वो पगली बैठी सड़क किनारे
जी रही है चंद यादों के सहारे
हर किसी को सुनाती वो कहानी
पर उसमे न राजा है न रानी
लुटी है उसकी दुनिया जब से
कहती सुनो आते जाते सब से
तृण तृण करके नीड़ बनाया
मधुस्वप्नो से संसार सजाया
जाने लग गयी किसकी नजर
खुदा ने बरसाया क्यूँ कहर
न चाहा था हमने हीरा या मोती
खुश थे बस पा के दो जून रोटी
कहते उसे हैं मुसलमान सभी
बेचती थी मंदिर में फूल कभी
हुआ जो बम धमाका मंदिर में
मरा पती उसका इस भीड़ में
मंदिर के पीछे था जो मदरसा
उसमे था उसका बेटा नन्हा सा
न पूछा किसी से अंधी गोलियों ने
हिन्दू या जन्मा तू मुसलमानों में
जो मरा हिन्दू न मुसल्मा हीं था
पर हर शख्श एक इंसान हीं था
बैठी हैं अब वो पथरीली राहों पे
जीती हैं केवल अब वो आहों पे
बैठी हैं अब वो पथरीली राहों पे
जीती हैं केवल अब वो आहों पे
जो दुर्दशा वो झेल रही है
उसमे उसकी क्या गलती है ?
आखों से जो नीर बहा..
जवाब देंहटाएंसब कुछ ही उसने सहा...
नमी लिए इन आखों में...
खुदा को याद करती है..
haan unki katai galati nahi hai...
जवाब देंहटाएंye garibi hai jise ..hatana hai....dange fasad bhi garibi ko lekar hi hote hain....vikas ho to sab aman se rahenge....pahal jaroori hai.....
with good wishes.....
अच्छी भावभरी रचना।
जवाब देंहटाएंyes ye unki galti hai
जवाब देंहटाएंsabse badi galti hai ...Gareeb hona
्कटु यथार्थ का बेहद मार्मिक चित्रण्।
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक रचना..आज का कटु सत्य..बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआलोकित जी आज आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा.आप अच्छा ही नहीं बहुत ही अच्छा लिखती है.... कृपया यहाँ पर आयें और समर्थक, लेखक बनकर उत्तरप्रदेश ब्लोगर असोसिएसन का हौसला बढ़ाएं. आप आयेंगे तो हमें अच्छा लगेगा. हम आपका इंतजार करेंगे..... और वो भी बड़ी बेसब्री से, , आप आएँगी न.
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