बुधवार, 9 नवंबर 2011

चाँद न आता





चाँद न आता जो अँधेरी रात न होती 



जिन्दगी में हमारी फिर वो बात न होती 

यूँ तो तब भी भटकता चाँद गगन में 

पर नज़रों से उसकी मुलाक़ात न होती 

उजाला हीं उजाला रहता जो जीवन में 

मय्यसर हमें तारों की बारात न होती 

लील न जाता यदि अँधियारा सूर्य को 

तो जगमगाते जुगनुओं की ज़ात न होती 

खोये न होते जो अँधेरे सन्नाटों में कभी

अपने हीं दिल से हमारी बात न होती 

चाँद न आता जो अँधेरी रात न होती 

जिन्दगी में हमारी फिर वो बात न होती