गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

बचा लो जान खतरे में है !!!!!

जी हाँ आज वाकई में हमारी हिंदुस्तान कि भाषा हिंदी कि जान खतरे में है, और इसे बचाना हमारे हीं हाथों में है | किताबों में पढ़ा था कि हमारी हिंदी का स्वभाव बहुत ही सरल है ये दूसरी भाषाओं के शब्द भी खुद में मिला कर उसे अपना लेती है | इस चीज़ को सिर्फ पढ़ा नहीं अपितु व्यावहारिक जीवन में भी देखा है, लेकिन अब हम इसकी सरलता का उपयोग नहीं दुरूपयोग कर रहे हैं | 
आज कल हमारी भाषा कैसी हो गयी है :-
 कैसे हो ?
 fine. तू बता everything okay ?
yaa but थोडा परेशान हूँ job को लेकर 
और ऐसी ही वार्तालाप करके हमे लगता है कि हम तो हिंदी में बात कर रहे हैं | किसी भी भाषा का ज्ञान बुरा नहीं है | मैं अंग्रेजी के खिलाफ नहीं हूँ पर अंग्रेजी का जो कुप्रभाव पड़ रहा है हमारी हिंदी पर वह मुझे गलत लगता है | आज अंग्रेजी में राम बन गए हैं "रामा" बुद्ध बन गए हैं "बुद्धा" और टेम्स कि तर्ज़ पर गंगा हो गयी "गैंजेस" | अंग्रेजी माध्यम में पढने वाला कोई बच्चा अपने स्कूल में अगर गंगा कह दे तो मजाक का पात्र बन जायेगा | आज हम इतने पागल हो गए हैं अंग्रेजी के पीछे कि हिंदी का मूल्य हीं भूल गए हैं | अंग्रेजी को सफलता और विकास का पर्याय मान लिया गया है | क्या अंग्रेजी के बिना सफलता के मार्ग पर नहीं चला जा सकता ? वैसे तो बहुत से उदहारण हैं पर ज्यादा दूर जाने कि जरुरत नहीं हमारा पडोसी चीन क्या उसने अपनी भाषा छोड़ी ?नहीं | क्या वो हमसे पीछे रह गया ? नहीं | 
अंग्रेजी का इस्तेमाल हम मशीनी मानव कि तरह करते हैं, जो रटा दिया गया वही बोलते हैं, बिना किसी अहसास के | मगर हिंदी से हमारे अहसास जुड़े होते हैं | फ़र्ज़ कीजिये किसे ने हाल चाल पूछा तो हम कैसे भी हों कह देते हैं fine , लेकिन इसी बात को हम हिंदी में नहीं कह सकते कि बहुत बढ़िया हूँ | बहुत हुआ तो हम कह देंगे ठीक हूँ | कोई अन्जान भी मिले तो उससे बात करते हुए हम कह देतें हैं dear बिना ऐसा कुछ महसूस किये कि सामने वाला हमारे लिए dear है | पर क्या हिंदी में हम हर किसी को प्रिये कहते हैं ? नहीं , क्यूंकि ऐसा हम महसूस नहीं करते |    
तो जो भाषा हमारे अहसासों से जुड़ी हों उससे हम इतना दूर होते जा रहे हैं क्यूँ? सार्वजनिक जगहों पर हमे हिंदी का इस्तेमाल करने में शर्म आती है, ज्यादातर लोग अंग्रेजी का हीं इस्तेमाल करते हैं खुद को पढ़ा लिखा दिखाने के लिए | आज ज्यादातर युवा Chetan bhagat कि सारी पुस्तकें पढ़ चुके हैं पर हिंदी के उपन्यास के विषय में पुछो तो 'इतना टाइम किसके पास है' | इतनी दुरी क्यूँ आती जा रही है हिंदुस्तानिओं और हिंदी के बीच ? क्या इसका कोई हल है ? या यूँही दूर होते होते हिंदी और हिंदुस्तान का साथ छुट जायेगा ? क्या खतरे में पड़ी हिंदी कि जान को हम बचा पाएंगे ?
अगर हाँ तो गुजारिश है "बचा लो हिंदी कि जान खतरे में है |"              















बुधवार, 29 दिसंबर 2010

वो बचपन हीं भला था




ख्वाबों के टुकड़ों से ,

वो टुटा खिलौना हीं भला था |
इस हारे हुए मन से ,
खेल में हारना हीं भला था |
वक़्त कि मार से ,
वो छड़ी का डर हीं भला था |
टूटते हुए रिश्तों से ,
दोस्तों का रूठना हीं भला था |
खामोश सिसकियों से ,
रोना चिल्लाना हीं भला था |
कडवी सच्चाइयों से ,
झूठा किस्सा हीं भला था |
मन में फैले अंधेरों से ,
वो रात में डरना हीं भला था |
हर टूटे सपने से ,
भूतों का सपना हीं भला था |
निराशाओं के घेरे से ,
वो बचपन हीं भला था |

मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

काँच के रिश्ते



रिश्ते काँच से ,

नाजुक होते हैं |
धूप कि गर्माहट मिले ,
हीरों से चमक जाते हैं |
रंगीन चूड़ियाँ बनकर ,
जीवन को सजाते हैं |
इनके गोल दायरों में 

हम बंध  कर रह जाते हैं |
हाथ से जो छूटे ,
चकनाचूर हो जाते हैं |
बटोरना चाहो तो ,
कुछ जख्म दे जाते हैं |
आगे बढ़ना चाहो तो ,
पाँव को छल्ली कर जाते हैं |
रिश्ते बड़े जतन से ,
संभाले जाते हैं |

सोमवार, 27 दिसंबर 2010



न चाहो किसी को इतना ,
चाहत एक मजाक बन जाय |

न महत्त्व दो किसी को इतना ,
तुम्हारा अस्तित्व मिट जाए |

न पूजो किसी को इतना ,
वह पत्थर बन जाए |

न हाथ थामो किसी का ऐसे ,
सहारे कि आदत पड़ जाए |

न साँसों में बसाओ किसी को ऐसे ,
उसके जाते हीं धड़कन रुक जाए |

बनाओ खुद को कुछ ऐसा ,
हजारों चाहने वाले मिल जाए |

महत्त्व खुद का बढाओ इतना ,
लाखों सर इज्जत से झुक जाए |

रविवार, 26 दिसंबर 2010

विद्यालय

गुरुकुल से बना विद्यालय ,
विद्यालय अब हुआ वाणिज्यालय|
विद्या भी अब बिकती है संसार में ,
स्कूल और कोचिंग के बाज़ार में |
नैतिकता हुई बात पुरानी,
अनुशासन है एक कहानी |
गुरुजन अब हुए सौदागर ,
सौदा करते विद्या का जमकर |
बच्चों को अब अच्छाई सिखाये कौन ?
भटके हुओं को सत्मार्ग पर लाये कौन ?
विद्यालयों का हमे करना है जीर्णोधार ,
और है करना उच्च विचारों का संचार |
बढ़ानी है विद्यालयों की महिमा ,
हमे लौटानी है उनकी गरिमा |
तभी बनेगा हमारा देश महान ,
चहु दिशा में होगा गुणगान |

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

MERRY CHRISTMAS

WISH U ALL A MERRY CHRISTMAS. आज के दिन हर साल मुझे अपने बचपन का स्कूल और वो प्यारी प्यारी सिस्टर्स बहुत अधिक याद आती है | समाज सेवा में लगी उन साध्वी स्त्रियों का नाम जेहन में आते हीं श्रद्धा से नतमस्तक हो जाती हूँ | आज लगता है कि जिन्दगी का वह बहुत बुरा दिन था जब चौथी कक्षा में मैंने वो स्कूल छोड़ा था | आज तो मुझे उस स्कूल कि बहुत याद आ रही है और उन्ही यादों को मैं आपके साथ साझा करना चाहती हूँ |
हर साल क्रिसमस के दिन हमलोग अपने हाथ से ग्रीटिंग कार्ड बनाते थे | ख़रीदा हुआ कार्ड सिस्टर लेती नहीं थी | छुट्टी  के बावजूद इस दिन हमलोग कार्ड लेकर स्कूल जाते थे, वहाँ सिस्टर्स टॉफी देती थी चर्च में ले जाती थी और बाईबल पढ़कर सुनाती थीं| समझ में तो नहीं आता था पर बहुत ध्यान से सुनते थे हम सभी | उसके बाद हमलोग मौली मिस के घर जाते थे कार्ड देने | वहाँ केक मिलता था और बहुत तरह का केरेलियन व्यंजन (एक का नाम उत्पम या अच्पम कुछ ऐसा ही नाम था ) 
मौली  मिस, रूबी सिस्टर, नीलिमा सिस्टर, सेव्रिन सिस्टर, संध्या सिस्टर और सबसे प्यारी जोश्लिन सिस्टर I MISS YOU ALL A LOT.
रूबी सिस्टर जब भी किसी बच्चे को मारती थी तो अगले दिन टेंशन से उनकी तबियेत ख़राब हो जाती थी | जोश्लिन सिस्टर ....... उनकी बातें तो हमारे लिए तो उनकी बातें तो हमारे लिए पत्थर का लकीर हुआ करती थी | वे कभी डांटती नहीं थीं पर उनकी बातों में वो जादू था कि कभी भी उनकी बातों कि अवहेलना नहीं करते थे हमलोग | हँसी हँसी में ही वे अक्सर ऐसी छोटी छोटी बातें कह जाती थीं जो जिन्दगी के लिए काफी बड़ी बातें हैं | आज भी उनकी बातें याद हैं मुझे और जीवन के कई मोड़ पर ये बातें मार्गदर्शन भी करती हैं |
सिस्टर्स कहती थीं कि सच्चे दिल से इश्वर से किसी और के लिए (निस्वार्थ भाव ) कुछ मांगो तो जरुर  मिलता है | आज मैं उस इश्वर से यह प्रार्थना करती हूँ कि वे लोग जहां कहीं भी हो , जहां भी उनका स्थानांतरण  हुआ हो वे हमेशा हंसती मुस्कुराती रहें |
सिस्टर्स का सबसे प्रिये गाना जो हमे बचपन में सिखाया था उन्होंने :-
GOD'S LOVE IS SO WONDERFUL
OOOO WONDERFUL LOVEEEEE
IT'S SOOO HIGH, SO HIGH
WE CANT GET OVER IT
OOOO WONDERFUL LOVE
IT'S SO DEEP , SO DEEP 
WE CANT GET UNDER IT
OOOO WONDERFUL LOVE
IT'S SO WIDE, SO WIDE
WE CANT GET AROUND IT 
OOOO WONDERFUL LOVE
ये सोंग तो आज भी याद है और इसके सहारे याद आती है सिस्टर्स कि wonderful लव.................. 

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

दोस्ती



खून का नहीं यह दिल का रिश्ता है |

यह रिश्ता बहुत हीं खास है |

दोस्ती एक प्यारा सा एहसास है |


इसमें जात धर्म का भेद नहीं ,

उम्र नहीं बड़ी बात |

रिश्तों का कोई बंधन नहीं ,

है यह एक जज्बात |

(आज मैं सात साल बाद अपने एक बहुत प्यारे दोस्त से मिली, उन्ही सात सालों के लिए एक एक पंक्ति )

गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

सुन्दर कौन ?














क्या है सबसे सुन्दर जग में ?
क्या है सबसे कुरूप ?
मन है सबसे सुन्दर जग में |
मन है सबसे कुरूप |
तन का क्या है, आज है गोरा 
कल काला हो सकता है 
काले को भी गोरे में बदला जा सकता है 
मेरी बात पर ज़रा गौर फरमाना 
इस शरीर को है एक दिन मर जाना 
मरने के बाद भी सुन्दर मन को याद करेगा जमाना 


(बहुत पहले मतलब बचपन में लिखी थी ये कविता, पर आज भी मुझे बेमानी नहीं लगी तो सोचा आप लोगों की भी प्रतिक्रिया देख लूँ )

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

सब बदल गए




शब्दों के अर्थ बदल गए 
अर्थों के शब्द बदल गए 



 कुछ शक्लें थीं जानी पहचानी 
अब तो सारे चेहरे बदल गए 


दिखा देते थे सही चेहरा 
अब वे आईने बदल गए 


खुल कर कुछ कह नहीं सकती 
जाने क्या समझ बैठो 
हर शब्द के अब मायने बदल गए 


आसपास ढूंढ़ रहे थे हम 
हमे क्या पता था 
अब रिश्तों के दाएरे बदल गए 


नजरें अब भी वही हैं 
देखने के अंदाज़ बदल गए 


शब्द अब भी वही है 
बस उनके एहसास बदल गए 


हम तो अब भी वही हैं 
पर सबके जज्बात बदल गए 


ये देख कर सहम गयी 
अब तो समाज की सारी
व्यवस्था बदल गयी 


किसी ने समझाया 
बदला कुछ भी नहीं 
तुम्हारी अवस्था बदल गयी 

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

कलम का सिपाही


३१ जुलाई १८८० में पैदा हुए व्यक्ति वे महान ,
जिनका आजतक होता है गुणगान |
लमही था जिनका जन्मस्थान
अजयाब्लाल औ आनंदी के थे संतान
बचपन में धनपतराय नाम से थी उनकी पहचान
७ वर्ष की उम्र में माँ से बिछड़ गयी वह नन्ही जान
कटु विमाता के आने से हो गए वे परेशान
पर पढने पर दिया इन्होने खूब ध्यान
१४ वर्ष की ही आयु में शादी कर आ गयी इनकी दुल्हन
पिता की मृत्यु के कारण, परिवार का करना पड़ा पालन
जीवनयापन का इनके पास नहीं था कोई साधन
५ मील पैदल चलकर ५ रूपए महीने पर पढ़ाने लगे टिउसन
विषय गणित का नहीं था इनके लिए आसान
कई नौकरियों से करना पड़ा इन्हें प्रस्थान
क्यूंकि पेचिश के रोग ने बनाया हर जगह थोड़े दिनों का मेहमान
उस समय भारत में था अंग्रेजों का शासन
जब जब्त हुआ सोजे वतन
नवाबराय बने मुंशी प्रेमचंद
स्वरचित १५ उपन्यास,३०० कहानियों का किया संकलन
सामजिक रूढीवादिताओं पर होता था उनका लेखन
कलम का सिपाही किया उन्होंने अपना नामकरण
८ अक्टूबर १९३६ को समाप्त हो गया उनका जीवन
मरते दम तक साहित्य के प्रति काम न हुई उनकी लगन

 




सोमवार, 20 दिसंबर 2010

सौर्य परिवार



















यूँ तो दुनिया में है अनेको परिवार ,
पर एक परिवार पर बसा है यह संसार |
नाम है जिसका सौर्य परिवार |

हर परिवार की तरह इसमें भी है एक पिता ,
पर न जाने गुम हो गयी है कहाँ माता |
पिता के हैं नौ प्यारे प्यारे बच्चे ,
सभी के सभी बहुत सच्चे और  अच्छे |
पिता को छोड़ कर कहीं नहीं है जातें |

यूँ तो मिली सबको एक परवरिश ,
पर धरती में है कुछ गुण औरों से हटके ,
तभी तो हम करोडो जीव आकर इससे चिपके |

काश ऐसा कुछ हमारे घरों में भी होता, 
सबसे बलवान हमेशा रहता पिता | 
बच्चे होते उनके भी प्यारे , 
बुढ़ापे में न लात मारें |

रविवार, 19 दिसंबर 2010

पिंजरबद्ध जिंदगानी

पिजड़े में बंद एक तोता हूँ मैं ,
हार वक़्त भाग्य पर रोता हूँ मैं |

पर होते हुए भी अपर रहना मेरी मज़बूरी,
मीठू-मीठू की रट लगाना भी जरुरी |

ये घर वाले जताते हैं मुझसे कितना प्यार ,
क्या इतना भयंकर और क्रूर होता है प्यार?

एक दिन मन में एक ख्याल आया ,
मैंने मुन्नी को बहुत बहलाया |

बोला, खोल दो यह पिंजड़ा अगर,
दो मिनट उड़ कर आ जाऊंगा अन्दर |

पर वह भी थी बड़ी सायानी ,
उसने मेरी एक न मानी|

बोली खोल दूँ पिंजड़ा तो उड़ जाओगे ,
वापस ना फिर यहाँ  तुम आओगे |

तुरंत एक ताला पिंजड़े में जड़ दिया ,
उड़ान को सपनो से भी दूर कर दिया |

शायद हर पिंजरबद्ध की है यही कहानी ,
हाय ! यह पिंजरबद्ध जिंदगानी |
    

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

चलो एक बार फिर से











चलो एक बार फिर से ,
गुम हो जाएँ उन अतीत के पन्नों में |
चलो एक बार फिर से ,
घूम आयें उन बीती गलियों में |
चलो एक बार फिर से ,
जी आयें उन गुजरे  लम्हों में |
चलो एक बार फिर से ,
हँस ले उन हसीन यादों को |
चलो एक बार फिर से ,
सुन आयें उन अनकही बातों को |
चलो एक बार फिर से ,
चूम आयें उन बुलंद इरादों को |
चलो एक बार फिर से ,
चलो दोहरा आयें उन वादों को |
चलो एक बार फिर से ,
रो आयें बैठ कर साथ में |
चलो एक बार फिर से ,
गा आयें मिलकर एक सुर में |
चलो एक बार फिर से ,
निश्छल भाव से भर जाएँ |
चलो एक बार फिर से ,
सारी कटुता भूल जाएँ |
चलो एक बार फिर से ,
सब मिलकर मौज मनाएं |
(missing my school days 2 much, so dedicated 2 all my frenz )

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

चिता और चिंता






चिता में जलते हैं निर्जीव ,
चिंता से जलते सजीव |




कुछ घंटो में चिता की अग्नि शांत हो जाती ,
पर चिंता की अग्नि निरंतर बढती हीं जाती |


चिंता में जलता रहता है मानव ,
चिंता उसका खून पीती बनकर दानव |


अपना लहु देकर भी हमे कुछ मिल नहीं पाता,
चिंता में सर खपा कर भी कुछ हाथ न आता |


चिंता है एक मकड़  जाल, जिसमे मानव फंसता जाता,
अवनति रूपि दलदल में वह धंसता जाता |


हास्य-विनोद हीं इस चक्रव्यूह को है तोड़ सकता ,
चिंता से दूर कर खुशियों से हमारा नाता जोड़ सकता |



हास्य-विनोद से सब अपना नाता जोड़ो,
और आज से हीं चिंता का दामन छोड़ो |


गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

एक लघु कथा

एक प्यारा सा बच्चा था | वह अपने पापा के साथ कहीं जा रहा था |गोद में लेकर उसके पिता ने जल्दी से रेलगाड़ी पर चढ़ा दिया और फिर खुद भी चढ़ गए | उनके पास ढेर सारा सामान था, उसे व्यवस्थित कर के रखने लगे | तभी उस प्यारे से मुस्कुराते हुए बच्चे की नज़र खिड़की से बाहर गयी | उसने देखा बाहर स्टेशन पर खड़ा एक आदमी फ्रूटी बेच रहा था | उसने कहा 'पापा में को फ्रूटी चाइए' | पापा ने कहा सामान रख लेने दो खरीद देता हूँ | पर तब तक फ्रूटी वाला आगे बढ़ने लगा और रेलगाड़ी भी दूसरी दिशा में बढ़ने लगी | बेचारा बच्चा रोने लगा, जोर जोर से रोने लगा | पापा चूप कराते, वह और जोर से रोने लगता | थोड़ी देर बाद एक दूसरा फ्रूटी वाला ट्रेन के अन्दर फ्रूटी बेचने आया | पापा ने फ्रूटी खरीदी और बच्चे को देने लगे पर वह बच्चा इतना रो रहा था कि उसने ध्यान ही नहीं दिया और हाथ पाँव पटकता रहा यहाँ तक कि उसके हाथ से लग कर फ्रूटी का डब्बा गिर गया | पैसे बर्बाद हो गए और उसके पापा को गुस्सा आ गया और उन्होंने एक जोरदार तमाचा जड़ दिया |


कहीं हम सब भी उस जिद्दी बच्चे वाली गलती तो नहीं कर रहे न ? अक्सर ऐसा होता है कि कुछ कारणों से हम जो चाहते हैं या जब चाहते हैं वह मिल नहीं पता और हम उस बच्चे की तरह रो-धो कर आने वाले अवसर को भी गवाँ देते हैं | जो लोग ऐसा करते हैं अंत में नियति उन्हें ऐसा जोरदार तमाचा मारती है कि रोने के सिवाए और कोई रास्ता नहीं बचता उनके सामने | उस बच्चे कि जिन्दगी के लिए यह तो एक छोटा सा सफ़र था | ऐसे बहुत से सफ़र और आयेंगे उसके जीवन में पर हमने अपने जीवन सफ़र में ऐसी गलती कर दी तो दोबारा मौका नहीं मिलने वाला | जो अवसर छुट गया सो छुट गया उसे छोड़ो, आगे बढ़ो | आने वाले अवसर के लिए तत्पर रहो | बीते मौके का मातम मनाओगे तो आने वाले मौकों की भी अर्थी उठ जाएगी |

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

कविता

सोचा चलो लिखूँ एक कविता ,
फिर सोचा क्या है ये कविता ?

मनोभावों की संसार है कविता ,
बहती एक रसधार है कविता |

मृदु भावों की मिठास है कविता ,
मन का कभी उल्लास है कविता |

व्यथित ह्रदय की आह है कविता ,
शब्दों की प्रवाह है कविता |

कभी छोटी सी कथा है कविता ,
कभी मन की व्यथा है कविता |

प्रताड़ित की आवाज़ है कविता ,
प्रेम की एक अंदाज़ है कविता |

व्यंग्य की मीठी कटार है कविता ,
जीवन का प्रसार  है कविता |

कल्पना की उड़ान है कविता ,
कवि की पहचान है कविता |

कला की एक वरदान है कविता ,
चिंतन की विधान है कविता |

कवियों की जज्बात है कविता ,
विशुद्ध ह्रदय की चाह है कविता |   

कर्म बड़ा या भाग्य

सदियों से मानव सभ्यता कर्म और भाग्य इन दो शब्दों के इर्द गिर्द घूम रही है | कर्म बड़ा है या भाग्य ? भाग्य को कर्म का फल माना गया है | कर्म को तो सभी बड़ा मानते हैं पर न चाहते हुए भी भाग्य को मानना हीं पड़ता है | सबने अपने अपने अनुभव और सोच के आधार पर इन शब्दों को परिभाषित किया है | ज्यादा तो नहीं पर जीवन का मुझे जितना भी अनुभव है उसमे मैंने यही पाया है की भाग्य न सही दुर्भाग्य कर्म से ताकतवर जरुर है | ये मत समझिएगा कि मैं कर्महीन जीवन कि वकालत या पैरवी कर रही हूँ | कर्म तो सबसे बड़ा धर्म है इंसान का | सीधे सीधे लब्जों में कहूँ तो वास्तविक जीवन में भाग्य कर्म से ज्यादा बली है पर यही तो असली मज़ा है कर्मशील जीवन का | कमजोर से लड़कर तो कोई भी जीत सकता है बहादुरी तो इसी में है न कि हम खुद से बलवान को हरा दें | बिना कर्म किये अगर भाग्य से हार जाते हैं तो हम कायर कि मौत मरेंगे और कर्म करके भी हम हार गए तो कर्मपथ पर शहीद होंगे | अरे इसी बात पर मैंने कुछ सोचा है :- क्या हुआ जो तू लड़कर हार गया ,
                                                                                  उससे तो कहीं अच्छा जो डरकर हार गया |
महाभारत का कर्ण तो याद है न | जन्म से लेकर मृत्यु तक हर कदम पर दुर्भाग्य ने उसे घेरा अंततः वह हार भी गया पर वह लड़कर हरा डरकर नहीं तभी तो वह शहीद हुआ | महाबली कर्ण कहलाया | सन 1857 के सभी शहीद युद्ध तो हार गए थे न फिर भी आज तक उन्हें इज्जत से याद किया जाता है क्योंकि दासता उनका दुर्भाग्य था उनका कर्म उससे जीत न सका पर वे डरकर नहीं लड़कर हारे थे | तभी तो शहीद कहलाये | भाग्य तो हमारे हाथ में नहीं है पर कर्म तो है | भाग्य कर्म से बली भी है तो क्या हुआ ?जब अँगरेज़ हमारे देश में आये थे तो वे भी हमसे ज्यादा ताकतवर थे |उनके पास आधुनिक हथियार थे जो हमारे पास नहीं थे | 200 साल तक हमने उनकी दासता झेली थी वह दुर्भाग्य था हमारा उस दासता से मुक्ति के लिए हम लड़े ये कर्म था हमारा |
दुर्भाग्य से लड़कर कर्म जीत जाए यह जरुरी नहीं पर हम सदैव कर्मरत रहें यह अत्यांतावाश्यक है | हमारा आत्मविश्वास हमे जीत दिलाये ऐसा हमेशा नहीं होता पर आत्मविश्वास हमे निरंतर कर्मरत जरुर रखता है | बरसते पानी को हम बंद नहीं करा सकते वह नियति के हाथ में है पर उससे बच तो सकते है न | भाग्य ताकतवर है पर उससे लड़कर हमे यही तो सिद्ध करना है कि हम कायर नहीं हैं | खुद से बलवान से भी टक्कर लेने का जज्बा है हममे |    

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

आँसु की कहानी

कल मैंने देखा एक सपना ,
सपने में रो रहा था कोई अपना |

वह थी हमारी धरती माता ,
हमसे है उनका गहरा नाता |

बहुत पूछने पर सुनाई आँसु की कहानी,
जिसे सुनने पर हुई मुझे हैरानी |

उन्हें नहीं था अपने बुरे हाल का  दुःख ,
नहीं चाहिए उनको हमसे कोई सुख |

उनकी गम का कारण थे हम ,
फिर भी हमारे लिए थी उनकी आँखे नम|

उन्होंने ने कहा मनुष्य बन रहे अपनी मृत्यु का कारण,
मेरे पास नहीं है इसका निवारण |

कभी मुझ पर हुआ करती थी हरियाली ,
मनुष्यों के कारण छा गयी है विपदा काली|

                                                                                अपनी सुन्दरता से मुझे क्या है करना ?
                                                             मनुष्यों के लिए हीं मैंने पहना था हरियाली का गहना |

                                  
                                   यह जानते हुए भी मनुष्य कर रहे पेड़ो की कटाई,
                                   अपनी बर्बादी को मनुष्यों ने खुद है बुलाई |

कहीं यह सपना बन ना जाए सच्चाई ,
इसीलिए प्लीज़ रोको पेड़ो की यह कटाई |

रविवार, 12 दिसंबर 2010

बीज से पेड़

मैं नन्हा सा बीज, इस स्थुल जगत से घबराया
तब धरती माँ ने अपने प्यार भरे गोद में सुलाया
एक दिन हवा के झोंके ने मुझे पुकारा
पर उस ममतामई गोद को छोड़ने में मैं हिचकिचाया
फिर बारिश की की बूंद ने छींटे मार कर मुझे जगाया
पर फिर भी मैं वहीँ पड़ा रहा अलसाया
सुरज की किरणों ने मुझे ललकारा
गुस्से से आवाज़ देकर पुकारा
धीरे धीरे तब मैं ऊपर आया
अपनी जड़ों को धरती में हीं जमाया
बीज से अब मैं पौधे के रूप में आया
अपना नवीन रूप देख कर इतराया
सुरज ने दी गर्मी बारिश ने प्यास बुझाया
चंदा ने अपनी चांदनी से मुझे नहलाया
मस्त हवा के झोंकों ने झुला झुलाया
प्रकृति ने सुन्दर फूलों से मुझे सजाया
तितलियों ने फूलों से रस चुराया
भंवरों ने अपना मधुर गुंजन सुनाया
इसी तरह फूलता फलता मैं बड़ा हुआ
बीज से पौधा, और अब पेड़ बन खड़ा हुआ 

SAY NO 2 CASTEISM

प्रणाम!!! क्या हुआ ?शीर्षक अंग्रेजी में देख कर असमंजस में पड़ गए का ?आज आलोकिता का स्टाइल इतना बदला बदला क्यूँ है ?दरअसल बात ये है न कि कल मेरे ब्लॉग का एक महीना पूरा हो गया इसीलिए आज हम सोचे कि कुछ स्पेशल लिखा जाए | कुछ रियल लाइफ का बात भी बताया जाय |अब जो बात जैसे हुआ है उसी भाषा में बताने में अच लगेगा न इसीलिए हम ग्रामर शुद्धता इ  सब छोड़ के बस जैसे बोलते हैं रियल लाइफ में वैसे हीं लिख दे रहे हैं |
हम एक ठोबात सोच रहे थे कि हम लोग के पूरा समाज का कथनी और करनी में केतना फर्क है न | किताब में हम लोग को का पढाया जाता है ?यही न कि जात-पात नहीं मानना चाहिए लेकिन जो टीचर चाहे मम्मी पापा हमलोग को no castism   वाला चैप्टर पढ़ाते हैं वही लोग न फिर castism भी सिखाते हैं | का गलत कहें ? अईसे तो कहा जाता है कि जात धरम नहीं मानना चाहिए सबको मिलजुल कर रहना चाहिए | हम इ पूछते हैं कि जब जात पात कुछ होइबे नहीं करता है सब इंसान एके है तो हम लोग को जात धरम के नाम पर बाँट काहे दिया जाता है?
कोई फॉर्म भरने चलो तो कोस्चन जरुर रहता है Candidate appearing for the exam belongs to 1.General  2.O.B.C  3.Sc/St.
बचपन से सिखाया जाता है कि जात पात मत मानो लेकिन 8th 9th तक पहुँचते पहुँचते स्कूल में cast certificate माँगा जाने लगता है | 10th के लिए 9th registration होता है न |अब शिक्षित बनना है तो बिना अपना जात जाने हुए बच्चा शिक्षित कईसे हो सकता है ?
जब हम छोटे बच्चे थे न तो इस मामले में बहुत बेवकूफ थे (इ मत समझिएगा कि अब ढेर तेज़ हो गए हैं ) इसके लिए बहुत मजाक भी उड़ा है |कभी कोई दोस्त की मम्मी पुच देती की कौन जात हो बाबु मेरा तो मुँह बन जाता था | हँस के कह देते थे पता नहीं आंटी | अईसे देखती थी लगता था सोच रही है च्च्च बेचारी जात तक नहीं पता इसको |और फिर लगाती थी अपना जासूसी दिमाग 'अच्छा पापा का पूरा नाम क्या है '? धीरे धीरे जब बड़े होने लगे तो कोई कोई दोस्त लोग भी पूछने लगी | हमको इ सब से कुछ फर्क नै पड़ता था | लेकिन फर्क पड़ा जब teacher लोग भी पूछने लगे ? एकदम G.K.कोस्चन टाइप हो गया था ' कौन जात हो'?
संस्कृत में सबसे अच नंबर आया अचानक क्लास में श्लोक बोलवाए हम सब सही सही बोल दिए तो सर बहुत खुश हुए | शाबाशी देने के लिए बुलाये और पूछते हैं की श्लोक तो बहुत शुद्धता से बोली मिश्रा जी हो की झा जी (मेरे नाम में कोई सर नेम नहीं है न )वो खुद मिश्रा जी थे |हिंदी वाले झा सर लंच में बुला कर पूछते थे 'पापा सरकारी नौकरी में हैं न रे लालाजी हो क्या ?हम पूछे लालाजी को हीं सरकारी नौकरी मिलता है क्या सर ?बोले नहीं रे एदम पागले हो इधर लालाजी लोग जादे है नौकरी में न गेस कर रहे थे | लेकिन गजब पागल हो तुम १२ साल की लड़की इतना भी नहीं पता की कौन जात के हो |बहुत बुरा लगा था सर के बोलने का तरीका हमको | घर आते आते मम्मी से पूछे थे उस दिन की क्लिअर  क्लिअर  बताइए हमलोग किस कास्ट के हैं ?कौन सा कास्ट बड़ा होता है कौन सा छोटा सब बताइए | सर के कारण पूछ रहे हैं इ बात नहीं बताये मम्मी को काहे कि सर का बुराई करना हमको अच्छा नहीं लगता था | एक बार रविदास जयंती के दिन मेरी दो दोस्त (जुडुवा थी ) नहीं आई बोल के कि
कंही जाना है | गुप्ता सर G.K. वाले पूछे ये सीता गीता का जोड़ी कँहा गायब है ? जब हमलोग बोले कि कंही घुमने गयी है तो सर बोले आज तो रविदास जयंती है| जोशी टाइटिल से से हमको पते नहीं चला इ लोग के बारे में | इंग्लिश सर किसी से पूछते नहीं थे खली अपना बताते रहते थे कि हम श्रीवास्तव जी हैं | शिवपूजन सहाय रिश्ते में मेरे दादा लगते थे (कैसे कैसे वो हमको याद नहीं है )खैर क्लास ८ में मेरा कास्ट क्या है ?जबतक नहीं पता था तब तक तो ठीक था, अब पता चल गया और कोई कास्ट पर कमेन्ट करे तो बुरा तो लगता है न |मेरी एक दोस्त फॉरवर्ड कास्ट की थी क्लास में नीचे से फर्स्ट करती थी | बेचारी को पता नहीं था कि हम O.B.C.में आते हैं बोली पता है यार हमलोग को बहुत घाटा हो जाता है सब जो इ सब छोटा जात वाला सब होता है कम नंबर लाके भी आगे हो जाता है रेजेर्वेसन के चलते | हम लोग मेहनत कर करके मर जायेंगे तो भी पीछे हीं रह जायेंगे | चूँकि मन में इ बात आ चुका था कि हम O.B.C. हैं बुरा तो लगना निश्चित था न | हम बोले हाँ यार तेरे को तो बना बनाया बहाना मिल गया, छोड़ वो तो बहुत दूर की बात है क्लास में तो reservation नहीं है मेरे नंबर के आसपास आके दिखा दे | पर ये कटाक्ष उसके दिमाग से ऊपर था समझी नहीं | लड़ने का मूड नहीं था सो हम भी बात पलट दिए |
कहने के लिए तो जाती प्रथा ख़तम हो चुका है पर सच्चे दिल से सोचिये की का सही में ख़तम हुआ है ?कोई भी गुण-अवगुण आदमी का अपना होता है जाती से नहीं मिलता |
नेट में कंही भी साईन इन करने क लिए फर्स्ट नेम लास्ट नेम लिखना पड़ता है , हम तो लास्ट नेम कुछो रखे ही नहीं खाली आलोकिता |पर अपना नाम क साथ गुप्ता बोलने में अच्छा लगा तो लिख लिए लो रे भाई फिर कास्ट में बांध दिया गया | ३-४ गो फ्रेंड रिक्वेस्ट आया Hii! Alokita ji I'm a gupta 2 so add me....| अरे भाई मेरे इ मेरा फ्रेंड लिस्ट है गुप्ता कम्युनिटी थोड़े है |
आखिर कब तक मानवता के बीच में इ जातीयता का दीवाल खड़ा रहेगा ? कब तक ? जब तक हम सही तरीका से जातीयता से ऊपर नहीं उठेंगे धरम निरपेक्ष नहीं बन सकते और मानवता हा हा हा हा सोचना भी पागलपना है | है की नहीं ? है न |