आदत हो चुकी हैं गम को पी जाने की
आती नहीं अदा... खुशियाँ छिपाने की
हंस जो देती हूँ.......... जरा खुश होकर
नज़र लग ही जाती है....... ज़माने की
टिक गया है दर पे....... गम कुछ ऐसे
बात करता ही नहीं अब तो जाने की
अंधेरो में बहुत जी चुकी.... अब तक
अबकी कोशिश हैं... रौशनी लाने की
कभी अब न कांपेंगे......... मेरे कदम
ठान ली है मैंने कुछ कर दिखाने की
ग़मों ने सोचा था.. की मैं टूट जाउंगी
मुझे आदत नहीं..... यूँ हार जाने की
aati nahi ada khusiyaan chipaane ki...bahut sunder...
जवाब देंहटाएंna gam batao bahut
na khusi ko dabao
bas chalo safar par
aur bas chalte chale jao...irshaad...
बहुत खूब ...बढ़िया गज़ल ..और यूँ ही हौसला बनाये रखिये
जवाब देंहटाएंटिक गया है दर पे....... गम कुछ ऐसे
जवाब देंहटाएंबात करता ही नहीं अब तो जाने की
बहुत खूब यह शेर तो हमारे जीवन का हाल वयां कर रहा है |
अच्छी गजल मुबारक हो....
thaan li hai to jeet hogi hi
जवाब देंहटाएंवाह आलोकिता ………गज़ब के शेर हैं…………हर शेर लाजवाब्…………शानदार्।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 10 - 05 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
wah.kya baat hai.....
जवाब देंहटाएंवाह !प्रथम आगमन है मेरा --काश की जल्दी आती !
जवाब देंहटाएंkhoobsurta alfaj, hausla dete hue!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... जबरदस्त तेवर हैं ... क्या खूबसूरत शेरॉन से सजी है ये ग़ज़ल .....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंBahut acchi rachna hai
जवाब देंहटाएंhamari gali me bhi darshan dein
www.pksharma1.blogspot.com
बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा
जवाब देंहटाएंवाह बेहद उम्दा गज़ल.....
जवाब देंहटाएंwaah kya baat hai..bhut achhi lagi aapki kabita....
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