अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा वह एक तक फर्श को सूनी आँखों से निहार रहा था | नज़रें फर्श पर थी, मन शर्मशार और व्याकुल था और दिमाग अतीत के पन्नो को पलटता हुआ जा पहुंचा था आज से पाँच साल पहले ........... हाँ उसी दिन तो वह आखिरी बार अपने गाँव नुमा छोटे से शहर गया था जिसे उसने अपना माना ही नहीं था कभी | और उस दिन तो हद ही हो गई जब साफ़ साफ़ लफ्जों में उसने कह दिया था अपने माँ बाप से की वह उस छोटे से शहर में सड़ना नहीं चाहता | उनलोगों की तरह गृहस्थी के कोल्हू में बैल बन कर नहीं जुतना चाहता | वह जीवन का पूर्ण आनंद लेना चाहता था, घर, बच्चों और जिम्मेदारियों की चिंता में खुद को नहीं फूंकना चाहता | बहुत कुछ समझाया था माँ बाप ने उसे उस दिन...पर सब व्यर्थ उनके हर तर्क को कुतर्क से काट दिया था उसने | यँहा तक की जब उसके पिता ने कहा अगर हम भी तेरी तरह 'लिव -इन' के बारे में सोचते, अगर हमे भी बच्चे बोझ लगते तो क्या तू आज यह सब बकवास करने के लिए यँहा खड़ा होता ? तो उन्हें दो टुक जवाब मिल गया वो आपका शौक था आप जानें मैंने नहीं कहा था की मुझे ............... | स्तब्ध!! खामोश!! रह गए थे वो उसके इस पलटवार से और उसकी माँ लगातार रोती जा रही थी | इन आंसुओं में बेटे को खोने का गम था या उसके सत्मार्ग से भटकने का यह तो बस उस माँ का ह्रदय हीं जानता था |
उसके बाद वह दिल्ली आकर रहने लगा था ....कामिनी के साथ | कामिनी .....कामिनी एक उन्मुक्त खयालातों वाली ख़ूबसूरत लड़की थी | अमीर घर की भी थी उसके घर में सदस्य कम और कमरे, नौकर ज्यादा थे |माँ बाप का सालों पहले तलाक हो चुका था,उसने सदा से हीं अपने परिवार को टुकड़ों में जीते देखा था और उसे भी घर गृहस्थी से चिढ थी |यँहा दोनों के खयालात मिलते थे इसीलिए दोनों ने शादी नहीं की थी क्यूँ की किसी भी रिश्ते की कैद नहीं चाहते थे | दोनों कमाते थे और अपनी मर्ज़ी से खर्च करते थे, चूँकि घर कामिनी का था इसलिए समीर को रेंट भी देना होता था | शरीर छोड़ कर दोनों की किसी चीज़ पर एक दुसरे का हक कम ही होता था क्यूंकि हक की बात तो वँहा आती है जँहा कोई रिश्ता हो आत्मिक सम्बन्ध यँहा तो दोनों अपनी जरुरत के लिए जुड़े थे, सिर्फ अपनी वासना पूर्ति के लिए | जब कोई रिश्ता, कोई हक था हीं तो फिर वफादारी और बेवफाई का तो सवाल हीं नहीं उठता | शुरू में दोस्तों की तरह कुछ बात भी होती थी दोनों में, पर धीरे धीरे यह दैहिक रिश्ता बस बिस्तर तक हीं सिमट कर रह गया | कभी कभी समीर ने हक जताने की कोशिश की, जानना चाहा, टोकना चाहा की वह किस किस के साथ उठती बैठती है तो कामिनी ने उसे तुरंत याद दिला दिया की वह उसकी पत्नी नहीं है उसे कोई हक नहीं उससे सवाल जवाब करने का | और उस दिन भी कुछ झड़प हुई थी दोनों की समीर चाहता था की कामिनी उसके साथ रोमेश की पार्टी मैं चले पर कामनी नहीं आई बहुत शराब पी चुका था वह और वापसी मैं उसकी गाड़ी दुर्घटना ग्रस्त हो गयी तीन दिन बेहोश रहा वह आज हीं उसकी आँख खुली थी | आँख खोलते हीं उसने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया और साथ वाली मेज़ पर फूलों का एक गुलदस्ता रखा था उसके साथ हीं एक गेट वेल सुन कार्ड और एक नोट रखा था | उस नोट में कामिनी ने लिखा था बहुत अफ़सोस है मुझे तुम्हारी हालात पर | डॉक्टर ने कहा है की शायद अब तुम अपने पैरों पर खड़े न हो पाओ कभी | देखो पिछले महीने जो उधार लिए थे मैंने तुमसे उतने तो यँहा तुम्हारे इलाज में खर्च हो गए तो वह हिसाब तो बराबर पर तुम्हे मेरा एहसान मानना चाहिए तुम्हारी गाड़ी को गराज तक पहुंचवा दिया मैंने उसका भी इलाज चल रहा है | हाँ और देखो बुरा मत मानना अस्पताल से छुटो तो मेरे घर से अपना सामन शिफ्ट करा लेना | प्रैक्टिकली सोचो तो तुम्हारे साथ जो हुआ उसका मुझे अफ़सोस है पर अब तुम्हारे लिए मैं तो अपनी जिन्दगी अपाहिज नहीं कर सकती न | टेक केयर एंड गेट वेल सून डिअर ............... कामिनी | झटका सा लगा समीर को ग्लानी से भर उठा वह एक पल मैं चकनाचूर कर गई थी कामिनी उसे .. ऐसे मैं समीर को अपने माँ बाप की याद आ रही थी | खुदा-न-खास्ता अगर उसके पिता के साथ ऐसा होता तो उसकी माँ ऐसा कर सकती थी ? कभी नहीं | उसे ऐसा एहसास हो रहा था उसकी माँ उसके सिरहाने हीं बैठी रो रही है वह भी चाहता था की उसकी गोद में सर रखकर जी भर रो ले लेकिन उसकी आँख से आंसूं का कतरा तक न निकला | क्यूंकि शायद उसकी आँखों का पानी बहुत पहले हीं मर चुका था .............. या फिर आज वह इतना मजबूर था की आंसूं भी उससे दामन बचाते हुए कतरा कर चले गए | लिव-इन रिलेसन की धारणा एक गाली सी लग रही थी उसे आज |
सब कुछ गंवा के होश मे आये तो क्या हुआ……………इस त्रासदी को बखूबी प्रस्तुत किया है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और भावनात्मक ! वास्तव में आप का लेख आंखें खोल देने वाला है इस युग में जहां मां-बाप को प्रताड़ित जीवन बिताना पड़ता है !
जवाब देंहटाएंवंदना जी की टिप्पणी इस पोस्ट पर सोलह आने सही है। कहते हैं न कि अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह आपकी एक और अच्छी पोस्ट। बधाई हो।
यही है अपने संस्कारो को छोड़ देने की त्रासदी, और इस भागते समाज में भागने का परिणाम, हलकी फुल्की भाषा में, आँख खोलने वाली बात बधाई
जवाब देंहटाएंआंखें खोल देने वाला है एक अच्छी पोस्ट। बधाई
जवाब देंहटाएंसही है
जवाब देंहटाएंकविताओं के साथ साथ गद्य पर भी पूरा अधिकार है
बेहतरीन पोस्ट, दिमाग को झकझोर देने वाला आलेख|
जवाब देंहटाएंगिरिजेश कुमार
लिव-इन की खोखली मान्यताओं का बखूबी चित्रण करती आपकी यह रचना बधाई की वास्तविक हकदार है । आभार सहित...
जवाब देंहटाएंaapki yah post kal shukrvaar ko charchamanch par hogi... bahut acchi post hai .. atah dubara rakh rahi hun... aabhaar
जवाब देंहटाएंya fir aaj veh itna majboor tha ki anso bhi us'se daaman bachate huye katra kar chale gaye.....
जवाब देंहटाएंbahut hi kamaaal ki post hai post hai. aur sandesh k sath-2 ravaangi bhi poori hai.
bahut-2 badhai ek acchi post k liye
shukriya kush accha padhane k liye
शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंखूब उधेडी है बखिया इन मतलबी रिश्तों की ...
जवाब देंहटाएंकहानी के माध्यम से सार्थक सन्देश दिया है !
आँख खोलने को उकसाती अच्छी कहानी ....लोग समझें ऐसे रिश्तों का क्या हश्र होता है ..
जवाब देंहटाएंइस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएं