अपमान हलाहल हँस कर पी लूँगी
यातनाओं में घिर कर जी लूँगी
ये सब तेरे हीं तो है न उपहार
जो भेजे तुने अपनी मीरा के द्वार
देख दुश्मन बन जग वालों ने मुझको घेरा है
जग की क्यूँ फिकर करूँ, जग निर्माता हीं मेरा है
पूर्व जनम दर्शन का वादा दिया,भूल गए क्या गिरधर ?
एक झलक दे यह जनम कर दो सफल हे मुरलीधर !
तेरे सांवले रंग सिवा कोई रंग न मुझको भाय
तेरे मदिर नयनो सिवा कोई नशा न मुझपे छाय
आजा गिरधर तू क्यूँ अब इतनी देर लगाय
तेरी मीरा दीवानी सुध बुद्ध खो कर तुझे बुलाय . . . . .
भक्तिरस से सराबोर सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पुकार.......मोहन को अना ही होगा......
जवाब देंहटाएंबहंत खूब !!
जवाब देंहटाएंभक्तिभाव से सराबोर करदिया आपने, आभार।
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ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेखा,टोने-टोटके।
सांपों को दुध पिलाना पुण्य का काम है ?
बहुत ख़ूबसूरत भक्ति रचना..बहुत भावपूर्ण..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भक्ति रचना,,,,,,,,,
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