कहीं भूख से केहू............ बच्चा रो रहल बा
कहीं रोजे अन्न............. बर्बाद हो रहल बा
पापियन के अब स्वर्ग नरक के चिंता नइखे
नोटवा के गंगा में.... पाप कुल्हे धो रहल बा
खड़ा बा जौन बनके नेता......, सबके मसीहा
धरम के नाम पे. फसाद के बिया बो रहल बा
बेईमनिये के त अब......... सगरो सासन बा
इमान्दारे के मुँह............ काला हो रहल बा
अब आपन अजदियो त..... बूढ़ा गइल बिया
संसद के गलिआरा में लोकतंत्र खो रहल बा
###############################
हिंदी अनुवाद
******************
कहीं भूख से......... कोई बच्चा रो रहा है
तो कहीं रोज़....... अन्न बर्बाद हो रहा है
पापी को स्वर्ग नर्क की...... चिंता न रही
नोटों की गंगा में...... पाप सारे धो रहा है
खड़ा है जो बनके नेता..... सबका मसीहा
धर्म के नाम पर फसाद के बीज बो रहा है
बेईमानी का हीं........ हर तरफ शासन है
इमानदारों का हीं..... मुँह काला हो रहा है
बूढी हो चुकी है अब... आज़ादी भी अपनी
लोकतंत्र संसद की गलिओं में खो रहा है
कहीं रोजे अन्न............. बर्बाद हो रहल बा
पापियन के अब स्वर्ग नरक के चिंता नइखे
नोटवा के गंगा में.... पाप कुल्हे धो रहल बा
खड़ा बा जौन बनके नेता......, सबके मसीहा
धरम के नाम पे. फसाद के बिया बो रहल बा
बेईमनिये के त अब......... सगरो सासन बा
इमान्दारे के मुँह............ काला हो रहल बा
अब आपन अजदियो त..... बूढ़ा गइल बिया
संसद के गलिआरा में लोकतंत्र खो रहल बा
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हिंदी अनुवाद
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कहीं भूख से......... कोई बच्चा रो रहा है
तो कहीं रोज़....... अन्न बर्बाद हो रहा है
पापी को स्वर्ग नर्क की...... चिंता न रही
नोटों की गंगा में...... पाप सारे धो रहा है
खड़ा है जो बनके नेता..... सबका मसीहा
धर्म के नाम पर फसाद के बीज बो रहा है
बेईमानी का हीं........ हर तरफ शासन है
इमानदारों का हीं..... मुँह काला हो रहा है
बूढी हो चुकी है अब... आज़ादी भी अपनी
लोकतंत्र संसद की गलिओं में खो रहा है
केहू - कोई
रहल बा - रहा है
रोजे - रोज
नइखे - नहीं है
कुल्हे (कुले भी कहा जाता है ) - सब, सारे
जौन - जो
बिया - बीज,(बिया स्त्रीलिंग के लिए 'है' के रूप में भी प्रयोग होता है इस रचना में दोनों 'बिया' का प्रयोग है )
बेईमनिये - बेईमानी का हीं
सगरो - सब ओर, हर जगह
सासन - शासन
आपन - अपनी या अपना
अजदियो - आज़ादी भी
बूढ़ा गइल बिया - बूढी हो चुकी है
गलिआरा - किसी बिल्डिंग के अन्दर बना हुआ संकरा रास्ता
रोजे - रोज
नइखे - नहीं है
कुल्हे (कुले भी कहा जाता है ) - सब, सारे
जौन - जो
बिया - बीज,(बिया स्त्रीलिंग के लिए 'है' के रूप में भी प्रयोग होता है इस रचना में दोनों 'बिया' का प्रयोग है )
बेईमनिये - बेईमानी का हीं
सगरो - सब ओर, हर जगह
सासन - शासन
आपन - अपनी या अपना
अजदियो - आज़ादी भी
बूढ़ा गइल बिया - बूढी हो चुकी है
गलिआरा - किसी बिल्डिंग के अन्दर बना हुआ संकरा रास्ता
आलोकिता जी, मजा आ गइल बा।
जवाब देंहटाएं---------
भगवान के अवतारों से बचिए...
जीवन के निचोड़ से बनते हैं फ़लसफे़।
खुबसूरत गज़ल आल कल के हालात पर नजर रखे हुए अच्छी लगी , बधाई
जवाब देंहटाएंका बात बा बिलकुल भोजपुरी में ग़ज़ल बढ़ीया बनल बा
जवाब देंहटाएंव्यवस्था के बुराई पर चोट करत बहुतै बढ़िया ग़ज़ल.............
जवाब देंहटाएंअन्ना हजारे के आन्दोलन के सन्दर्भ में :- " अब क्या होगा ? "
..... सुंदर सुंदर बहुत सुंदर लिखा आपने
जवाब देंहटाएंबढ़ीया ग़ज़ल
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (23.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
क्षेत्रीय भाषा में लिखी सुन्दर गजल!
जवाब देंहटाएंसच की तस्वीर दिखाती धारदार ग़ज़ल के लिए
जवाब देंहटाएंआपको हार्दिक बधाई।
बढ़िया, भोजपुरी में और लिखिए. आज की जरुरत है.
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