जीस्त का मज़ा ,कभी हम भी लिया करते थे
एक ज़माना था की हँस हँस के जिया करते थे
खुशी की एक आहट को....भी तरसते हैं अब
वक़्त था औरों को भी खुशियाँ दिया करते थे
चलते चलते अब गाम ... लरजते हैं मगर
बज़्म में रक्स मुसलसल भी किया करते थे
ख़ुशी के चिथड़ों पर.... पैबंद लगाते हैं हरदम
यूं भी था कभी गैरों के जख्म सिया करते थे
इस कदर टूट कर बिखरे हैं आज हम खुद ही
कभी औरों को भी .... हौंसला दिया करते थे
जीस्त का मज़ा कभी हम भी लिया करते थे
एक ज़माना था की हँस हँस के जिया करते थे
आज तो सबसे पहले पढ़ लिए....
जवाब देंहटाएंक्रमांक एक------ उपस्थित महाशया.... हा हा हा.....
अच्छा लिखी हो छुटकी... :)
sunder hai .......:)
जवाब देंहटाएंएक जमाना था कि हंस हंस के जीया करते थे...
जवाब देंहटाएंअच्छी यादें।
bahot achcha laga.....
जवाब देंहटाएंखूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा...
जवाब देंहटाएंआलोकिता जी,
जवाब देंहटाएंजीस्त ........... मतलब?
रक्स मुसलसल ....... मतलब?
आपकी पिछली कविता बेहद पसंद आयी थी.
कमेन्ट के समय लाइट चली गयी थी? लिखा कमेन्ट ''ड्राफ्ट' मोड में कहीं कैद होकर खो गया है.
प्रतुल जी नमस्ते
जवाब देंहटाएंजीस्त का अर्थ है जिन्दगी
रक्स का अर्थ है नृत्य (dance)
मुसलसल का अर्थ है लगातार
रक्स मुसलसल मतलब बेधड़क नृत्य
धन्यवाद आलोकिता जी,
जवाब देंहटाएंभविष्य में जो समझ में नहीं आयेगा, पूछ लिया करूँगा.
वैसे मैंने उर्दू शब्दकोश खरीद लिया है.
कभी-कभी आलस कर जाता हूँ
इस बहाने आपसे बात भी हो जाती है.
पुनः धन्यवाद. आपकी कवितायें बेहद पसंद आती हैं.
अभी तक कोई ऎसी कविता नहीं लगी जिसमें मीन-मेख निकालूँ.
बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंवाह यहाँ तो उर्दू की कक्षा चल रही है.... ए छुटकी अच्छा से समझाओ हम सबको....
जवाब देंहटाएंउर्दू तो वैसे भी मुझे कम ही आती है, लगता था चलो हिंदी तो आती है लेकिन जब से प्रतुल जी के ब्लॉग पर जाना शुरू किया है ये ग़लतफ़हमी भी जाती रही.....
truly brilliant..
जवाब देंहटाएंkeep writing..all the best
आप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.
जवाब देंहटाएंसादर
ए शेखर! आपको उर्दू और हिन्दी की जटिलता को सीखने की क्या जरूरत है आप तो लोगों की जटिलता को पढ़ा करते हैं.
जवाब देंहटाएंप्रेमचंद ने कहा था कि सरल लिखना सबसे कठिन है.
इसलिये यह कठिन काम मुझसे होता नहीं..... इसे मेरी खासियत न मानें. हाँ आलोकिता से वास्तव में कुछ सीखने को मिलेगा... यह सच है.
बहुत ही सुंदर नज्में ....होली की हार्दिक शुभकामनायें .
जवाब देंहटाएंलघुकथा --आखिरी मुलाकात
प्रतुल जी ये शेखर भैया क्या कम थे जो अब आप भी ........?
जवाब देंहटाएंगलत बात है जी बच्चों को यूँ चने की झाड़ पर नहीं चढाते एक दो शब्द जान लेने से कोई ज्ञाता थोड़ी हो जाता है लाखों शब्द हैं जरुरी थोड़ी की हर कोई हर शब्द जाने हीं और आपलोग ऐसा कैसे कह देते हैं की मुझसे सिखने को मिलेगा मेरे सर तो आज तक मेरी एक भी रचना से संतुष्ट नहीं हुए हैं हर बार कोई न कोई गलती कर हीं जाती हूँ |
प्रतुल जी मेरे पास तो उर्दू का शब्दकोष भी नहीं है बस सर ने जो शब्द बता दिया उतना ही आता है मुझे :(
आदरणीय प्रतुल जी,
जवाब देंहटाएंलोगों की जटिलता ?? ओह्ह अरे हम कहाँ इतने ज्ञानी हैं, अभी तो खुद अपने आप को नहीं समझ पाया हूँ, दूसरों का समझने का प्रयास भी करना बेमानी लगता है...
हाँ लेकिन ज़रुरत पड़ने पर अपनी बेबाक राय ज़रूर देता हूँ... अच्छी चीज़ों को अच्छा कहता हूँ तो गलत चीजों को गलत बताने से भी नहीं हिचकता..
चिकनी चुपड़ी बातें करनी नहीं आती, जिसके कारण इस दुनिया में सरवाईव करना मुश्किल दिख रहा है... कई लोगों को बुरा लग जाता है अब इसमें क्या कर सकते हैं...
खैर मैं तो इस नटखट बहन को हैप्पी होली कहने आया था, आपको भी होली की शुभकामनाएं...
होली में चेहरा हुआ, नीला, पीला-लाल।
जवाब देंहटाएंश्यामल-गोरे गाल भी, हो गये लालम-लाल।१।
महके-चहके अंग हैं, उलझे-उलझे बाल।
होली के त्यौहार पर, बहकी-बहकी चाल।२।
हुलियारे करतें फिरें, चारों ओर धमाल।
होली के इस दिवस पर, हो न कोई बबाल।३।
कीचड़-कालिख छोड़कर, खेलो रंग-गुलाल।
टेसू से महका हुआ, रंग बसन्ती डाल।४।
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रंगों के पर्व होली की सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!