शनिवार, 22 जनवरी 2011

"रिश्तों की कश्मकश"

पुराना साल जाने वाला था और नए साल के स्वागत कि तैयारी हर तरफ जोर शोर से चल रही थी | संजय काफी खुश था दोस्तों रिश्तेदारों को फोन पर बताते बताते वो थक नहीं रहा था कि इस साल नए साल के स्वागत में हो रहे एक टी वी स्टेज शो में उसे भी गाने का मौका मिला है | उधर किचन में रोटी पकाती योषिता अपने हीं ख्यालों में डूबी हुई थी | कुछ हीं पलों में ये दो महीने जैसे उसकी आँखों के सामने से बीस बार गुजर चुकें हों | जितना सोचती उतनी हीं वह और उलझती जा रही थी अपने ही सवालों में | 
करीब दो साल हो गए थे उसे संजय कि दुल्हन बन इस घर में उतरे हुए | वह एक पेंटर थी और संजय को संगीत में गहरी रूचि थी | उनकी शादी के वक़्त सभी कहते थे कि खूब जमेगी इनकी जोड़ी दोनों कलाकार जो ठहरे | शादी के बाद सब ठीक ठाक चल भी रहा था | योषिता एक इंस्टिट्यूट से जुड़ी थी, वहाँ से उसकी पेंटिंग्स बिक जाया करती थी | संजय गायक तो अच्छा था पर कहीं अच्छी जगह उसे अब तक मौका नहीं मिला था | एक स्कूल में संगीत सिखाता और घर पर भी कुछ बच्चों को संगीत कि तालीम दिया करता था | जीने खाने भर पैसे कमा हीं लेता था | दोनों में झगडे भी होते थे पर फिर सब ठीक हो जाता था |
एक दिन योषिता कि पेंटिंग्स कि प्रदर्शनी लगी थी | वैसे तो संजय को अजीब सी चीढ़ थी इन प्रदर्शनियों से पर योषिता कि जिद्द से मजबूर होकर वह भी गया उस प्रदर्शनी में | अभी वहाँ पहुचे ही थे कि एक आदमी ने मुस्कुराते हुए योषिता से कहा "Hiiiii! योषि, क्या हाल है ?" योषिता आज अचानक इतने सालों बाद अपने कॉलेज के सबसे अच्छे दोस्त परिमल को देख चौंक गयी थी और 
खुशी से चहकती हुई बोली " अरे परि तू यहाँ कैसे ? UK से वापस कब आया यार ? परिमल ने कहा अरे यार अब तो परि बुलाना बंद कर लड़की टाइप लगता है |खैर UK में मन नहीं लगा तो अपने वतन वापस चला आया और तुम यहाँ कैसे से क्या मतलब ?आपकी पेंटिंग्स का दीवाना हूँ वही खिंच लायी हमे अहाँ! स्टुपिड offcourse तुमसे मिलने आया हूँ | पेपर में ऐड देख कर समझ गया था कि योषिता वर्मा अपनी योषि के अलावा कोई हो ही नहीं सकती | योषिता ने परिमल और संजय दोनों का परिचय कराया पर शायद दोनों को एक दुसरे से मिलने में कोई दिलचस्पी नहीं थी | परिमल को योषिता से बातें करनी थी और संजय किसी तरह उसे घर ले जाना चाहता था |परिमल का बार बार उसकी पत्नी को 'योषि' बुलाना खटक रहा था और योषिता के मुँह से परिमल के लिए निकला ' यार ' शब्द जैसे उसके तन बदन में आग लगा रहा था |
उस दिन के बाद से परिमल और योषिता का मिलना जुलना बढ़ गया और बातों हीं बातों में योषिता ने संजय के करिअर के बारे में चिंता जाहिर कर दी | उसे एक मौके के लिए संजय का दर बदर भटकना बहुत बुरा लगता था |परिमल ने कहा इतनी सी बात के लिए इतना परेशान हो गयी |परेशानी में तुम बिल्कुल भी सुन्दर नहीं लगती | जाओ बालिके! बाबा परिमल का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है | कल हीं तुम्हे एक खुसखबरी मिलेगी | तुम्हारी चिंता अब बाबा कि चिंता है तुम चिंता मुक्त हो जाओ | योषिता इस मजाक पर हँस पड़ी | पर यह मजाक नहीं था | परिमल कि कम्पनी एक नए साल के जश्न कि मेगा स्पोंसर थी और उसके कहने पर उस जश्न में संजय को बतौर अपकमिंग सिंगर मौका दे दिया गया |
अगले दिन यह खुशखबरी लेकर संजय योषिता के पास आया तो गलती से योषिता के मुँह से निकल 
गया अरे वाह आपको मौका मिल गया, कल हीं परि.......... बोलती बोलती वह ठिठक गयी | पर संजय जिस मौके कि तलाश में था दो महीनो से उसे आज वह मौका भी मिल हीं गया | बोला " हाँ, हाँ  
बोलो क्या कहना चाहती हो मेरे हुनर से नहीं तुम्हारे उस "यार" कि वजह से यह मौका मिला है मुझे ?मुझे इतना बड़ा मौका दिलवाने के लिए तुम्हे भी तो कुछ कीमत चुकानी पड़ी होगी न अपने यार को |योषिता बोली " छिः शर्म नहीं आती तुम्हे ऐसी बातें कहते हुए | संजय ने कहा " बहलाओ मत, बच्चा नहीं हूँ, और मैं भी इसी धरती का प्राणी हूँ | यहाँ मुफ्त में कोई किसी को कुछ नहीं देता और फिर तुम्हारा वो परिमल वो एक बिजनेस मैन है और बिजनेस मैन सिर्फ और सिर्फ अपना फ़ायदा देखते हैं |योषिता के लिए यह सब बातें असह्य थी वह उठकर किचन में रोटी बनाने चली गयी | संजय के बचपन का सपना पूरा होने जा रहा था वह अपनी खुशी फोन पर सबको सुनाने लगा |
योषिता सभी बातों को सोचने के बाद इस नतीजे पर पहुंची कि उसे अपनी गृहस्थी बचानी है | उसका new year resolution यही होगा कि वो परिमल से बात नहीं करेगी, इस दोस्ती के बिना भी वह जी सकती है |फिर संजय के साथ सुखद जीवन कि कल्पना करने लगती है और उसे ध्यान नहीं रहता कि वह रोटी बना रही है | तवे पर पड़ी रोटी जल गयी, संजय आया और गैस बुझाते हुए हुए बोला "क्या हुआ ? कहाँ खोई हो, परिमल कि यादों में ? योषिता के मन में कहने को बहुत कुछ था पर जुबां आज उसका साथ नहीं दे रही थी | मन के सारे भाव आंसुओं के सैलाब बनकर उमड़ पड़े |

8 टिप्‍पणियां:

  1. हाँ ऐसा भी होता है ……………जब मन के भाव मन मे ही रह जाते है और शब्द साथ छोड जाते है शायद तब जब कोई कुर्बान हो रहा होता है और सामने वाले को खबर तक नही होती।

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  2. सार्थक पोस्ट और लेखन के लिए शुभकामनाएँ!

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  3. शायद योशिता का फैसला सही था... इन्सान को कभी कभी एक रिश्ते को जीने के लिये दूसरे रिश्ते की कुर्बानी देनी पड़ती है और यह फैसला भी इतना आसान नही होता...... you made me emotional here...really !!!
    irfan’s

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  4. ..लेकिन यह तो अधूरी कहानी है -इसे पूरी कीजिये -इतनी अच्छी तो चल रही थी

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  5. विचारणीय ....लेखन के लिए शुभकामनाएँ!

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  6. aisa kisi ladki ke saath na ho ....

    acche dost milen ..acche dost banen....

    subhkaamnayen........

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