सूर्य सम है इसमें तेज़ प्रबल
तू इसको निस्तेज न कर
कलम रही सदा निश्छल
तू इससे छल छद्म न कर
कलम से निकली जो शब्द सरिता
वही काव्य का रूप हुई
उद्वेलित, स्वच्छ सी यह सरिता
तू इसकी स्वच्छता न हर
प्रकृति सम साहित्य के रूप अनेक
हर रूप की सुन्दरता विशेष
भावनाओं में सागर सी गहराइयाँ
आशाओं में गगन सी उचाइयां
निबंध कहीं समतल सुघड़ है
गद्य कहीं पर्वत सा अटल है
प्रेम में अरण्य सी सघनता
विरह में सूने मैदान सी वीरानी
द्वेष व्यंग के कंक्रीटों से
अनुपम छटा बर्बाद न कर
कलम को कलम रहने दे
तू इसको कृपाण न कर
कलम चला है जब भी तो
देश के सम्मान हेतु
मानवता उत्थान हेतु
निर्बलों के त्राण हेतु
इसका गलत उपयोग न कर
अपने स्वार्थ हेतु
इसकी तू महानता न हर
सूर्य सम है इसमें तेज़ प्रबल
तू इसको निस्तेज न कर
kalam badi hai pavan
जवाब देंहटाएंsafal karti hai jivan
sadupyog karen iska
nirmal ho jayen sarvjan
....main avshya palan karunga ....shabdon aur man me samanjasya sanjone ka...:)
बहुत ही सुंदर रचना है
जवाब देंहटाएंsunder hai :)
जवाब देंहटाएंकलम चला देश के निर्माण हेतु। बहुत सुन्दर सन्देश देती रचना के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंbahut achchi.
जवाब देंहटाएंa lovely composition...alokita ji /
जवाब देंहटाएंalso depicts...the power of pen/ clearly/
.
जवाब देंहटाएंत्रुटि सुधारें :
१] सुने मैदान सी — सूने मैदान सी
२] द्वेष व्यंग के कंक्रीटों से
३] अनुपम छटा.... न कि छठा
.......... अच्छे उपमान गढ़े.
.
Thanks vasisth sir chata likhne ke liye main likh likh kar pareshan ho gayi thi par chatha ho ja raha tha copy kar ke paste kar leti hun
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और प्रवाहमयी रचना।बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सशक्त अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंबसन्तपञ्चमी की शुभकामनाएँ।
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी के अवसर में मेरी शुभकामना है की आपकी कलम में माँ शारदे ऐसे ही ताकत दे...:)