परछाईं नहीं जो अँधेरे में खो जाऊं
उमंग नहीं जो उदासी में सो जाऊं
रक्त की धारा सी ह्रदय में रहती हूँ
मैं अनवरत तुझमें हीं तो बहती हूँ
हूँ तुझमें हर पल भले स्वीकार न कर
रहूंगी भी सदा भले अंगीकार न कर
अन्तःसलिला फल्गु सी बहती रहूंगी
ह्रदय से रेत हटाना मैं वहीँ मिलूंगी
.......................................आलोकिता