गुरुवार, 17 अगस्त 2017

सोचता हूँ...



जब-जब किसी की चिता की लपटों को देखता हूँ...
होगा कैसा मेरे जीवन का अंत तब-तब ये सोचता हूँ !

पंच तत्वों में विलीन तो यह नश्वर शरीर होगा हीं...
सोचता हूँ आत्मा उसके अंजाम तक पहुंचेगी या नहीं?
 
वेद-विदित है ये परंपरा हमारी सब ऐसा  कहते हैं
मुखाग्नि देते बेटे, और तर्पण भी वही करते हैं

सुना है तब जाकर कहीं आत्मा को शान्ति मिलती है...
वर्ना सदियों तक वह बैतरनी में भटकती रहती है!

अरमानों से प्यारी बिटिया को ऐसे में जब देखता हूँ ...
बड़ी बेचैनी से उस हालात में मैं यह सोचता हूँ... 

जिसकी मासूम मुस्कान जीवन का हर दुःख हर लेती है
हाथों के कोमल स्पर्श से जो बेचैनी में भी सुकून देती है

वह मुखाग्नि दे  तो क्या चिता जलने से इनकार कर देगी?
उसके हाथों का तर्पण क्या आत्मा अस्वीकार कर देगी??