ओ शीतल शीतल पवन के झोकों
**********************************
ओ शीतल शीतल पवन के झोकों
बहने दो संग में..... आज न रोको
शीतलता मुझे खुद में भर लेने दो
कुछ पल, मन शीतल हो लेने दो
अपनी मोहकता में मुझे खोने दो
आज.... बाँहों के झूलों में सोने दो
जी करता है , मैं बदली बन जाऊं
ले जाये जहाँ , तेरे संग उड़ जाऊं
छू आऊं मैं चाँद को...... कुछ पल
अनंत में खो जाऊं ....... कुछ पल
ओ शीतल शीतल पवन के झोकों
बहने दो संग में..... आज न रोको
जी करता, मैं भी पवन बन जाऊं
हर दामन को, शीतल कर जाऊं
कहो तो रज कण सी उड़ चलूँ मैं
जिस ठौर ले जाओ, वहीँ चलूँ मैं
या की.. पुष्प पराग सी झर जाऊं
वातावरण , सुवासित कर जाऊं
तरु पात सी डोलूँ मैं तेरे छुवन से
या उनिग्ध हो जाऊं तेरे छुवन से
ओ शीतल शीतल पवन के झोकों
बहने दो संग में..... आज न रोको
.................................. ..................आलोकिता
prakriti ka saanidhya..
जवाब देंहटाएंsunder hai rachna :)
आज ना रोको, अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंक्या आपने अपने ब्लॉग से नेविगेशन बार हटाया ?
behad parbhavi
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना ...
जवाब देंहटाएंकौन रोक रहा है भाई खूब उडती रहो
जवाब देंहटाएंkoi nahi rokega, ud chalo mann aasmaan ko chhu lo
जवाब देंहटाएंदेखना थोडा संभल संभल के उड़ना.... :)
जवाब देंहटाएंSUNDAR RACHNA.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर काव्य प्रस्तुति...लाजवाब।
जवाब देंहटाएंbahut maja aaya padhakar par
जवाब देंहटाएंहमें तो आज शर्म महसूस हुयी ..भारत की जीत की ख़ुशी उड़ गयी ... आपकी नहीं उडी तो आईये उड़ा देते है.
डंके की चोट पर