पाँव लड़खड़ाते......... हर मोड़ पर
मिलते हैं चौराहे....... हर मोड़ पर
कदम दर कदम... बढती जिन्दगी
ठिठक सी जाती है.... हर मोड़ पर
कई विकल्प......... मुँह ताकते से
खड़े रहते हैं............ हर मोड़ पर
असमंजस में डालते......... चौराहे
एक फैसला होता..... हर मोड़ पर
मिल जाते....... राहों में कई लोग
बिछड़ हीं जाता. कोई हर मोड़ पर
छुटी परछाईं.... राहों में जाने कहाँ
तन्हाई मिलती है.... हर मोड़ पर
नई आशाएं जगतीं..... कभी कभी
बिखरते हैं सपने..... हर मोड़ पर
यूँ भी जिन्दगी... कुछ आसां नहीं
कठिनाइयाँ बढती... हर मोड़ पर
बुनती नियति....... नित नई राहें
उलझती जिन्दगी.... हर मोड़ पर
waah bahut khub sabado ka chayan,,,behtarun....mubarak
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंहर मोड़ पर मिल जायेंगे
जवाब देंहटाएंकदरदान तुझे
बस विश्वास का दिया जलाते रहना....
हर कोशिश में रहेगी
उनकी मेहेरबानी
बस प्रेम उनसे युहीं निभाते रहना ...
मुमकिन नहीं अकेले सफ़र हो जाए आसाँ
फ़रिश्ते आयेंगे राहों में
उन्हें हमसफ़र बनाते रहना ..
बढ़िया है
जवाब देंहटाएंऐसे लिखती रहो
शुभाशीष
खूबसूरती से आकार लेते शब्द ,मनमोहक रचना बधाई
जवाब देंहटाएंउलझती हुई जिन्दगी के कुछ रोचक पल
जवाब देंहटाएंकोमल भावों से सजी ..
जवाब देंहटाएं..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
हमने भी एक खुबसुरत रचना पढ़ी इस मोड़ पर। आभार।
जवाब देंहटाएंkya khub mod dikhaya hai......... jai hind jai bharat
जवाब देंहटाएंbahut achcha laga.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अहसास,सुंदर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंवाह.
जवाब देंहटाएंबहुत देर से आपकी कविताएं पढ़ रहा हूँ
जवाब देंहटाएंआप बहुत अच्छा लिखती है .. ये कविता बहुत अच्छी है ..
बधाई !!
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html