सोमवार, 9 मई 2011

मुझे आदत नहीं.... यूँ हार जाने की

आदत हो चुकी हैं गम  को पी जाने की 
आती नहीं अदा... खुशियाँ छिपाने की 

हंस जो देती हूँ.......... जरा खुश होकर 
नज़र लग ही जाती है....... ज़माने की 

टिक गया है दर पे....... गम कुछ ऐसे 
बात करता ही नहीं अब तो  जाने की 

अंधेरो में बहुत जी चुकी.... अब तक
अबकी कोशिश हैं... रौशनी लाने की 

कभी अब न कांपेंगे......... मेरे कदम 
ठान ली है मैंने  कुछ कर दिखाने की  

ग़मों ने सोचा था.. की मैं टूट जाउंगी 
मुझे आदत नहीं..... यूँ हार जाने की 

15 टिप्‍पणियां:

  1. aati nahi ada khusiyaan chipaane ki...bahut sunder...
    na gam batao bahut
    na khusi ko dabao

    bas chalo safar par
    aur bas chalte chale jao...irshaad...

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूब ...बढ़िया गज़ल ..और यूँ ही हौसला बनाये रखिये

    जवाब देंहटाएं
  3. टिक गया है दर पे....... गम कुछ ऐसे
    बात करता ही नहीं अब तो जाने की
    बहुत खूब यह शेर तो हमारे जीवन का हाल वयां कर रहा है |
    अच्छी गजल मुबारक हो....

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह आलोकिता ………गज़ब के शेर हैं…………हर शेर लाजवाब्…………शानदार्।

    जवाब देंहटाएं
  5. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 10 - 05 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह !प्रथम आगमन है मेरा --काश की जल्दी आती !

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत खूब ... जबरदस्त तेवर हैं ... क्या खूबसूरत शेरॉन से सजी है ये ग़ज़ल .....

    जवाब देंहटाएं
  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  9. Bahut acchi rachna hai
    hamari gali me bhi darshan dein
    www.pksharma1.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं