मेरी गली में रहते
कुछ आवारा कुत्ते
इंसानों के बीच रहते रहते
अपना पराया सीख चुके
गली में कोई उनका
गैर नहीं
बाहरी कुत्ते आये तो फिर
उनकी खैर नहीं
ये गली उनकी है
पर इस गली में
उनका कोई घर नहीं
तभी कडकडाती सर्दी में
कूँ..कूँ करते ठिठुरते
ये आवारा कुत्ते
कुछ सरकारी
अलाव भी जलतें हैं
पर इनसे पहले
कुछ अधनंगे से
दरिद्र उसे घेर लेते हैं
बेबस खड़े देखते
ये आवारा कुते
ऊनी कपडे,बिस्कुट
पालतू कुत्ते कि ठाट
देख दंग रह जाते हैं
गले में पट्टा देख
या फिर शायद
आजादी अपनी दिखाते हैं
आकाश को देख, जाने
अपना दुर्भाग्य गाते हैं
या उस पालतू का
दर्द सुनाते हैं
ये आवारा कुत्ते
बहुत ही सुंदर रचना....क्या चित्रण किया है....
जवाब देंहटाएं*काव्य- कल्पना*:- दर्पण से परिचय
*गद्य-सर्जना*:-जीवन की परिभाषा…..( आत्मदर्शन)
बहुत सुन्दर और मार्मिक कविता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना और मार्मिक कविता है!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लगी आप की यह कविता धन्यवाद
जवाब देंहटाएंजैसे मेरी कहानी ही उतर आयी है कविता में ...
जवाब देंहटाएंhttp://vanigyan.blogspot.com/2010/12/blog-post_05.html
bahut sundar bhav
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्रण्।
जवाब देंहटाएंबेजोड़ प्रस्तुति /
जवाब देंहटाएंशानदार अभिव्यक्ति
धन्यवाद आप सभी का
जवाब देंहटाएंbahut khoobsurati se prabhaavshali prastut kiya hai bhaavo ko.
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