मंगलवार, 12 जुलाई 2011

जीवन की पगडंडियों पर

जीवन की पगडंडियों पर 
चलो कुछ ऐसे 
क़दमों के निशाँ 
शेष रह जाएँ 
तुम रहो न रहो 
दिलों में स्मृतियाँ 
शेष रह जाएँ 
एक बार हीं गुज़रना है 
इन राहों से 
और वक़्त संग 
सबको गुज़र जाना है 
गुज़रना हीं है तो 
क्यूँ न कुछ ऐसे गुजरें 
हमारे गुजरने का एहसास 
बहुतों के लिए 
विशेष हो जाये 
बने बनाये रास्ते 
ढूंढोगे कबतक ? 
लीक से हटकर 
नयी राहें गढ़ो
बुलंद कर लो 
हौंसले के दमपर
खुद को इतना 
बस धर दो पग जिधर 
दुनिया का रुख 
हो जाये उधर 
ठोकरें, असफलताएं भी आएँगी 
बस होकर इनसे रु-ब-रु
मंजिल की ओर बढ़ चलो 
पर ध्यान रहे 
छोड़ चलो 
कुछ क़दमों के निशाँ 
जीवन की पगडंडियों पर ..... 

15 टिप्‍पणियां:

  1. यही जीवन का सार है| बहुत सुंदर भाव , बधाई

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  2. ठोकरे,असफलताए भी आयेंगी
    बस होकर उनसे रूबरू
    मंजिल की ओर चलो

    बेहतरीन पंक्तियाँ आलोकित जी बधाई

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  3. ठोकरें, असफलताएं भी आएँगी
    बस होकर इनसे रु-ब-रु
    मंजिल की ओर बढ़ चलो
    पर ध्यान रहे
    छोड़ चलो
    कुछ क़दमों के निशाँ
    जीवन की पगडंडियों पर .....

    सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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  4. जीवन का यही तो निचोड़ है....यह सुंदर है..बहुत खुब।

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  5. आपकी रचना में निहित निर्देशों का पालन हो हमारी तरफ़ से यह कोशिश रहेगी...बधाई और आभार

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  6. इसी का नाम तो जीवन है .. यदि एक भी कोई जाने के बाद यद् रक्खे तो जीवन सफल ... अच्छी रचना है ...

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  7. एक एक पंक्ति जैसे ह्रदय को पुलकित आलोकित कर गयी....

    सत्य है जीवन तो ऐसा ही होना चाहिए....

    मन मोह लिया आपकी रचना के प्रेरणामयी भाव और सुगठित शिल्प ने....

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  8. बहुत खूबसूरत ... शानदार प्रस्तुती

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  9. अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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