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गुरुवार, 5 मई 2011

राजकुंवर हीं तो आया है



जाने कब...... बूंदों सा बरसोगे मेरे आँगन में 
जाने कब.......फूलों सा  हंसोगे मेरे आँगन में 
इंतज़ार है मुझे अब...... हर पल उस घडी का 
जब होगा आगमन तुम्हारा.... मेरे आँगन में 

माँ तुम हर पल कुछ यूँ हीं तो सोचा करती थी
जाने क्यूँ... उस अंजाने की प्रतीक्षा करती थी 
देख ना माँ,...वह अजनबी तेरे घर आ हीं गया 
तू स्वागत में जिसके तैयारी किया करती थी 

देख न माँ वह सजीला राजकुंवर हीं  आया है 
बैंड-बाजा-बारात सब कुछ तो संग में लाया है 
माँ अब भी क्यूँ हैं इतनी तेरी ये आंखे  सजल 
तेरा वर्षों का ख्वाब अब पूरा होने को आया है 

कुछ क्षण ही बरसेंगी अब ये बूंदे तेरे आँगन में
कुछ पल ही मुस्कुराएंगे ये पुष्प तेरे आंगन में
ले जायेगा साथ फिर वो तेरे जिगर के टुकड़े को
छूट जाएँगी वो बरसों की यादें ही तेरे आंगन में 

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

आशा की किरण



आसमान के काले आँचल में
टाँका गया एक सितारा हूँ मैं
उस आँचल का साथ ताउम्र
बदा नहीं है भाग्य में
अक्सर हीं
टूट कर झर जाता हूँ
और टूटता देख मुझे
हँस पड़ता है पूरा विश्व
आँखें मिचे
मांगता दुआएं
ख्वाबों के पुरे होने की
अश्रु भरे नैनों से
देखता हूँ उन्हें
शायद
ये मुझसे भी
बदनसीब होंगे
तभी तो मांगते
मुझसे दुआएं
और मैं अभागा
कैसे कह दूँ
कैसे
कह दूँ उन्हें
की
मैं तो खुद किसी का
टुटा ख्वाब हूँ
आसमान ने ठुकराया
मुझको
देखता हूँ
धरा की फैली बाहें
पर
अफ़सोस
आज तक न पा सका मैं
वो स्नेहिल गोद
रास्ते में हीं
हो जाता हूँ नष्ट
बिखर जाता है
मेरा पूरा अस्तित्व
हाँ पर एक ख़ुशी है
नाश में भी मेरे है
एक सृजन
मेरी अस्त होती
जिन्दगी
दे जाती है
लाखों दिलों में
एक नयी
आशा की किरण

रविवार, 24 अप्रैल 2011

कैनवास



कैनवास पर चित्र बनाते हुए
बरबस याद आया बचपन
वो बचपन जब चित्र बनाना
पसंदीदा काम हुआ करता था
वो कथई सेब और
लाल गुलाबी सा आम हुआ करता था
वो ड्राइंग कॉपी हीं होती थी
हमारा खज़ाना
याद है अब भी मुझे
आते जाते हर मेहमान को
अपनी चित्रकारी दिखाना
गलती से आम को भूरा कर देना
और फिर "सडा हुआ है" बोल के
मैम से गुड ले लेना
याद आ गया वो बचपन जब
हर रंग अपनी मर्ज़ी के होते थे
गुलाबी बादलों से हरे रंग बरसते थे
चमकीली सी होती थी चिड़ियाँ
परियों के सतरंगी से बाल होते थे
नीला पहाड़ और पीला रास्ता था
हाँ सब रंग अपनी मर्ज़ी का था
दीवारों परदों पर भी
करती थी चित्रकारी
घर का कोई कोना अछूता न था
मेरी तुलिका के रंगों से
अजब गज़ब सी थी वो रंगीली दुनिया
और उस दुनिया के सपने
जब सोचती थी की जल्दी से बड़ी हो जाऊं
ताकि बुक जैसा सेम टु सेम
ड्राइंग बनाऊं
काश फिर से ऐसा कर पाऊं
कोना कोना अपनी तुलिका से रंग पाऊं
बुझे बुझे हैं कई चेहरे
होठों पर उनके
गुलाबी मुस्कान खिंच पाऊं
अँधेरे में घुटती जिंदगियों को
आशा के सतरंगी रंग से रंग दूँ
पराश्रित जीवों को
आत्मनिर्भरता का
सुनहरा रंग दूँ
जिसके पास जो भी रंग न हो
हर किसी को वो
प्यारा सा रंग दे दूँ
जीवन के काले धब्बों को
कमसकम सफ़ेद हीं कर दूँ
पर ...........नहीं ...............
शायद
इश्वर ने
सबकुछ मोम से रचा है
जिस पर मेरी तुलिका का रंग
चढ़ता हीं नहीं
चढ़ता हीं नही