जिन्दगी में हमारी फिर वो बात न होती
यूँ तो तब भी भटकता चाँद गगन में
पर नज़रों से उसकी मुलाक़ात न होती
उजाला हीं उजाला रहता जो जीवन में
मय्यसर हमें तारों की बारात न होती
लील न जाता यदि अँधियारा सूर्य को
तो जगमगाते जुगनुओं की ज़ात न होती
खोये न होते जो अँधेरे सन्नाटों में कभी
अपने हीं दिल से हमारी बात न होती
चाँद न आता जो अँधेरी रात न होती
जिन्दगी में हमारी फिर वो बात न होती
jitni sunder tum ho utni hi sunder tumhari rachna hai
जवाब देंहटाएंbahot pasand aayee......
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों के बाद ... बहुत ही बेहतरीन.....अच्छा लगा वापसी देखकर...शुभकामनाएं....!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअँधेरा सूरत को लीलता है तभी जुगनू का एहसास होता है ... अर्थपूर्ण रचना ... सुन्दर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंतुमसे यूँ मुलाकात न होती .... है न ?
जवाब देंहटाएंFabulous.. and sooo inspiring.. :):)
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच-694:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
यकीनन अपने दिल से बात करनी है तो सन्नाटा चाहिये ही
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना
वाह! अच्छी रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना..बहुत ही भावपूर्ण।
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna likhi hai mam...
जवाब देंहटाएंjai hind jai bharat
शब्द दिल को छू गये।
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