जिन्दगी में हमारी फिर वो बात न होती
यूँ तो तब भी भटकता चाँद गगन में
पर नज़रों से उसकी मुलाक़ात न होती
उजाला हीं उजाला रहता जो जीवन में
मय्यसर हमें तारों की बारात न होती
लील न जाता यदि अँधियारा सूर्य को
तो जगमगाते जुगनुओं की ज़ात न होती
खोये न होते जो अँधेरे सन्नाटों में कभी
अपने हीं दिल से हमारी बात न होती
चाँद न आता जो अँधेरी रात न होती
जिन्दगी में हमारी फिर वो बात न होती