रविवार, 6 मार्च 2011



























तड़प से जाते हैं हम, रूठ कर यूँ जाया न करो 
ऐ सितमगर रोते हुओं को और रुलाया न करो

जाना हीं  हो तुम्हे,  तो जाओ  कुछ  इस  तरह 
ले जाओ निशानियाँ, यादों में भी आया न करो


हमे  सुनाकर  बेवफाइयों  के किस्से  बार बार 
हमारे सब्र की  इन्तेहाँ  को आजमाया न करो

 
न आता  हो तुम्हे  निभाना, तो रिश्ते बनाकर
कसमों  वादों में  किसी को  उलझाया  न करो


 हँसा कर एक बार यूँ  बार बार रुला देते हों हमें 
अब रहने दो तन्हा, महफ़िलों में बुलाया न करो