शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010
चिता और चिंता
चिता में जलते हैं निर्जीव ,
चिंता से जलते सजीव |
कुछ घंटो में चिता की अग्नि शांत हो जाती ,
पर चिंता की अग्नि निरंतर बढती हीं जाती |
चिंता में जलता रहता है मानव ,
चिंता उसका खून पीती बनकर दानव |
अपना लहु देकर भी हमे कुछ मिल नहीं पाता,
चिंता में सर खपा कर भी कुछ हाथ न आता |
चिंता है एक मकड़ जाल, जिसमे मानव फंसता जाता,
अवनति रूपि दलदल में वह धंसता जाता |
हास्य-विनोद हीं इस चक्रव्यूह को है तोड़ सकता ,
चिंता से दूर कर खुशियों से हमारा नाता जोड़ सकता |
हास्य-विनोद से सब अपना नाता जोड़ो,
और आज से हीं चिंता का दामन छोड़ो |
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चिंता और चिता //
जवाब देंहटाएंवाह /
बड़ा ही करीने से अंतर समझाया बहन /
Thanks sir
जवाब देंहटाएंअच्छा विश्लेषण!
जवाब देंहटाएंचिन्ता का दामन छोड दिया जी ।चिन्ता तो चिता समान है। अच्छी रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंkya vivechna hai....laajwaab...behad sundar...badhai ho
जवाब देंहटाएंवाह !कितनी अच्छी रचना लिखी है आपने..! बहुत ही पसंद आई
जवाब देंहटाएंचिन्ता चिता समान है
जवाब देंहटाएंआलोकिता जी ,
जवाब देंहटाएंयह प्रमाण पत्र आपको खुद ही देना है कि आप के द्वारा भेजा गया आलेख आपने ही लिखा है और इस से पहले कहीं और नहीं छपा है !
बस इतनी सी बात है ... अब जल्दी से अपना आलेख लिख कर भेज दीजिये !
Sangeeta swaroop ji
जवाब देंहटाएंAnupama pathak ji
Nirmala kapila ji
Satyam Shiwam ji
Sanjay bhaiya
thanks a lot bahut bahut dhanyawaad aap sab ka
Shiwam Mishra ji bahut bahut sukriya
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंThanks sir
जवाब देंहटाएंहास्य विनोद मगर चिंता ने धो डाला है
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
बहुत सुन्दर प्रेरक अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंचिंता तो चिता का है रास्ता बतलाती
जवाब देंहटाएंहास्य विनोद ही चिंताको झुठलाता है
M.Verma ji
जवाब देंहटाएंKailash ji
Nivedita ji
Dhanyawaad
sunder kavita...
जवाब देंहटाएंchinta se chaturai ghate
duks se ghate sarir.....:)
thank u
जवाब देंहटाएंbahut sundar prasuti...
जवाब देंहटाएंThanks Kavita ji
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