
बहुत ही सार्थक प्रस्तुतीकरण,आभार.
जवाब देंहटाएंbahut sundar ehsas ka gajal
जवाब देंहटाएंlatest post भक्तों की अभिलाषा
latest postअनुभूति : सद्वुद्धि और सद्भावना का प्रसार
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-03-2013) के चर्चा मंच 1193 पर भी होगी. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे खयालात ...बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंwaah
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंjao shishe ka badan lekar kidhar jaoge
जवाब देंहटाएंlog patthar kahen chhu lenge bikhar jaoge
main to khushbu hoon...fizao me utar jaunga,
mujhse ruthoge jo mere phool to marjaogen
Rat chahe kitni bhee gahari kyon na ho....
जवाब देंहटाएंSuraj ko hamesa ke liye nahi dhak sakta
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