सोमवार, 9 मई 2011

मुझे आदत नहीं.... यूँ हार जाने की

आदत हो चुकी हैं गम  को पी जाने की 
आती नहीं अदा... खुशियाँ छिपाने की 

हंस जो देती हूँ.......... जरा खुश होकर 
नज़र लग ही जाती है....... ज़माने की 

टिक गया है दर पे....... गम कुछ ऐसे 
बात करता ही नहीं अब तो  जाने की 

अंधेरो में बहुत जी चुकी.... अब तक
अबकी कोशिश हैं... रौशनी लाने की 

कभी अब न कांपेंगे......... मेरे कदम 
ठान ली है मैंने  कुछ कर दिखाने की  

ग़मों ने सोचा था.. की मैं टूट जाउंगी 
मुझे आदत नहीं..... यूँ हार जाने की