वो पगली बैठी सड़क किनारे
जी रही है चंद यादों के सहारे
हर किसी को सुनाती वो कहानी
पर उसमे न राजा है न रानी
लुटी है उसकी दुनिया जब से
कहती सुनो आते जाते सब से
तृण तृण करके नीड़ बनाया
मधुस्वप्नो से संसार सजाया
जाने लग गयी किसकी नजर
खुदा ने बरसाया क्यूँ कहर
न चाहा था हमने हीरा या मोती
खुश थे बस पा के दो जून रोटी
कहते उसे हैं मुसलमान सभी
बेचती थी मंदिर में फूल कभी
हुआ जो बम धमाका मंदिर में
मरा पती उसका इस भीड़ में
मंदिर के पीछे था जो मदरसा
उसमे था उसका बेटा नन्हा सा
न पूछा किसी से अंधी गोलियों ने
हिन्दू या जन्मा तू मुसलमानों में
जो मरा हिन्दू न मुसल्मा हीं था
पर हर शख्श एक इंसान हीं था
बैठी हैं अब वो पथरीली राहों पे
जीती हैं केवल अब वो आहों पे
बैठी हैं अब वो पथरीली राहों पे
जीती हैं केवल अब वो आहों पे
जो दुर्दशा वो झेल रही है
उसमे उसकी क्या गलती है ?