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सुन लो हे श्रेष्ठ जनों
एक विनती लेकर आई हूँ
बेटी हूँ इस समाज की
बेटी सी हीं जिद्द करने आई हूँ
बंधी हुई संस्कारों में थी
संकोचों ने मुझे घेरा था
तोड़ के संकोचों को आज
तुम्हे जगाने आई हूँ
बेटी हूँ
और अपना हक जताने आई हूँ
नवरात्रि में देवी के पूजन होंगे
हमेशा की तरह
फिर से कुवांरी कन्याओं के
पद वंदन होंगे
सदियों से प्रथा चली आई
तुम भी यही करते आये हो
पर क्या कभी भी
मुझसे पूछा ?
बेटी तू क्या चाहती है ?
चाहत नहीं
शैलपुत्री, चंद्रघंटा बनूँ
ब्रम्ह्चारिणी या दुर्गा हीं कहलाऊं
चाहत नहीं कि देवी सी पूजी जाऊं
कुछ हवन पूजन, कुछ जगराते
और फिर .....
उसी हवन के आग से
दहेज़ की भट्टी में जल जाऊं
उन्ही फल मेवों कि तरह
किसी के भोग विलास को अर्पित हो जाऊं
चार दिनों की चांदनी सी चमकूँ
और फिर विसर्जीत कर दी जाऊं
नहीं चाहती
पूजा घर के इक कोने में सजा दी जाऊं
असल जिन्दगी कि राहों पर
मुझको कदम रखने दो
क्षमताएं हैं मुझमें
मुझे भी आगे बढ़ने दो
मत बनाओ इतना सहनशील की
हर जुल्म चूप करके सह जाऊं
मत भरो ऐसे संस्कार की
अहिल्या सी जड़ हो जाऊं
देवी को पूजो बेशक तुम
मुझको बेटी रहने दो
तुम्हारी थाली का
नेह निवाला कहीं बेहतर है
आडम्बर के उन फल मेवों से
कहीं श्रेयष्कर है
तुम्हारा प्यार, आशीर्वाद
झूठ मुठ के उस पद वंदन से
very nice..reality:)
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiya... is zidd ko is chaah ko aashirwaad
जवाब देंहटाएंबहुत गहन अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंमासूम बेटी का क्रंदन ... बहुत ही मार्मिक रचना ... सोचने को विवश करती है ...
जवाब देंहटाएंअच्छा सन्देश देती हुई सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई ... 100 फ़ोलोवर्स का आंकड़ा पार करने पर
जवाब देंहटाएंअलोकिता
जवाब देंहटाएं100 फ़ोलोवर्स होने की आपको ढेर सारी शुभकामनाये....!
मन को छू जाने वाले भाव।
जवाब देंहटाएं------
कभी देखा है ऐसा साँप?
उन्मुक्त चला जाता है ज्ञान पथिक कोई..
सुन्दर कविता बधाई और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना और सार्थक भी |
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग में भी पधारें |
मेरी कविता
काव्य का संसार
दिल को छु गई ,आपकी रचना
जवाब देंहटाएंalokita ji,
जवाब देंहटाएंजल्दी ही हमारे ब्लॉग की रचनाओं का एक संकलन प्रकाशित हो रहा है.
आपको सादर आमंत्रण, कि आप अपनी कोई एक रचना जिसे आप प्रकाशन योग्य मानते हों हमें भेजें ताकि लोग हमारे इस प्रकाशन के द्वारा आपकी किसी एक सर्वश्रेष्ट रचना को हमेशा के लिए संजो कर रख सकें और सदैव लाभान्वित हो सकें.
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अपनी टिपण्णी से हमारा मार्गदर्शन कीजिये.
जन सुनवाई jansunwai@in.com
आग कहते हैं, औरत को,
जवाब देंहटाएंभट्टी में बच्चा पका लो,
चाहे तो रोटियाँ पकवा लो,
चाहे तो अपने को जला लो,
सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति .....उम्दा पंक्तियाँ .सदियों से प्रथा चली आई
जवाब देंहटाएंतुम भी यही करते आये हो
पर क्या कभी भी
मुझसे पूछा ?
बेटी तू क्या चाहती है ?