पिजड़े में बंद एक तोता हूँ मैं ,
हार वक़्त भाग्य पर रोता हूँ मैं |
पर होते हुए भी अपर रहना मेरी मज़बूरी,
मीठू-मीठू की रट लगाना भी जरुरी |
ये घर वाले जताते हैं मुझसे कितना प्यार ,
क्या इतना भयंकर और क्रूर होता है प्यार?
एक दिन मन में एक ख्याल आया ,
मैंने मुन्नी को बहुत बहलाया |
बोला, खोल दो यह पिंजड़ा अगर,
दो मिनट उड़ कर आ जाऊंगा अन्दर |
पर वह भी थी बड़ी सायानी ,
उसने मेरी एक न मानी|
बोली खोल दूँ पिंजड़ा तो उड़ जाओगे ,
वापस ना फिर यहाँ तुम आओगे |
तुरंत एक ताला पिंजड़े में जड़ दिया ,
उड़ान को सपनो से भी दूर कर दिया |
शायद हर पिंजरबद्ध की है यही कहानी ,
हाय ! यह पिंजरबद्ध जिंदगानी |
बेशक बहुत सुन्दर लिखा और सचित्र रचना ने उसको और खूबसूरत बना दिया है.
जवाब देंहटाएंआलोकिता जी
जवाब देंहटाएं"ला-जवाब" जबर्दस्त!!
.............प्रशंसनीय रचना।
bilkul sachai likhi hai.....tota sach hi bolta hai..
जवाब देंहटाएंsanjay bhaiya Thanks thanks and thanks
जवाब देंहटाएंShivam ji bahut bahut shukriya aapka
जवाब देंहटाएंbahut hi badiya likha hai aapne..
जवाब देंहटाएंaaj kal ki bhaaga bhaagi wali zindgai bhi kuch aisi hi hai, kehne ke liye bas insaan aazaad hai..
mere blog par bhi kabhi aaiye
Lyrics Mantra
U have superbly expressed the pain of confinement. Gooooooooooood.
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
Harman ji
जवाब देंहटाएंbali sir
gyan chand ji
Shukriya
रचना मैं एक निर्दोष भाव हैं पर रचना का सार ग्राह्य नहीं हो पाता
जवाब देंहटाएंहम नियति को नहीं बदल सकते पर उसके एहसास को जरूर बदल सकते हैं
आपकी भावनाए हैं पर रचना परिमल की भांति पूरे गुलिस्तान को महकाती हैं
Thanks sir
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