ऐ सितमगर रोते हुओं को और रुलाया न करो
जाना हीं हो तुम्हे, तो जाओ कुछ इस तरह
ले जाओ निशानियाँ, यादों में भी आया न करो
हमे सुनाकर बेवफाइयों के किस्से बार बार
हमारे सब्र की इन्तेहाँ को आजमाया न करो
न आता हो तुम्हे निभाना, तो रिश्ते बनाकर
कसमों वादों में किसी को उलझाया न करो
bahut badhiya
जवाब देंहटाएंsunder hai...
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (7-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत सुन्दर रचना है!
जवाब देंहटाएंapki lekhni ki jo sab se acchi baat hai vo hai sadgi. halke-2 maan main utarti jaati hai
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी रचना की तारीफ में सिर्फ इतना कहना है,
' कीजिए इजाद कोई और अंदाज ए सितम,
दोस्त बनकर लूटने का फन पुराना हो गया।'
एहसासों को खूबसूरती से पिरोया है
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंआपके जैसे भावों को कभी प्रसादजी ने कुछ यूँ व्यक्त किया था :
"क्या हमने कह दिया, हुए क्यों रुष्ट, हमें बताओ तो.
ठहरो, सुन लो बात हमारी, तनक ना जाओ, आओ तो....
... पूरी कविता बहुत ही गीतियुक्त है.... कभी अवश्य पढियेगा.
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प्रतुल वशिस्ठ जी ने ठीक कहा, प्रशाद जी के भावो को आगे बढ़ाती एक रचना, खूबसूरत रचना बधाई
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबेहद शानदार लाजवाब गज़ल ।
जवाब देंहटाएंएक-एक शे’र लाजवाब.....
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..
जवाब देंहटाएंखुबसूरत गज़ल हर शेर दाद के क़ाबिल, मुबारक हो
जवाब देंहटाएंगज़ल शुरू से आखिर तक ही एक ही डोर में बंधे रखती है. खूबसूरत अंदाज़ है.
जवाब देंहटाएंआज मंगलवार 8 मार्च 2011 के
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण दिन "अन्त रार्ष्ट्रीय महिला दिवस" के मोके पर देश व दुनिया की समस्त महिला ब्लोगर्स को "सुगना फाऊंडेशन जोधपुर "और "आज का आगरा" की ओर हार्दिक शुभकामनाएँ.. आपका आपना
bahut behter /
जवाब देंहटाएंbahut achchi lagi.....
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