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सोमवार, 19 मार्च 2012

प्रेम की निशानी,एक जादुई शहर..............

  
चलो दोस्तों आज आपको एक कहानी सुनाती हूँ | ये कहानी ना किसी राजा की है ना रानी की, नाहीं किसी जादुई दुनिया की बल्की ये कहानी है एक ऐसे शहर की जिसने अपनी गलिओं में ऐसी हजारों हज़ार कहानिओं को संगृहीत कर रखा है | ये कहानी है उस शहर की  जिसने कई प्राकृतिक, अप्राकृतिक आपदाओं को झेला पर आज भी हँसता हुआ खड़ा है कर्तव्य पथ पर अडिग एक सैनिक की भांति | भारत के गौरवशाली इतिहास में अति प्राचीन शहरों में गिना जाता है इस शहर को | पुरातात्विक विशेषज्ञों की माने तो आज से लगभग ढाई हज़ार वर्ष पूर्व जन्मा था यह शहर जिसे आज हम 'पटना' के नाम से जानते हैं | जी हाँ बिहार कि राजधानी 'पटना' हीं है वो शहर जिसका प्रमाणित इतिहास  शुरू होता है चार सौ नब्बे ईसा पूर्व यानि हर्यक वंश के शासक राजा अजातशत्रु के शासन काल से, जब उन्होंने रणनीतिक दृष्टिकोण से राजगृह (वर्तमान में राजगीर) से बदलकर अपनी राजधानी बनाया इस शहर को, लेकिन  इस शहर का वास्विक इतिहास तो और भी पुराना और रोचक है | 
दन्त कथाओं में पटना को जादू से उत्पन्न एक शहर के रूप में दर्शाया गया है जिसके जनक राजा पत्रक ने इसका निर्माण किया अपनी प्यारी रानी पाटली के लिए और इसी कारण इसे पाटलिपुत्र या पाटलिग्राम के नाम से जाना जाता था | इतिहास के पन्नो पर कई जगह इसका उल्लेख पुष्पपुर या कुसुमपुर के रूप में भी मिलता है क्यूंकि यहाँ दवा और इत्र के लिए गुलाब की खेती बहुतायत मात्रा में हुआ करती थी | सत्रह सौ चार ई० में मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने अपने प्रिय पौत्र मुहम्मद अज़ीम जो कि उस वक़्त पटना का सूबेदार हुआ करता था के अनुरोध पर इसका नाम अजीमाबाद रखा |
इसके विभिन्न नामों से परिचित हो जाने के बाद आइये अब चलते हैं इतिहास कि गलिओं में और भी नज़दीक से जानने इस प्रेम की निशानी जादुई शहर को जो बसा है गंगा के किनारे सोन आर पुनपुन नदिओं के संगम पर | कहते हैं बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध ने अपने आखिरी समय में यहाँ से गुज़रते हुए कहा था कि इस शहर का भविष्य उज्जवल तो है पर कभी बाढ़, आग या आपसी संघर्ष की वजह से यह बर्बाद भी हो जायेगा | मौर्य साम्राज्य के उत्कर्ष के बाद से ही पाटलिपुत्र लगातार सत्ता का केंद्र बना रहा | मौर्य के बाद कई राजवंशों के राजाओ ने यहीं से पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया | गुप्तवंश के शासनकाल को प्राचीन भारत का स्वर्णयुग कहा जाता है पर इसके बाद पाटलिपुत्र को वह गौरव प्राप्त नहीं हुआ जो मौर्य काल में प्राप्त था |गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद बख्तियार खिलजी ने यहाँ अपना आधिपत्य जमा लिया और कई आध्यात्मिक प्रतिष्ठानों को ध्वस्त कर दिया फलस्वरूप पटना अपने देश का राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र ना रहा लेकिन फिर भी मुग़ल काल के सत्ताधारियों ने इस पर अपना नियंत्रण बनाये रखा | शेरसाह सूरी ने जीर्ण पड़े शहर का पुनर्निर्माण करने कि सोची, गंगा तीर उन्होंने किला बनवाया | उनका बनवाया एक भी दुर्ग तो अब नहीं है पर अफगान शैली में निर्मित एक मस्जिद अब भी है | अफगान सरगना दाउद से युद्ध के  दौरान मुग़ल बादशाह अकबर भी यहाँ आयें थे |
पाटलिपुत्र का प्रथम लिखित विवरण यूनानी इतिहासकार मेगास्थनीज़ ने दिया | कहते हैं शुरुआती दौर में पाटलिपुत्र पुर्णतः लकड़ियों का बना हुआ शहर था फिर सम्राट अशोक ने बाद में इसे शिलाओं कि संरचना में तब्दील किया | इन संरचनाओं का जिवंत विवरण चीन के फाहियान द्वारा लिखे भारत के उनके यात्रा वृतांत में मिलता है | कौटिल्य ने अर्थशास्त्र और विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र कि रचना यहीं पर कि थी | अकबर के राज्य सचिव तथा आइन-ए-अकबरी के लेखक अबुल फज़ल ने पटना को कागज़, पत्थर तथा शीशे का संपन्न औद्योगिक केंद्र के रूप में वर्णित किया है | इन्ही विवरणों में यूरोप में प्रचलित पटना राईस नाम से चावल कि कुछ नस्लों कि  गुणवत्ता का भी वर्णन मिलता है | अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान यहाँ रेशम तथा कैलिको के व्यापर के लिए फैक्ट्री खोली गई और जल्द हीं यह सौल्ट पीटर(पोटैसियम नाइट्रेट) के व्यापर का एक अहम् केंद्र बन गया | ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधीन जाने के बाद यह व्यापर का महत्वपूर्ण केंद्र बना रहा | उन्नीस सौ बारह में बंगाल विभाजन के बाद यह बिहार तथा उड़ीसा कि राजधानी बना | फिर उन्नीस सौ पैंतीस में जब उड़ीसा को भी विभाजित कर एक अलग राज्य बनाया गया तब भी पटना बिहार कि राजधानी बना रहा और आखिरकार दो हज़ार में जब बिहार पुनः बिहार और झारखण्ड दो राज्यों में बटा तब भी पटना ने अबतक राजधानी के रूप में अपना स्थान बरक़रार रखा है | 
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी नगर ने अहम् भूमिका निभाई है | नील कि खेती के विरोध में चंपारण आन्दोलन और उन्नीस सौ बयालीस का भारत छोडो आन्दोलन उलेखनीय है | इसी उन्नीस सौ बयालीस के भारत छोडो आन्दोलन के दौरान विधान सभा भवन के ऊपर तिरंगा फहराने की कोशिश में सात बहादुर स्कूली बच्चे भी शहीद हुए जिनकी स्मृति में पंद्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालिस को शहीद स्मारक कि नीव रखी गई और आज भी आदम कद कि ये मूर्ति इतिहास कि गवाह के रूप में विधान सभा के मुख्य द्वार पर खड़ी है |
इस शहर के वास्तु को ऐतिहासिक क्रम में तीन खंडो में बांटा जा सकता है :- मध्य पूर्व भाग अर्थात कुम्हरार के आसपास मौर्य तथा गुप्त सम्राटों का महल, पूर्वी भाग अर्थात पटना सिटी के आसपास शेरशाह तथा मुगलों के काल का नगर क्षेत्र तथा बांकीपुर और उसके पश्चिम में बतानी हुकूमत के दौरान बसाई गई नई राजधानी |
भारतीय पर्यटन मानचित्र पर भी पटना का प्रमुख स्थान है, आधुनिक के साथ साथ कई ऐतिहासिक दर्शनीय पर्यटन स्थल भी हैं यहाँ जो कि इतिहास कि कई घटनाओं के साक्षी हैं | अभी और भी बहुत कुछ है कई हज़ार कहानिओं के ताने बाने से जुडा है यह शहर जिन्हें एक बार में बता पाना बहुत मुश्किल है | सिर्फ पटना नहीं पुरे बिहार को नज़दीक से जानने के लिए पढ़ते रहिये लेखों की एक ख़ास श्रृखला जो बिहार शताब्दी वर्ष के ख़ास मौके पर समर्पित है मेरे बिहार को ........................
जय हिंद ! जय बिहार !! 
शहीद स्मारक