क्या तुम किसी को खुशी दे पाते हो ?
जीवों की हत्या और साथ में पेड़ भी कटवाते हो !
औरों को छोड़ो अपनी माता धरती को भी बदहाल बनाते हो |
किस हक से तुम श्रेष्ठ जीव कहलाते हो ?
यूँ तो तुम संवेदनशील , चिंतनशील
और न जाने कौन कौन शील प्राणी कहलाते हो |
प्रियजनों की मृत्यु को तुम अप्रिय बताते हो |
फिर क्यूँ औरों को मृत्यु बांटते जाते हो ?
तुम धरती के श्रेष्ठ जीव क्यूँ कहलाते हो ?
विचारणीय कविता.
जवाब देंहटाएंआगे से ऐसी रचनाओं के अंत में अपने सुझाव भी जोड़ दे, तो रचना में और वज़न आ जाएगा.
लिखते रहिये
ji jaroor dhyan mein rakhungi aapki baat dhanyawwad
जवाब देंहटाएंकमाल की लेखनी है आपकी
जवाब देंहटाएंvicaarneey...vaajib savaal....achhi rachnatmak lekhan.
जवाब देंहटाएंsunder rachna..........good ........keep going with your writing...:)
जवाब देंहटाएंThanks arvind sir thanks abhishek bhaiya
जवाब देंहटाएंbahoot hi sahi sawal hai. shrestha kahlane ke liye karya bhi vaisa hi hona chahiye. aaj ka manusya me vi gun nahin rah gaye....jo shrestha kahlane ke liye ho.
जवाब देंहटाएंThanks upendra sir
जवाब देंहटाएंशाश्वत प्रश्न उठाती रचना।
जवाब देंहटाएंDhanyawaad wandana ji
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