रविवार, 6 मार्च 2011



























तड़प से जाते हैं हम, रूठ कर यूँ जाया न करो 
ऐ सितमगर रोते हुओं को और रुलाया न करो

जाना हीं  हो तुम्हे,  तो जाओ  कुछ  इस  तरह 
ले जाओ निशानियाँ, यादों में भी आया न करो


हमे  सुनाकर  बेवफाइयों  के किस्से  बार बार 
हमारे सब्र की  इन्तेहाँ  को आजमाया न करो

 
न आता  हो तुम्हे  निभाना, तो रिश्ते बनाकर
कसमों  वादों में  किसी को  उलझाया  न करो


 हँसा कर एक बार यूँ  बार बार रुला देते हों हमें 
अब रहने दो तन्हा, महफ़िलों में बुलाया न करो

17 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (7-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  2. apki lekhni ki jo sab se acchi baat hai vo hai sadgi. halke-2 maan main utarti jaati hai

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  3. अच्‍छी रचना।
    आपकी रचना की तारीफ में सिर्फ इतना कहना है,
    ' कीजिए इजाद कोई और अंदाज ए सितम,
    दोस्‍त बनकर लूटने का फन पुराना हो गया।'

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  4. .

    आपके जैसे भावों को कभी प्रसादजी ने कुछ यूँ व्यक्त किया था :
    "क्या हमने कह दिया, हुए क्यों रुष्ट, हमें बताओ तो.
    ठहरो, सुन लो बात हमारी, तनक ना जाओ, आओ तो....

    ... पूरी कविता बहुत ही गीतियुक्त है.... कभी अवश्य पढियेगा.

    .

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  5. प्रतुल वशिस्ठ जी ने ठीक कहा, प्रशाद जी के भावो को आगे बढ़ाती एक रचना, खूबसूरत रचना बधाई

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. बेहद शानदार लाजवाब गज़ल ।
    एक-एक शे’र लाजवाब.....

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  8. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..

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  9. खुबसूरत गज़ल हर शेर दाद के क़ाबिल, मुबारक हो

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  10. गज़ल शुरू से आखिर तक ही एक ही डोर में बंधे रखती है. खूबसूरत अंदाज़ है.

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  11. आज मंगलवार 8 मार्च 2011 के
    महत्वपूर्ण दिन "अन्त रार्ष्ट्रीय महिला दिवस" के मोके पर देश व दुनिया की समस्त महिला ब्लोगर्स को "सुगना फाऊंडेशन जोधपुर "और "आज का आगरा" की ओर हार्दिक शुभकामनाएँ.. आपका आपना

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