अपनी हीं हालात पे रोने लगी हूँ
दुनिया की भीड़ में खोने लगी हूँ
मधुता....... न रही अब जीवन में
कुछ कडवी........ सी होने लगी हूँ
ज़हन में.......बस गयी हैं जो यादें
अश्कों से..... उनको धोने लगी हूँ
यूं तो खुश थी.... ख्वाबों में पहले
अब तो .....उनमे भी रोने लगी हूँ
थी बहुतों से..अपनी बाबस्तगी
यूं तो खुश थी.... ख्वाबों में पहले
अब तो .....उनमे भी रोने लगी हूँ
थी बहुतों से..अपनी बाबस्तगी
अब अजनबी सी.... होने लगी हूँ
दर्द-ए-दिल..... जब्त कर रही थी
चुप्पी में खुद हीं कैद होने लगी हूँ
अपनी हीं हालात पे रोने लगी हूँ
दुनिया की भीड़ में खोने लगी हूँ
दर्द-ए-दिल..... जब्त कर रही थी
चुप्पी में खुद हीं कैद होने लगी हूँ
अपनी हीं हालात पे रोने लगी हूँ
दुनिया की भीड़ में खोने लगी हूँ
मुझे अपने दोस्तों की महफ़िल याद आ रही हैं.....
जवाब देंहटाएंजिंदा रहने के लिए ख्वाब ज़रूरी हैं ......
बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंदर्द के एहसास को बखूबी शब्द दिए हैं ..
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा शेर
जवाब देंहटाएंसचमुच आनंद आ गया
भविष्य में भी ऐसे लिखते रहे
"अब तो सपनों में भी रोने लगी हूँ."
जवाब देंहटाएंको यदि "अब तो उनमें भी रोने लगी हूँ." करेंगे
तो शब्द की दोहरावट का दोष नहीं लगेगा.
शब्द 'ख़्वाबों' और 'सपनों' का एक साथ प्रयोग ...... बहुत मामूली तौर पर अखरता है.
...........शेष बढिया है.
आलोकि्ता बहुत ही भावप्रवण रचना लिखी है दिल को छू गयी।
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्म अहिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंवाह ............अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंwah alokita
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder rachna likh dali
.....behtreen
bhawbhini kavita likhi hai..bahut achchi lagi.
जवाब देंहटाएंजहन....... में बस गयी हैं यादें
जवाब देंहटाएंअश्कों...... को धोने लगी हूँ
क्या शब्द दिए हैं आपने यादों को ..बहुत सुंदर