अरमान तो होंगे उसके भी
कि बेटा मरने पर कंधा दे
मुखाग्नि दे, श्राद्ध करे, श्रद्धा से उसको तर्पण दे
पर देखो वो माँ बेटे को ही कंधा दे आई
जुग जुग जियो कहती थी जिस लाल को
उसका अंतिम संस्कार अपनी आँखों से देख आई
सब कहते हैं देश के लिए जान देकर उसका बेटा मरा नहीं अमर हो गया है
एक बेटा शहीद हुआ तो क्या?
मैं दूसरे को भी रण में भेजूंगा
ये शान से कह रहा वो पिता
जिसके बुढ़ापे का सहारा छीन गया
कहता है बेटे का जन्म लिया तो इतना तो करना होगा
खतरे में हो देश तो बेटों को लड़कर मरना होगा
बुढ़ापे का सहारा चला गया पर गर्व से छाती चौड़ी है
सब कहते हैं देश के लिए जान देकर उसका बेटा मरा नहीं अमर हो गया है
उनके घर आने की प्रतीक्षा में
जो एक-एक घड़ियाँ गिनती थी
आने पर घंटो बतियाऊंगी सोचकर
एक-एक छण मन में सहेज कर रखती थी
आज वही उसके सामने निष्प्राण पड़ा है
जिसकी लम्बी उम्र के लिए निर्जल व्रत वो करती थी
सदा सुहागन वाले सारे आशीर्वाद जाने कैसे निष्फल हो गए
गर्व, दुःख, शोक आज तो सारे आपस में गडमड हो गए
सब कहते हैं भले सुहागन न रही
पर उसका सुहाग देश के लिए मर कर अमर हो गया है
"हाँ अगली बार बक्से भर कर खिलौने लाऊँगा"
बेटे से यही वादा कर गए थे पापा
कैसा क्रूर मज़ाक है ये
ख़ुद बक्से में बंद होकर आ गए हैं पापा
वो दूध-पीती बच्ची जिसको थपकियाँ देकर माँ यही लोरी गाती थी
तेरे पापा जब आएँगे, गोदी में तुझे खेलायेंगे
वो तो जान भी नहीं पायेगी कि कैसे होते हैं पापा
उधर वो बड़ा बेटा अभी से प्रण कर बैठा
आपका बहादुर बेटा बनकर मैं भी दिखाऊंगा पापा
देखना आपकी तरह ही एक फौजी बन जाऊंगा पापा
सबने उसको समझा दिया है...
देश के लिए मरकर उसके पापा अमर हो गए हैं
शहीदों के शव के पीछे हज़ारों लोग नारा लगते हैं
स्टेटस डालते, सोशल मीडिया पोस्ट पर भी यही कहते हैं
देश के लिए मरने वाला होता है शहीद, नहीं कभी वो मरता है
जान गँवा कर भी वो अमर ही रहता है
क्या तुम भी यही मानते हो कि एक शहीद कभी मरता नहीं?
ध्यान से देखो...
ध्यान से देखो तो कहीं न कहीं एक शहीद रोज़ मरता है
और मारते हैं हम... उसके देशवासी
वही देशवासी जिनकी रक्षा के लिए वो लड़ा था
अपने साथियों संग दुश्मन के आगे दीवार बनकर खड़ा था
घुटनो का दर्द लेकर जब उसकी बूढी माँ
चलती हुई गांव के सरकारी हस्पताल तक जाती है
डॉक्टर साब शहर में प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं, यहां कभी कभी ही आते हैं
यह सुनकर जब वो मायूस लौटकर आती है
तब , हाँ तब वो शहीद फिर मरता है
कागज़ी कार्यवाई के नाम पर
वो सरकारी बाबू जब बुड्ढे बाप को
दफ़्तर दफ़्तर दौड़ाता है
तब, हाँ तब शहीद फिर मरता है
उसकी शहादत पर मिले पैसों में भी
जब कोई अफसर घुस की हिस्सेदारी लगता है
तब, हाँ तब एक शहीद फिर मरता है
नौकरी का वादा देकर जब कोई नेता
उसके परिजनों को महीनों-सालों तक टहलाता है
तब, हाँ तब वो शहीद रोज़ मरता है
सरहद पर खड़े उसके साथियों के रसद-पानी में भी
जब कोई नेता, कोई अफसर घपला कर जाता है
तब, हाँ तब देश का हर शहीद फिर मरता है
कुछ पैसों की खातिर जब कोई देश द्रोही हो जाता है
देश में रहकर जब कोई देश तोड़ने को षड्यंत्र रचाता है
तब, हाँ तब देश का हर शहीद फिर मरता है
देश में रहना वाला कोई जब-जब अपने फ़र्ज़ से गद्दारी करता है
तब, हाँ तब कहीं न कहीं कोई शहीद फिर मरता है
देश सेवा के लिए ज़रूरी नहीं है सरहदों पर जाना
ईमानदारी से फ़र्ज़ निभाए तो हर इंसान देश को मज़बूत कर सकता है
निज़ी स्वार्थ को जब-जब कोई देश से ऊपर रखता है
तब-तब हाँ तब-तब देश का शहीद फिर मरता है