जीवन की पगडंडियों पर
चलो कुछ ऐसे
क़दमों के निशाँ
शेष रह जाएँ
तुम रहो न रहो
दिलों में स्मृतियाँ
शेष रह जाएँ
एक बार हीं गुज़रना है
इन राहों से
और वक़्त संग
सबको गुज़र जाना है
गुज़रना हीं है तो
क्यूँ न कुछ ऐसे गुजरें
हमारे गुजरने का एहसास
बहुतों के लिए
विशेष हो जाये
बने बनाये रास्ते
ढूंढोगे कबतक ?
लीक से हटकर
नयी राहें गढ़ो
बुलंद कर लो
हौंसले के दमपर
खुद को इतना
बस धर दो पग जिधर
दुनिया का रुख
हो जाये उधर
ठोकरें, असफलताएं भी आएँगी
बस होकर इनसे रु-ब-रु
मंजिल की ओर बढ़ चलो
पर ध्यान रहे
छोड़ चलो
कुछ क़दमों के निशाँ
जीवन की पगडंडियों पर .....