उन भुली बिसरी बातों में
खोई हूँ तुम्हारी यादों में
बीते थे वो सावन मेरे
बैठ के डाली पर तेरे
तुम्ही पर तो था प्यारा घोंसला मेरा
तुम्हारे हीं दम से था बुलंद हौंसला मेरा
तुम्ही पर रह मैंने चींचीं कर उड़ना सीखा
जीवन की हर मुश्किल से लड़ना सीखा
काट कर कँहा ले गए तुम्हे इंसान ?
बन गए हैं ये क्यूँ हैवान ?
मुझे रहना पड़ता है इनके छज्जों पर
जीना पड़ता है हर पल डर डर कर
मैंने तो खैर तुम पर कुछ साल हैं गुजारे
पर कैसे अभागे हैं मेरे बच्चे बेचारे
कुछ दिन भी वृक्ष पर रहना उन्हें नसीब न हुआ
कुदरती जीवन शैली कभी उनके करीब न हुआ
काश! वो दिन फिर लौट आये
हरे पेड़ पौधे हर जगह लहराए
संदेशपरक रचना ....
जवाब देंहटाएंDhanyawaad Sangeeta ji
जवाब देंहटाएंgahre ehsas ke sath sunder kavita......
जवाब देंहटाएंsunder prerak ......:):)
जवाब देंहटाएंDhanyawaad upendra sir
जवाब देंहटाएंthanks Abhisek bhaiya
Sargarbhit aur marmik avivyakti.Dhanyavad.PLz. visit my new post.
जवाब देंहटाएंपर्यावरण जैसे ज़रूरी विषय पर आपका लेखन सार्थक है
जवाब देंहटाएंDhanyawaad prem ji
जवाब देंहटाएंdhanyawaad kunwar ji
ज़रूरी विषय पर
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.
यही ज़िन्दगी की त्रासदी है गया वक्त लौट कर नही आता मगर उसे पाने की चाह खत्म नही होती……………सुन्दर संदेश देती रचना।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंsundar kavita!
जवाब देंहटाएंकाश ...
जवाब देंहटाएंAap sabhi ka hardik aabhar meri rachna padhne aur sarahne k liye
जवाब देंहटाएंSunder aur saarthak sandesh deti behad khoobsurat rachna.....
जवाब देंहटाएंDhanyawaad Monika ji
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