तितली सी उड़ न सकूँ
बागों में जा न सकूँ
फूलों से रिश्ता नहीं
पतझड़ में मैं हूँ पली
दरिया सी बह न सकूँ
ठहरी भी रह न सकूँ
सागर से नाता नहीं
पहाड़ों पे मैं हूँ पली
चिड़ियों सी उड़ न सकूँ
खुल के मैं गा न सकूँ
गगन से नाता नहीं
धरती पे मैं हूँ पली
ज्योति सी जलती रही
खुद हीं पिघलती रही
तम से है नाता मेरा
उससे हीं बचती रही
फूलों सी खिलती रहीं
काटों में हंसती रही
इश्वर से नाता मेरा
उसपे हीं चढ़ती रही